अपनी बात

कभी टाटा-बिड़ला राजनीतिक दलों के निशाने पर होते थे, आज अडानी-अंबानी निशाने पर हैं, इसमें हैरानी की क्या बात है?

भाई मैंने तो इन राजनीतिक दलों को तब से देखा हैं, जब से होश संभाला है। दस वर्ष का था। जब 1977 में जनता लहर चल रही थी। उस वक्त के जनता पार्टी के नारे क्या थे, पहले उस पर ध्यान दे दिया जाय। सन् 77 की ललकार, दिल्ली में जनता सरकार। सत्ता कांग्रेस सीपीआई, चोर-चोर मौसेरे भाई। रुसी बिल्ली दिल्ली छोड़ो, इटली में जाकर होटल खोलो। लोकनायक जयप्रकाश जिन्दाबाद, जिन्दाबाद। जनता पार्टी का क्या निशान चक्र बीच हल लिये किसान। वोट फोर जनता पार्टी। टाटा-बिड़ला की सरकार, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।

अब 2014 में जब से भाजपा की सरकार आई है, क्या हो रहा है? राहुल गांधी बोल रहे हैं कि मीडिया उनकी बात नहीं  जनता तक पहुंचा रही हैं, इसलिए वे भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। भाई राहुल गांधी जी, इतने भी भोले मत बनिये। लालू-नीतीश तो आपके आजकल भक्त बने हुए हैं, कभी-कभी उनसे भी पुछ लीजिये कि 1977 में आपकी ही परिवार की आपकी दादी इन्दिरा गांधी विपक्षी दलों के नेताओं के साथ क्या करती थी?

उस वक्त तो ले-देकर आकाशवाणी और दूरदर्शन ही हुआ करता था, क्या उस वक्त विपक्षी दलों को सम्मान पूर्वक उनका हक मिला करता था, आज तो कई निजी चैनल हैं, सोशल साइट का जमाना है, आप का ये बयान कि आपको मीडिया स्थान नहीं दे रही हैं, हास्यास्पद लगता है, हाल ही में आपने जब आटा को लीटर में तौलवा दिया तो आपके बयान को तो सारे मीडिया ने छुपा लिया, क्या ऐसा कर मीडिया ने आपकी मदद नहीं की, लेकिन आपके इसी संवाद को सोशल मीडिया ने हाथों-हाथ लिया, ऐसे में आप का यह बयान तो दुर्भावना से प्रेरित लगता है।

आपके हक तो आपको मिल ही रहे हैं। आप जो बार-बार अडानी-अंबानी का नाम ले रहे हैं। आप क्या चाहते हैं कि ये दोनों देश छोड़कर चले जाये और अगर ये चले जाये तो इनके जगह पर कौन आये, वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी या बहुराष्ट्रीय कंपनियां जो आकर आपके साथ मिलकर खूब देश को लूटे। आप ये बताएं कि क्या अडानी-अंबानी का इस देश को सशक्त बनाने व यहां के युवाओं को रोजगार देने में कोई योगदान नहीं, और जब आप जितना अडानी-अंबानी के खिलाफ चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं।

तब यही चिल्लाहट बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिकों के उपर आपका क्यों नहीं निकलता, क्या वो भारत को मजबूती प्रदान कर रहे हैं? कमाल है, अगर अडानी-अंबानी गलत कर रहे हैं तो प्रमाण के साथ जनता को बताएं, ये क्या गोल-मोल जैसा भाषण में जवाब देते हैं, ठीक उसी प्रकार जब कभी आपकी ही दादी इंदिरा गांधी का शासन था, तब उस वक्त की विपक्षी पार्टी जनता पार्टी टाटा-बिड़ला का नाम लेकर आपकी दादी इंदिरा व बाद में राजीव गांधी को टारगेट किया करते थे। क्या टाटा-बिड़ला का देश निर्माण में योगदान नहीं था या हैं?

जितना इस देश को किसान-जवान की जरुरत हैं, उतना ही इस देश को अपने मिट्टी में पले-बढ़े उद्योगपतियों की भी जरुरत हैं, जो आर्थिक जगत में अपने देश का मान बढ़ाएं, बिना अर्थ व व्यापार के आप बेहतर नहीं हो सकते, कृपया झूठ न फैलाएं, नहीं तो आप खुद बताएं कि आपकी ही सरकार, जो राजस्थान में हैं वो अडानी के साथ मिलकर राजस्थान में कई उद्योग लगाने के लिए जोड़ क्यों लगा रही हैं या झारखण्ड के ही गोड्डा में जो अडानी का पावर प्रोजेक्ट पर काम हो रहा हैं, आपके ही कांग्रेसी नेता प्रदीप यादव कभी अडानी के पावर प्रोजेक्ट का काफी विरोध किया करते थे, आज चुप्पी क्यों साध ली, कही इसलिए तो नहीं कि कल भाजपा की सरकार झारखण्ड में थी तो विरोध और आज अपनी सरकार बन गई तो अडानी की आरती। इसी को दोहरा चरित्र कहते हैं।

सच्चाई यही है कि हमारे देश में ज्यादातर राजनीतिज्ञ झूठे व बतोले हैं, इनका मूल काम जनता के दिमाग में झूठ भरना और अपनी राजनीति फिट करना, इसके लिए आप सिर्फ कांग्रेस या भाजपा को दोषी नहीं ठहरा सकते, इस गोरखधंधे में अब एक सीट जीतनेवाली पार्टी भी शामिल हैं, वो चाहे वामपंथी पार्टियां ही क्यों न हो?

मेरा सवाल साफ है कि जब अडानी और अंबानी इतने ही खराब है, तो जहां कांग्रेस या कांग्रेस के समर्थन में सरकारें चल रही हैं, यही सरकारें अडानी और अंबानी के आगे चरणवंदना क्यों कर रही हैं? क्या राहुल गांधी को यह बात मालूम नहीं कि गोड्डा में जो अडानी का पावर प्रोजेक्ट तैयार हो रहा हैं, वो बांगलादेश को ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए हैं और भारत जैसे देश को बांगलादेश जैसे पड़ोसी की मदद भी करनी चाहिए, नहीं तो कल श्रीलंका जैसी स्थिति चीन बांग्लादेश में कर दें, तो फिर इस देश का हाल क्या होगा?

सच्चाई यह है कि टाटा ने देश को बहुत कुछ दिया है, चाहे वो सार्वजनिक क्षेत्र की बात हो या देश की सुरक्षी की बात हो, लेकिन फिर भी इंदिरा गांधी के समय जनता पार्टी के लोग टाटा या बिड़ला समूह को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते और यही हाल फिलहाल राहुल गांधी का हैं, ले-देकर अडानी-अंबानी पर ये खुद नहीं बताते कि उन्हीं के परिवार के सदस्य जिनके पास कोई काम भी नहीं था, आज अरबो-खरबों के मालिक कैसे हो गये? भाई पारदर्शिता तो दोनों तरफ से होनी ही चाहिए।