नहीं रहे हरदिल अजीज वरीय पत्रकार अशोक अश्क, पूरे बिहार-झारखण्ड के पत्रकारों में शोक की लहर
अपने विचारों व प्रखर पत्रकारिता से सभी के दिलों पर राज करनेवाले अशोक अश्क अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनका निधन कल देर रात बोकारो में हो गया। आज जैसे ही सुबह हुई। उनके चाहनेवालों को खबर मिलनी शुरु हुई और सभी शोकाकुल हो गये। भला, अशोक अश्क का निधन और कोई दुखी न हो, यह कैसे हो सकता है, वो थे ही ऐसे।
मेरी उनसे मुलाकात तब हुई जब हम ईटीवी में थे, वे बोकारो से ईटीवी के संवाददाता थे और हम उस वक्त रांची में विद्यमान थे, लेकिन निकटता तब बढ़ी, जब मेरी पोस्टिंग धनबाद में हो गई। उसके बाद तो कोई ऐसा दिन ही नहीं हुआ कि उनसे बात नहीं हुई हो। अपने काम में निष्ठता, अपने प्रोफेशन में निष्ठता तथा व्यवहारिकता और एक-दूसरे को सम्मान करना कोई उनसे सीख सकता था, कोई घमंड नहीं, बस केवल आत्मीयता, उनके स्वभाव में था।
मैं जब भी उनसे मिलता, तो उनके मुख से सर्वप्रथम यहीं निकलता, वे बहुत ही भाव-विभोर होकर बोलते, क्योंकि वे जानते थे कि मैं यह वाक्य सुनना ज्यादा पसन्द करता हूं और वे एक बार कहते, मैं जानबूझकर उनसे और बुलवाने के लिए कह डालता, मजा नहीं आया, जरा तरन्नुम में बोला जाय और वे बड़ी ही मधुर ध्वनि में कह डालते – “ओंकार हर हर हर बम बम”। अब ये आवाज मुझे कभी सुनने को नहीं मिलेगी।
बोकारो के ही वरिष्ठ पत्रकार अजय अश्क, दिवंगत अशोक अश्क के बारे में बताते हुए कहते हैं कि पत्रकारिता जगत में झारखंड का एक जाना पहचाना नाम अशोक कुमार अश्क अब इस दुनिया में नहीं रहे। पांच दशक से ज्यादा समय तक अपनी बेबाक लेखनी के साथ भाई अशोक कुमार अश्क ने पत्रकारिता को जिया। 1975- 76 में जब इमरजेंसी का काल था, उस समय हम लोगों को पत्रकारिता की कोई समझ नहीं थी। तब भाई अशोक कुमार अश्क पत्रकारिता के चर्चित नाम बन चुके थे।
इन्होंने उस दौर में जब लिखना शुरू किया था तो इमरजेंसी कॉल में इन्हें भी पीड़ित होना पड़ा था। इन्हें क्या छापना है यह उस समय के अधिकारियों को बताना पड़ता था, जो इन्हें कभी भी उचित नहीं लगा। यही वजह रही कि इसके विरोध में तब की ब्लेम पत्रिका का संपादकीय सादा छोड़कर इन्होंने अपना विरोध प्रदर्शन किया था और पत्रकारिता की स्वतंत्रता का झंडा बुलंद किया था। आज वह इस दुनिया से विदा हो गए पर उन्होंने पत्रकारिता जगत में अपना जो योगदान दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।