CM हेमन्त को अपने ही मंत्रियों-विधायकों पर भरोसा नहीं, टूट की आशंका से बचने के लिए भेजा अन्यत्र, आज की इस हरकत पर कई MLA नाराज
संभवतः यह देश की पहली घटना है। झारखण्ड को यह कहने का सौभाग्य/दुर्भाग्य प्राप्त हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने इस रिकार्ड को अपने नाम किया है। वे देश के 28 राज्यों में से पहले मुख्यमंत्री बने हैं, जिन्होंने अपने मंत्रियों और विधायकों को विशेष विमान से दूसरे राज्य में भेजकर अपनी सत्ता को बचाने के लिए भागीरथी प्रयास किया है।
कहने को आज भी ताल ठोक कर मुख्यमंत्री हेमन्त, ये कह रहे हैं कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं, पर आज की घटना ने सारे रहस्यों से पर्दा उठा दिया हैं और ये पर्दा कोई दूसरे दल ने नहीं खुद मुख्यमंत्री ने हटाया हैं। जब उन्होने अपने आवास से सारे मंत्रियों/विधायकों को लेकर बस द्वारा रांची एयरपोर्ट पहुंचे और वहां से एक विशेष विमान से सभी को अन्यत्र जाने में विशेष भूमिका अदा कर दी।
ज्ञातव्य है कि कल ही राज्यपाल का एक बयान आया था, जिसे विद्रोही24 ने प्रमुखता से जगह दी थी। बयान था – प्रदेश की जनता घर, दुकान, मॉल, सड़क कही भी सुरक्षित नहीं। यह बयान दुमका की अंकिता के साथ हुए अमानवीय व्यवहार पर राज्यपाल रमेश बैस ने जारी किया था, पर आज जिस प्रकार झारखण्ड, झारखण्ड की जनता को भगवान भरोसे छोड़कर, केवल सत्ता सुख की प्राप्ति के लिए, राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपने सहयोगी मंत्रियों और विधायकों को झारखण्ड छोड़कर जाने को विवश किया, उससे राज्यपाल के उस बयान को बल मिलता है।
भयभीत मुख्यमंत्री ने अपने विधायकों/मंत्रियों को राजधानी छोड़ने पर किया विवश
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के मंत्रियों और विधायकों ने जिस प्रकार से राजधानी छोड़ी हैं, उससे साफ लगता है कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन अंदर से बहुत ही भयभीत है। उन्हें लगता है कि चुनाव आयोग और राजभवन के बीच हुए पत्राचार से उनकी कुर्सी को सदा के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। वे यह समझ चुके हैं कि उनके ही सहयोगी, जिन्हें राज्य में विधायक कहा जाता हैं, कभी भी उन्हें गच्चा मार सकते हैं और भाजपा के साथ गलबहियां डाल सकते हैं।
शायद उन्हें इस बात का आभास है कि कांग्रेस और झामुमो के विधायक उन्हें बीच मझधार में छोड़कर भाग सकते हैं, इसलिए उन्होंने इस बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की शरण में जाना उचित समझा है। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो देश की राजनीति में हेमन्त सोरेन ने एक रिकार्ड बना दिया है, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन देश के 28 राज्यों में से पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपनी सत्ता बचाने के लिए, राज्य की जनता को बीच मझधार में छोड़कर, अपने जनसेवा से ही दूरियां बना ली और अपनी सरकार बचाने के लिए अजीबोगरीब फैसले लेने शुरु कर दिये हैं।
आईएएस/आईपीएस अधिकारियों की नजर हैं मुख्यमंत्री हेमन्त की राजनीतिक क्षमता पर
आम तौर पर देखा जाता है कि ऐसा काम राज्य की विपक्षी पार्टियां करती हैं, कि कही उनके सदस्यों को तोड़ न लिया जाये, इसलिए अपने विधायकों को लेकर बाहर का रास्ता देखती है, या ऐसा काम सत्ता प्राप्त करनेवाली पार्टियां या लोग करते हैं, पर यहां तो बात ही उलटी पड़ गई, मुख्यमंत्री ही अपने विधायकों को दूसरे राज्यों में भेज रहे हैं, ताकि उनका कोई विधायक या मंत्री किसी दूसरे दल में न चला जाये, नहीं तो ये सब करने की जरुरत ही क्या थी, वो भी तब जबकि राज्य में एक मजबूत सरकार हैं, जनता का विश्वास जीतनेवाली सरकार है।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का ये दांव उनके लिए अब उलटा पड़ेगा। जितनी मजबूत स्थिति में वे अब तक थे। उतनी मजबूत स्थिति अब तो वे नहीं रहेंगे, क्योंकि राज्य के आईएएस और आईपीएस, अब तक मुख्यमंत्री की कैपिसिटी और ताकत को नाप लिये होंगे। राजनीतिक पंडितों की मानें तो अब राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन कुछ भी कर लें, उनकी बातों का वो वजन आईएएस/आईपीएस अधिकारियों के उपर नहीं होगा, जो अब तक होता रहा था।
विधायकों में भी नाराजगी, कहा टूटना होगा तो कहीं भी टूटेंगे, रांची-रायपुर क्या फर्क पड़ता है
विद्रोही24 को सत्ता पक्ष के ही एक विधायक ने आज खुलकर कहा कि मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को किसने कह दिया कि रायपुर जाने के बाद विधायक नहीं टूटेंगे, अगर टूटना होगा और किसी ने संकल्प कर लिया कि टूटना ही हैं, अलग होना ही हैं तो सदन चलने के दौरान भी ये स्थिति आ सकती है। वो विधायक, आज की इस राजनीति से आक्रोशित थे, तथा आज की घटना को गैर-राजनीतिक व अपरिपक्वता की संज्ञा दे रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट की नजरों में राज्य में अराजकता का माहौल
राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि बाबू लाल मरांडी की सदस्यता को रद्द करने की चाल भी वहीं बदले की भावना से प्रेरित को देखते हुए उठा दी गई है, मतलब आप संवैधानिक ढांचा को प्रभावित करो तो सही और दूसरा सही भी रहे तो गलत। राजनीतिक पंडितों की मानें तो यही बदले की भावना, पूरे राज्य को रसातल में ले जा रही हैं, पिछले सात दिनों से इस राज्य में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं दिख रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय का एक मामले को लेकर झारखण्ड सरकार पर कल दिया गया बयान, राज्य में अराजकता का माहौल है, वो गलत नहीं हैं।
सही कहा, टूटना होगा तो विधानसभा के फ्लोर पर भी टूट सकते हैं।