अपनी बात

‘जिसकी लाठी उसकी भैस’ जैसी सोच रखनेवाली देश में सरकार नहीं, बल्कि कानून का राज स्थापित करनेवाली सरकार चाहिए – 2

कमाल हैं, आप दो बार लगातार दस वर्षों तक उसी वोटिंग मशीन के सहारे (2004-2014) सत्ता में आये तो वोटिंग मशीन ठीक और जैसे ही मोदी लगातार उसी वोटिंग मशीन के सहारे दो बार आ गये, तो वोटिंग मशीन खराब, आपने तो भारतीय चुनाव व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न खड़े कर दिये, भारत में तो खड़े किये ही, विदेशों में भी इसकी बुराई कर डाली, यानी मनपसन्द जनादेश आया तो ठीक, नहीं तो मशीन खराब?

विद्रोही24 का तो साफ मानना है कि सरकार किसी की भी बनें, वो इन एजेंसियों को अपने हित में इस्तेमाल करती ही हैं, और आनेवाले समय में करेंगी ही, ये सरकारें इन एजेंसियों को तोता भी बना देती है, लेकिन बहुत कम को पता है कि अभी भी इन एजेंसियों में ऐसे-ऐसे होनहार बैठे हैं, जो तोता बनने से इनकार ही नहीं करते, बल्कि समय आने पर तोता बनानेवालों को कबूतर अथवा चूहा बनाने से भी परहेज नहीं करते।

नया उदाहरण तो झारखण्ड ही दिख रहा है। जहां बड़े-बड़े तीस मारखां की हालत पस्त है और इनका हालत पस्त किसी दूसरे ने नहीं किया, बल्कि राष्ट्रीय एजेंसियों ने ही किया हैं, नहीं तो ये सारे के सारे देश को खोखला कर रहे थे। ताजा उदाहरण तो आईएएस अधिकारी पूजा सिंहल, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, अधिवक्ता राजीव कुमार, प्रेम प्रकाश जैसे लोग हैं जो प्रवर्तन निदेशालय की नजरों से बच नहीं सकें और जेल में हैं।

आश्चर्य इस बात की भी है कि जब राज्य में राज्य सरकार की अपनी एंजेसियां मौजूद है और सरयू राय जैसे नेता कई बार मैनहर्ट और अन्य घोटालों को लेकर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन तक पत्राचार करते हैं, तो हेमन्त सोरेन ने उनकी बात क्यों नहीं सुनी? आप अपनी एजेंसियों का गलत इस्तेमाल मत करिये पर सही इस्तेमाल तो करिये, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह जिनके शासनकाल में कई बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी व नेता तक राज्यस्तरीय एजेंसियों के कारण जेल की हवा खा रहे हैं, पर आपने तो ऐसा किया नहीं।

अंत में नेता कोई भी हो, चाहे वो सत्ता में हो या विपक्ष में हो। चाहे आईएएस/आईपीएस ही क्यों न हो? अगर उसने गलत किया हैं तो उसे बचाने का षडयंत्र ही देश के साथ बहुत बड़ी गद्दारी है, इसलिए कोई न बचे और न ऐसे लोगों को बचाने का प्रयास हो। देश में ताकत की नहीं मतलब जिसकी लाठी, उसकी भैस वाली लोकोक्ति के अनुसार काम करनेवाली सत्ता की जरुरत नहीं।

बल्कि कानून का शासन स्थापित करनेवाले/करानेवालों की सरकार कैसे स्थापित हो, इसके लिए जनता को अभी से प्रयास करनी चाहिए। किसी यात्रा से प्रभावित नहीं होना चाहिए और न ही किसी जूमले से। देश देखिये, दलों में चरित्रवान नेताओं को देखिये, पक्ष-विपक्ष सभी की सुनिये और जो आपकी आत्मा कहती हैं, बस वोट डाल आइये। ये समय की मांग है। (समाप्त)