जीवन में आध्यात्मिक प्रगति की पहली कुंजी अच्छे गुरु का मिलना है – ब्रह्मचारी अतुलानन्द
रांची के योगदा सत्संग मठ में आयोजित साप्ताहिक सत्संग को संबोधित करते हुए वरीय ब्रह्मचारी अतुलानन्द ने कहा कि जब तक हमें अच्छे गुरु नहीं मिलेंगे, तब तक हमारी आध्यात्मिक यात्रा सुचारु रुप से प्रारम्भ नहीं होगी, यह सभी को हृदयस्थ कर लेनी चाहिए। ब्रह्मचारी अतुलानन्द आज “आध्यात्मिक प्रगति की कुंजियां” विषय पर अपनी बातें रख रहे थे। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक प्रगति की पहली शर्त ही – अच्छे गुरु का जीवन में होना जरुरी है।
उन्होंने कहा कि अगर गुरु युक्तेश्वर गिरि जैसे मिल जाये तो फिर क्या कहना। उन्होंने इसे समझाने के लिए परमहंस योगानन्द और युक्तेश्वर गिरि के बीच हुए प्रथम मुलाकात और परमहंस योगानन्द जी पर उसके पड़े प्रभाव को विस्तार से बताया, जिसका प्रभाव स्पष्ट रुप से ध्यान केन्द्र में सत्संग का लाभ ले रहे लोगों पर दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि हमें अच्छे गुरु प्राप्त हो, इसके लिए हमें निरन्तर ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बिना अच्छे गुरु के आप आध्यात्मिक प्रगति पर नहीं जा सकते और अच्छे गुरु पाने के लिए आपके हृदय का पवित्र होना और उन्हें समझने की शक्ति का होना भी आवश्यक है, नहीं तो आपके सामने से आपके अच्छे गुरु निकल जायेंगे, आपको ऐहसास भी नहीं होगा, इसलिए आपके अंदर उस आत्मा का होना आवश्यक हैं, जो यह बता सकें कि आपके गुरु आपके पास खड़े हैं। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि एक अच्छा गुरु ही हमें माया के प्रभाव से बाहर निकाल सकते हैं। ईश्वर गुरु के द्व्रारा ही हमें अनुशासित करते हैं। गुरु मिल जाये तो हमें भटकना नहीं हैं, उनके बताये मार्गों पर जीवन पर्यन्त चलते रहना है। इसमें कुछ भी अलग से मिलावट नहीं करनी है।
उन्होंने आध्यात्मिक प्रगति की दुसरी कुंजी के रुप में यम-नियम को बताया। स्वामी अतुलानन्द ने कहा कि हमें बिना किसी किन्तु-परन्तु के यम-नियम को पालन करना है। उन्होंने कहा कि जब आप कर्म करें तो खुद के लिए न करें, उस कर्म को ईश्वर को सुपूर्द कर दें, अगर आप ऐसा करते हैं तो यही कर्म योग हो जाता है, क्योंकि इससे अहं भाव समाप्त हो जाता है।
अतुलानन्द ने तीसरी कुंजी के रुप में ग्रुप मेडिटेशन को रखा, उनका कहना था कि अकेले ध्यान करना और समूह में ध्यान करना दोनों अलग-अलग बाते हैं। समूह में ध्यान करने से एक चेन बनता है, जिसके द्वारा आप एक दूसरे के मदद कर रहे होते हैं, जिसका प्रभाव सभी पर पड़ता है, क्योंकि समूह में ध्यान करने से उठनेवाली तरंगे आपके ध्यान को और मजबूत बनाती है।
अतुलानन्द ने चौथी कुंजी गुरु पर विश्वास और अपने अंदर हमेशा प्रसन्नता के बोध का होना बताया। उन्होंने कहा कि हर काम में गुरु और ईश्वर को साथ रखिये। आप आध्यात्मिक प्रगति की ओर बढ़ते जायेंगे। पांचवी कुंजी के रुप में उन्होंने सद् व्यवहार को रखा, तथा सभी से नकारात्मक प्रभावों से दूर रहना और सकारात्मक प्रभावों को अपनाने को कहा, उनका कहना था कि सकारात्मक प्रभावों से ही आप आध्यात्मिकता को अपनाते हैं, न कि नकारात्मकता से। इसे गांठ बांधने की आवश्यकता है।
अतुलानन्द ने यह भी कहा कि माया और ईश्वर दोनों आपको अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हैं। अगर नकारात्मकता रहेगी तो निश्चय ही माया आपको अपने प्रभाव में लेगी और सकारात्मकता है तो निश्चय ही आप ईश्वर के सन्निकट होंगे। ये आपके उपर हैं कि आप का झूकाव किस ओर हैं। छठी कुंजी के रुप में उनका कहना था कि भक्ति भी एक प्रकार की कुंजी है, जिसके द्वारा आप भगवान की ओर खींचते चले जाते हैं। आपके अंदर भक्ति की भावना हमेशा जागृत रहने चाहिए, आप हमेशा भगवान के भजन की ओर ध्यान दें। उनके भजनों में लीन रहे। प्रभु को याद करते रहे, जब आप ऐसा कर रहे हैं तो उस दौरान अपने गुरु को भी हृदय में साथ रखें।
अतुलानन्द ने कहा कि आध्यात्मिक प्रगति की ओर बढ़ने की सातवीं कुंजी समर्पण है। आप अपने शरीर और आत्मा दोनों का ईश्वर के प्रति समर्पण रखे। आठवीं कुंजी पर उनका कहना था कि अपेक्षा कभी नहीं रखनी चाहिए, अपेक्षा से दूरी बनाये रखें। कभी अपेक्षा न रखें, क्योंकि ये अपेक्षा आध्यात्मिक प्रगति की सबसे बड़ी बाधा है। इस बाधा से आप जितनी दूर रहेंगे। आप लाभ में रहेंगे। बिना किसी अपेक्षा के ध्यान करना सीखियें, क्योंकि अपेक्षा करेंगे तो ध्यान नहीं होगा। आध्यात्मिक प्रगति के लिए नौंवी कुंजी उन्होंने प्रयास को बताया।
उनका कहना था कि कभी भी प्रयास नहीं छोड़नी चाहिए। कोई जरुरी नहीं कि आप जो ध्यान कर रहे हैं, तो आपको पहले ही प्रयास में ईश्वर की प्राप्ति हो जाये, ऐसा कभी न हुआ हैं और न कभी होगा, पर निरन्तर प्रयास करेंगे तो आपको सफलता मिलेगी। उन्होंने इस प्रयास रुपी कुंजी को समझाने के लिए महाभारत की एक कथा भी सुनाई, जो अर्जुन-भीम और भोजन से संबंधित थी।
अतुलानन्द का यह भी कहना था कि कभी-कभी बदमाश बच्चा भी वो काम करा लेता हैं, जो शांत बच्चा नहीं करा सकता। ऐसे में आप ईश्वर को पाने के लिए बदमाश बच्चे की तरह भगवान से भी हठ करें, और वो हठ भगवान को पाने के लिए हो तो क्या कहने। उन्होंने कहा कि अच्छे आचरण और सकारात्मक सोच हमें आध्यात्मिकता के मार्ग को प्रशस्त करती है। फिर आप खुद देंखेंगे कि लाहिड़ी महाशय जो बार-बार कहते थे, वो हो गया, मतलब – बनत बनत बन जाये।