अगर CM हेमन्त और उनके MLA छत्तीसगढ़ गये, तो ये उनके राजनीतिक कैरियर पर ऐसा कलंक होगा कि वे फिर कभी सत्ता का मुंह नहीं देख पायेंगे
चुनाव आयोग चुप, राज भवन चुप पर, सबसे ज्यादा गर कोई शोर मचा रहा है तो वह हैं झारखण्ड की मीडिया व वे राष्ट्रीय चैनल जो किसी भी रुप में (जैसा हमें अनुभव हो रहा है), राज्य के मुख्यमंत्री के रुप में हेमन्त सोरेन को देखना नहीं पसन्द करते, हालांकि मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन समय-समय पर इन चैनलों को बेकार के कार्यक्रमों (जो इन्हीं चैनलों के द्वारा आयोजित किये जाते हैं), जो झारखण्ड में आयोजित होते हैं, उन्हें खुलकर मदद करते हैं, पर पता नहीं क्यों, इन दिनों देख रहा हूं कि झारखण्ड की मीडिया और राष्ट्रीय चैनल झारखण्ड की महागठबंधन सरकार पर हाथ धोकर पीछे पड़ गई है।
राज्य की जनता भी हैरान है, ऐसा कौन सा आसमान फट पड़ा कि जिसे देखो, जिस चैनल को देखो, जिस अखबार को देखो, हेमन्त सोरेन पर दिये जा रहा है। आश्चर्य है कि राज्य की प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद डा. निशिकांत दूबे को छोड़ दें, तो भाजपा का कोई नेता चाहे वो प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश हो या भाजपा विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी ये भी मुखर नहीं है और न ही भाजपा के राष्ट्रीय नेता।
शायद वे समझते होंगे कि मामला संवैधानिक हैं, तो संवैधानिक ढंग से निबटें तो ज्यादा बेहतर है। आश्चर्य है कि हेमन्त सोरेन प्रकरण पर राष्ट्रीय चैनलों पर फिलहाल ले-देकर भाजपा की ओर से सिर्फ निशिकांत दूबे ही दिखते हैं, बाकी और भाजपा के सांसद या विधायक नहीं दिखते, अब क्यों नहीं दिखते, ये कोई शोध का विषय नहीं हैं, आप समझ सकते हैं।
भाजपा के डा. निशिकांत दूबे को तो वो सभी बातें मालूम होती हैं, जो किसी को नहीं होता, वे ट्विट करते हैं और उस ट्विट से ही सारी मीडिया को पता चल जाता है कि क्या होनेवाला है, क्या होगा और लीजिये फिर मीडिया का चकल्लस शुरु हो जाता है। जैसे कि डा. निशिकांत दूबे का एक ट्विट आया कि झामुमो के विधायकों का दल बस के द्वारा छत्तीसगढ़ जा रहा हैं, लीजिये निशिकांत दूबे ने सिर्फ कहा कि सत्तापक्ष के विधायकों का दल छत्तीसगढ़ जा रहा हैं और रांची के एक मीडिया हाउस ने तो सीधे उन सब को छत्तीसगढ़ पहुंचा भी दिया, जबकि सारे के सारे सत्तापक्ष के विधायक अभी भी रांची में हैं।
एक राष्ट्रीय चैनल ने तो सीधे ये दिखा दिया कि छत्तीसगढ़ के इसी होटल में ये सारे के सारे विधायक रहेंगे और इसे देखते हुए, सारी तैयारी शुरु कर दी गई है, जबकि मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि हेमन्त इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं, जितना ये लोग समझते हैं। सीधी सी बात हैं, जिसकी राज्य में एक मजबूत सरकार है। जिसके एक इशारे पर सारे के सारे पुलिसबल और प्रशासनिक अधिकारी यस को यस और नो को नो करने के लिए तैयार हैं, वो व्यक्ति अपने विधायकों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ या अन्य राज्य क्यों जायेगा?
या ऐसा किसी राज्य में हुआ है कि एक मजबूत सरकार, अपनी सत्ता बचाने के लिए, सत्ता में रहते हुए, सब कुछ छोड़कर अपनी ही राजधानी से भाग खड़ा हो, अगर वो ऐसा करता है तो उस मुख्यमंत्री का दुर्भाग्य है, उस राज्य का दुर्भाग्य है, वहां की जनता का दुर्भाग्य है कि उसके मुख्यमंत्री ने उस राज्य की जनता पर विश्वास न कर, दूसरे राज्यों की जनता पर विश्वास किया, वहां की सरकार पर विश्वास किया, क्या ये दाग हेमन्त सोरेन जिंदगी भर ढो पायेंगे।
झामुमो के वरिष्ठ विधायक मथुरा प्रसाद महतो और कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर तो विद्रोही24 से बातचीत के क्रम में साफ कहते है कि आखिर उनकी पार्टी को छत्तीसगढ़ जाने की क्या जरुरत है? हम अपने राज्य में, अपनी सरकार में, अगर भय खायेंगे, सुरक्षित नहीं रह पायेंगे तो फिर तो हमारे लिये दुर्भाग्य है। हमलोग कहीं नहीं जा रहे हैं। हमलोग आराम से यहां सरकार चला रहे हैं, कोई दिक्कत नहीं हैं, जब राजभवन या चुनाव आयोग का फैसला आयेगा तो देखा जायेगा। फिलहाल हमें लतरातू का मजा लेने दीजिये, ऐसे भी कई सालों से हमलोग एक साथ पर्यटन का आनन्द नहीं लिये।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो हेमन्त सरकार पर फिलहाल दूर-दूर तक कोई संकट नजर नहीं आता, हां अखबारों-चैनलों के लिए ये संकट हो सकता है, जो बेवजह बवंडर खड़ी कर रहे हैं। कोई बस का रंग बता रहा है, तो कोई होटल में खड़ा सुरक्षा गार्ड दिखा रहा है, तो कोई बेकार की बातों में जनता को उलझा रहा है, क्योंकि किसी के पास सही बातें छन कर नहीं आ रही, क्योंकि उनके पास विश्वसनीय सूत्रों का अभाव है।
ये विश्वसनीय सूत्र कोई मोबाइल लेकर पत्रकारिता करने से नहीं बनता, बनाना पड़ता है, क्योंकि जिस नेता की बात आप सुन रहे हैं, वो नेता आपको सही ही बात बतायेगा, वो आपकी पत्रकारिता तय करती है कि आपने किस तरह की पत्रकारिता अब तक की है। वर्तमान राजनीतिक संकट जो संकट है ही नहीं, रांची की मीडिया को नंगा कर के रख दिया है, सभी एक नेता के इशारे पर बवंडर मचा रहे हैं, जनता देख रही है, इन पत्रकारों का भी पतन निश्चित है।
राजनीतिक पंडितों ने यह भी कहा कि वे एक पोर्टल देख रहे थे, संवाददाता को संविधान विशेषज्ञ से बात करनी चाहिए थी, तो वो एक एनजीओ संचालक के साथ बैठकर इंटरव्यू करने में लग गया और जनता को क्या बता रहा था, उसे खुद भी पता नहीं था, कुल मिलाकर कहें तो स्थितियां गड़बड़ है। इधर स्थिति यह है कि न तो भाजपा को वर्तमान राजनीतिक संकट से मतलब है और न ही हेमन्त सोरेन की सरकार को खतरा है।
राज भवन और चुनाव आयोग जब निर्णय करें और उसके सक्षम अधिकारी जब कोई बयान जारी करें, तब समझिये कि सच्चाई क्या है? फिलहाल वर्तमान में चल रहे पत्रकारों के अधकचरे समाचार से स्वयं को दूर रखें। कोई कहीं नहीं जा रहा, अगर जायेगा तो वो खुद अपनी राजनीतिक पांव पर कुल्हाड़ी मारेगा, ये हेमन्त सोरेन अच्छी तरह जानते है, क्योंकि छत्तीसगढ़ भागने का मतलब, सरकार का भाग जाना, इससे बड़ा कलंक दूसरा कोई नहीं हो सकता…