कांग्रेस का अध्यक्ष मल्लिकार्जुन हो या थरुर या त्रिपाठी, क्या फर्क पड़ता हैं नाचना तो सोनिया व राहुल के इशारों पर ही हैं
कांग्रेस का अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हो या शशि थरुर या के एन त्रिपाठी, क्या फर्क पड़ता हैं, जब काम उन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के इशारे पर ही करना है। क्या इनमें से कोई भी कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा, उसे हिम्मत है कि कांग्रेस के हित में खुद से फैसले ले लें। हर बात में उन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के चरण-कमलों में जाकर लोटना ही पड़ेगा।
इसलिए अच्छा रहेगा कि जैसे समाजवादी पार्टी ने बिना किसी लाग-लपेट के जैसे अखिलेश यादव को पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया, उधर राष्ट्रीय जनता दल ने सजायाफ्ता लालू यादव को अध्यक्ष बना दिया, उसी प्रकार राहुल या सोनिया में से किसी एक को खुद अध्यक्ष बना लेना चाहिए था, ऐसे भी कोई उनके खिलाफ जाने का अभी भी दुस्साहस नहीं कर सकता, तो ये सब की नौटंकी क्यों?
हमें तो आश्चर्य लगता है जब कांग्रेस के लिए काम करनेवालों पत्रकारों का समूह वर्तमान की कांग्रेस को 1885 वाली कांग्रेस से जोड़कर देखता है। हमनें तो जब से होश संभाला हैं तो अखबारों में इन्दिरा कांग्रेस को देखा है, जो गाय-बछड़े के चुनाव चिह्न से पंजा छाप लेकर चुनाव में कुद पड़ी थी। ऐसे में वर्तमान कांग्रेस को इन्दिरा कांग्रेस कहना ही ज्यादा बेहतर हैं, क्योंकि आज भी वर्तमान कांग्रेस का चुनाव चिह्न पंजा हैं और विशुद्ध रुप से यह इन्दिरा गांधी की एक पारिवारिक पार्टी हैं, जिस पर वर्तमान कांग्रेसियों की अंधश्रद्धा हैं, और ये लालू और मुलायम (वर्तमान में अखिलेश) की पार्टी से ज्यादा कुछ नहीं।
पिछले कई दिनों से देश के राष्ट्रीय अखबारों/क्षेत्रीय अखबारों व चैनलों/पोर्टलों में कांग्रेस समर्थक पत्रकारों की बाढ़ सी आ गई है। इसका मतलब है कि कांग्रेस की आईटी सेलवालों ने इस पर अच्छा रकम खर्च किया हैं, क्योंकि बिना रकम के इन दिनों कांग्रेस की जय-जय किसी हालत में संभव नहीं हैं। बिहार का ही एक महाभ्रष्ट पत्रकार को देख रहा हूं कि कांग्रेस के समर्थन में अपने बदन को गलाये जा रहा हैं, जो बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस ने पत्रकारों को अपनी ओर मिलाने के लिए कितनी कड़ी मेहनत की है।
हालांकि सच पूछा जाये तो बिहार-उत्तरप्रदेश जो दो प्रमुख प्रदेश माने जाते हैं, वहां से कांग्रेस पूरी तरह साफ है। जो भारत के बड़े-बड़े स्टेट हैं, वहां या तो भाजपा की सरकार है या भाजपा विरोधियों की सरकार हैं। आनेवाले समय में जो गुजरात में चुनाव होने हैं, वहां भाजपा ही आयेगी, चाहे ये कांग्रेसी कितना भी सिर पीट लें, क्योंकि चुनाव वहीं जीतता हैं, जिसके पास कार्यकर्ता होते हैं, कांग्रेस के पास कार्यकर्ता कहां है? पिछले कई दिनों से केरल में ही इनकी भारत यात्रा चल रही हैं, जहां भाजपा का उतना जनाधार नहीं हैं, वहां ले-देकर दो गठबंधनों की सरकार चलती है, और वहां भी कांग्रेस के हालत पस्त है।
दरअसल, कांग्रेस के लीडरान को पता ही नहीं हैं कि भारत की आम जनता में कांग्रेस की छवि वाहियात दल से ज्यादा कुछ भी नहीं है। उसका मूल कारण 2004 से लेकर 2014 तक की मनमोहन सिंह की सरकार रही। जो कहने को मनमोहन सिंह की सरकार थी, पर पर्दे के पीछे सोनिया और राहुल ही शासन चलाते रहे। इस दौरान हुआ क्या? जो अच्छे काम हुए, उसका श्रेय ये राहुल-सोनिया लेते रहे और जो गलत काम हुए, वो मनमोहन सिंह के मत्थे रखकर चलते बने। ऐसे में आम जनता के बीच बनी हुई इस अभुतपूर्व कारनामे को उनके माथे से डिलीट करना, कांग्रेसियों के लिए इतना आसान नहीं है।
जरा देखिये सोनिया-राहुल के दिमाग को, वे जनता को कितना बेवकूफ समझते हैं। कभी गहलोत तो कभी दिग्विजिय तो कभी थरुर को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नचाते रहे और अंत में जब देखा कि ये तो अभी उनकी बातें नहीं मान रहें तो कल क्या होगा, लीजिये ऐन मौके पर कहा कि मल्लिकार्जुन खड़गे उनकी पसंद हैं, सभी एक स्वर में जय-जय करने लगे। तो क्या इस हरकत को जनता नहीं देख रही।
कांग्रेस की यही हरकतें तो भाजपा को मजबूत करती है। भाजपा में भाजपा का अध्यक्ष कौन होगा? वो तो वर्तमान भाजपा अध्यक्ष को भी पता नहीं होता, क्योंकि भाजपा एक परिवार की पार्टी नहीं, भाजपा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, द्रमुक, राकपा, शिव-सेना आदि दलों की तरह किसी परिवार के गर्भ से जन्म नहीं ली हैं, इसलिए कांग्रेस जब तक अपनी गड़बड़ियों को नहीं सुधारती, 2024 क्या, 2029 में भी सत्ता में नहीं आयेगी। ये ध्रुव सत्य है।