धर्म

क्रिया योग दीक्षा समारोह में स्वामी शुद्धानन्द ने कहा ईश्वर को पाने का सरल मार्ग है क्रिया योग, आप धन्य हैं, जो इससे जुड़े

क्रिया योग की दीक्षा ले रहे योगदा के भक्तों को संबोधित करते हुए योगदा सत्संग मठ के वरीय संन्यासी स्वामी शुद्धानन्द ने कहा कि क्रिया योग एक ऐसी ब्रह्म विद्या है, जो हमें जीवन और मृत्यु तक से मुक्त कर देती हैं, हमें मोक्ष प्रदान कर देती हैं। यह ऐसी परम्परा है कि जो प्रायः लुप्त हो चुकी थी, पर ये महावतार बाबा जी की कृपा है कि यह क्रिया योग आज भी विश्व के करोड़ों आध्यात्मिकता से जुड़े मानवमात्र का जीवन परमानन्द से भर दे रही हैं, लोग इससे जुड़कर अपना और अपने परिवार का बेहतर मार्गदर्शन कर रहे हैं।

आज योगदा सत्संग मठ के ध्यान केन्द्र में विशेष क्रिया योग दीक्षा समारोह का आयोजन किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में क्रिया योग की दीक्षा लेने के लिए लोग पहुंचे, इस समारोह में वे भी लोग मौजूद थे, जो क्रियावान थे, पर स्वयं को और बेहतर स्थिति में पाना चाहते थे, स्वामी शुद्धानन्द ने ऐसे लोगों का भी मार्गदर्शन किया और बड़ी ही सुंदर ढंग से क्रिया योग के रहस्यों से पर्दा हटाया।

स्वामी शुद्धानन्द का कहना था कि जो लोग क्रिया योग में दीक्षित हो रहे हैं, उन्हें योगदा की गुरु-शिष्य परम्परा पर सच्ची निष्ठा रखनी होगी। उन्होंने कहा कि बिना गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा रखे,  हम बेहतरी की कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि योगदा सत्संग पाठमाला जो योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा योगदा भक्तों को प्रदान की जाती है, वो पाठमाला, सामान्य पाठमाला नहीं हैं, यह पाठमाला हम सभी को ईश्वरानुभूति प्राप्त गुरुओं के साथ एकाकार होना सीखाती है। गुरु तो साफ कहते है कि मैं आपकी आत्माओं से होकर गुजरता हूं।

उन्होंने कहा कि आप क्रिया योग में दीक्षित हो रहे हैं, इसलिए आप कोई ऐसा काम न करें, जिसे छुपाना पड़ें, क्योंकि गुरु से कुछ छुपाया भी नहीं जा सकता, वो तो सर्वव्यापी हैं, वो आप पर नजर रखे हुए हैं, ये समझ लेना चाहिए। स्वामी शुद्धानन्द ने कहा कि यद्यपि वर्तमान में योगदा सत्संग से जुड़े गुरु भौतिक शरीर में नहीं हैं, पर वे योगदा भक्तों से दूर भी नहीं हैं, ये तो जब आप गुरु से प्रेम करना जान लेंगे तो आपको गुरु की आत्मानुभूति आपको स्वयं पता लग जायेगा, क्योंकि हमारे गुरु हमारे निरन्तर आध्यात्मिक उत्थान के लिए लगे रहते हैं, यह जरुर याद रखें कि परमहंस योगानन्द हमारे अंतिम गुरु है।

उन्होंने कहा कि क्रिया योग की दीक्षा से ही आप गुरु-शिष्य परम्परा में प्रवेश करते हैं। इससे फिर आप आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। आप जितनी श्रद्धा और प्रेम गुरु से रखेंगे, निश्चय ही गुरु आपको उससे कई गुणा वेग से आपके आध्यात्मिक उत्थान के लिए आपका मार्ग प्रशस्त करेंगे। उन्होंने कहा कि अगर आप गुरु को छोड़ना भी चाहेंगे तो ये गुरु ऐसे है कि आपको छोड़नेवाले नहीं, ये आप जान लें।

उन्होंने कहा कि हम धन्य है कि जिन श्रीकृष्ण ने हमें क्रिया योग दिया। उस क्रिया योग को महावतार बाबा जी ने लाहिड़ी महाशय को, लाहिड़ी महाशय ने युक्तेश्वर गिरि जी को और फिर युक्तेश्वर गिरि से होते हुए हमारे परमप्रिय गुरुदेव परमहंस योगानन्द जी के माध्यम से होता हुआ आज हम सभी के लिए सरल हो गया। उन्होंने सभी से कहा कि आप क्रिया योग के साथ धर्मपूर्वक आचरण और भगवान को पाने की दृढ़ इच्छा शक्ति को हमेशा अपने हृदय में प्रज्जवलित करते रहे, फिर देखे कि आप कितने आनन्द में हैं।