दीपावली मायारुपी अंधकार पर विजय प्राप्त कर, स्वयं को अलौकिक प्रकाश से भर देने का पर्वः स्वामी ईश्वरानन्द
रांची के योगदा सत्संग मठ में आयोजित साप्ताहिक सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी ईश्वरानन्द ने योगदा भक्तों को कहा कि दीपावली स्वयं को प्रकाशित करने का पर्व है। माया रुपी अंधकार से स्वयं को मुक्त करने का पर्व है। असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश, चंचलता से स्थिरता व मृत्यु से अमरत्व को प्राप्त करने का पर्व है। इस दीपावली के दिन अगर इस भाव से हम दीपावली मनाते हैं, तो हम स्वयं भी और दूसरों को भी प्रकाशित करने का कार्य करते हैं।
स्वामी ईश्वरानन्द ने इस दौरान इसके एतिहासिक पक्ष को भी सभी के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि दीपावली के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान महालक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था, इसलिए इस दिन हम लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं। इसी दिन भगवान नृसिंह ने अत्याचारी राजा हिरण्यकशिपु का उद्धार किया था और प्रह्लाद को सत्ता सौंपी थी। आज के ही दिन श्रीकृष्ण व सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया था। इसी दिन भगवान श्रीराम अपने 14 वर्षो का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे थे। भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। सिक्खों के छठवें गुरु हरगोविन्द को 52 राजाओं के साथ मुगल शासक जहांगीर ने जेल से मुक्त किया था।
स्वामी ईश्वरानन्द ने कहा कि दीपावली का आध्यात्मिक पक्ष भी हैं, जिसे हमें जानना जरुरी हैं। क्रियायोगियों के लिए तो यह पर्व विशेष महत्व का है। उन्होंने कहा कि दीप करता क्या है? दीप प्रकाश फैलाता है। उन्होंने एक उदाहरण दिया कि आप कल्पना करिये कि आप उस गुफा में हैं, जहां कभी प्रकाश पहुंचा ही नहीं, हमेशा अंधेरा ही रहा है, अगर वहां दीप प्रज्वलित करेंगे तो क्या होगा? उस अंधेरी गुफा में भी दीप अपना काम करेगा, मतलब प्रकाश फैला देगा। इसी गुढ़ रहस्य को हमें समझना हैं।
उन्होंने कहा कि हम भी जन्म-जन्मान्तर से चले आ रहे माया के प्रभाव के कारण अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहे हैं और भय, चिन्ता, अवसाद आदि अंधकारों से स्वयं को ढंके हुए हैं, अगर हम अपने शरीर के अंदर जो आत्मा है, उसे समझ लेंगे तो क्या होगा, वहां भी एक दीप प्रज्वलित होगा और हम स्वयं को प्रकाशित कर लेंगे। उन्होंने कहा कि दरअसल हमनें अब तक स्वयं को पहचाना ही नहीं हैं। हम शरीर नहीं, हम आत्मा हैं। हम चेतना पुंज हैं, हम प्रकाश-पुंज हैं।
उन्होंने कहा कि हम ध्यान के द्वारा उस आत्मा को समझने की कोशिश करते हैं, उसे ज्ञान के द्वारा अपने अंतर्ज्ञान से जगाकर स्वयं प्रकाशित होने का कार्य करते हैं, तब हम दीपावली सही रुप में मना रहे होते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि परमहंस योगानन्द जी ने जो हमें टेक्नीक दी हैं, अगर उन टेक्निकों को गहराइयों से समझने की कोशिश करें और उसका अक्षरशः पालन करें तो हम पायेंगे कि हम स्वयं को प्रकाशित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि समझने की कोशिश कीजिये कि अंदर के दीप को प्रज्वलित कर प्रकाश फैलाने का नाम ही योग-विज्ञान है।
उन्होंने कहा कि सबका मूल स्रोत उर्जा ही हैं। उर्जा प्रकाश से ही प्राप्त होता है। हम सभी उस चेतना से ही निकलें हैं। जिसे हम परमेश्वर या परमात्मा कहते हैं। प्रकाश से ही सृष्टि की रचना हुई है। ये प्रकाश साधारण नहीं हैं। जब हम प्रकाश को जान लेंगे, तो हम सृष्टि के सारे रहस्यों को जान लेते हैं। प्रेम के मूल रहस्यों को जान लेते हैं। शांति-आनन्द को प्राप्त करते हैं।
स्वामी ईश्वरानन्द ने कहा कि गुरु जी के टेक्नीक को समझिये। हं-सः से आप अपने मन की चंचलता को शांत करते हैं। ओम् टेक्नीक से आप ओम् स्पन्दन को सुनने का प्रयास करते हैं। क्रिया से हम उस प्रकाश को जागृत करने का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकाश को पाने के लिए आपको शरीर के स्पाइनल वे पर आना ही होगा। बिना इसके संभव नहीं।
उन्होंने कहा कि जो वाक्य या जो शब्द संतों व ज्ञानियों ने हमारे लिए कहे हैं। उन वाक्यों/शब्दों को भी जानने की जरुरत हैं। वह भी एक मार्ग हैं, उस प्रकाश को समझने का। जब भी लगे कि आप भटक रहे हैं, आप गुरु जी की लिखित पुस्तकों पर अपना ध्यान एकाग्र करिये। उसे पढ़ने की कोशिश करिये, आपको रास्ता दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि बस आप स्वयं भी प्रकाशित होइये और दूसरे को भी प्रकाशित करिये।