अपनी बात

महापर्व छठ को लेकर बिहार/झारखण्ड के अखबारों/चैनलों के पास बतकुचन/बकैती के सिवा और क्या हैं?

सबसे पहले छठ को लेकर अखबारों या चैनलों में छपनेवाले या दिखाये जानेवाले बतकुचनों पर ध्यान दीजिये… रांची से प्रकाशित एक अखबार प्रभात खबर ने किशोर कुणाल की आर्टिकल जो छठ से संबंधित है, प्रकाशित किया है। छठ को लेकर आज निकाले गये अपने विशेष पृष्ठ के प्रथम पृष्ठ पर ‘1700 साल से पूजी जा रहीं छठी मइया’ के हेडिंग से किशोर कुणाल की यह आलेख प्रकाशित की है। जिसमें वे लिखते हैं कि षष्ठी तिथि को स्कन्द माता की पूजा होती है, संभवतः ये दोनों तिथियां एक हो जाने की वजह से सूर्य को अर्घ (सही शब्द – अर्घ्य, हमें नहीं लगता कि किशोर कुणाल अर्घ लिखे होंगे।) और छठी माता की पूजा का विधान प्रचलित हुआ।

यही अखबार प्रथम पृष्ठ पर ही ‘चार दिवसीय छठ महापर्व आज से शुरू’ हेडिंग से प्रकाशित अपने चार चरणों में से तीसरे चरण में लिखा है – सायंकाल में सूर्यदेव और उनकी पत्नी देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है। साथ ही चार चरणों में नक्षत्र व विभिन्न योगों की चर्चा की हैं, जबकि सच्चाई यही है कि सूर्योपासना से इन नक्षत्रों-योगों का कोई लेना देना ही नहीं हैं।

अब इसी के दूसरे पृष्ठ पर आइये यही अखबार ‘भगवान सूर्य की बहन हैं षष्ठी देवी, इसलिए दोनों की पूजा’ हेडिंग से खबर छाप दी। अब यहां षष्ठी देवी बहन हो गई सूर्य की और इसकी पूजा होती है, ऐसा अखबार ने किसी विद्वान के मुख से कहलवा दिया, अब ऐसे में भ्रम की स्थिति होगी या नहीं। इसी में आप कई प्रमाण देखेंगे, जिसका किसी से कोई लेना-देना नहीं, पर चूंकि छठ पर कुछ न कुछ देना हैं तो लिख मारो, चाहे छठव्रतियों के ज्ञान का फलूदा ही क्यों न निकल जाये।

ठीक यही हाल, चैनलों का है। चैनलवाले ऐसे मौके पर उन बेवकूफ पंडितों को ढूंढते हैं, जो इस समय अपनी मार्केटिंग करवाना चाहते हैं। वे उनसे मुंहमांगी रकम लेते हैं और अपना एक स्लॉट जो आधे घंटे या पन्द्रह मिनट के होते हैं, उनसे बेच देते हैं फिर उसमें एक एंकर जो ज्यादातर महिलाएं होती हैं, उसे बिठा देते हैं और उस तथाकथित पंडित जिसको छठ के बारे में कुछ भी मालूम नहीं होता, उसे बिठाकर दर्शकों व छठव्रतियों के ज्ञान की धज्जियां उड़ा देते हैं। यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं, क्योंकि मैंने कई चैनलों में काम किया है और इस घटियास्तर की परम्परा को टीवी पर चलते/चलाते मैंने अपनी आंखों से देखा हैं।

आश्चर्य इस बात की हैं, जिन पंडितों को इसकी बारीकी से ज्ञान होता हैं, वे उसे बुलाते नहीं और न ही सम्मान करते हैं, क्योंकि वे उनके स्लॉट के लिए पैसे उपलब्ध नहीं करा सकते और न अखबारों को समय-समय पर उपकृत कर सकते हैं, इसीलिये ये सब धर्म के नाम पर गोरखधंधा खूब चल रहा हैं, ठीक उसी प्रकार, जैसे दीपावली के दो दिन पूर्व जो धनत्रयोदशी आता हैं, ये अखबार व चैनल वाले उस धनत्रयोदशी को धन खरीदने का दिन बताकर, अच्छे-अच्छों को मूर्ख बना देते हैं, जबकि धनत्रयोदशी स्वास्थ्य रुपी धन पर ध्यान देने का पर्व हैं, क्योंकि इसी दिन धन्वतरि जयंती भी मनायी जाती हैं। हमारे यहां तो भौतिक वस्तुओं को कभी माथे पर बिठाया ही नहीं गया, जैसे इस श्लोक को देखिये…

अधमाः धनम् इच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमाः।

उत्तमाः मानं इच्छन्ति, मानो हि महतां धनम्।।

अर्थात् जो दुष्ट होते हैं, वे सिर्फ धन की कामना करते हैं, जो मध्यम वर्गीय हैं वे धन और मान दोनों की कामना करते हैं, पर जो सर्वश्रेष्ठ लोग हैं वे सिर्फ सम्मान की कामना करते हैं, क्योंकि सम्मान से बढ़कर उनके लिए कोई दुसरा धन नहीं। लेकिन इन अखबारों/चैनलों ने धन को ही सर्वधनप्रधान बता दिया। उसी प्रकार छठ को लेकर ये अखबार नाना प्रकार के भ्रांतियों को अभी जन्म दे रहे हैं, जिससे भय है कि आनेवाले समय में इस महापर्व छठ पर भी बाह्यांडबर हावी होंगे और ये पर्व इस बाह्यांडबर में आकर अपनी सर्वश्रेष्ठता खो देगा।

रांची में ही एक नया अखबार शुभम संदेश जो अभी रेंगना शुरु किया हैं, उसमें एक महान विद्वान का आलेख छपा हैं, उस आलेख में छठ को लेकर नया शब्द खोज कर निकाला गया हैं। उस शब्द का नाम है – छठोत्सव। अब भला ये छठ, छठोत्सव कैसे बन गया। क्या आलेख लिखनेवाले को यह भी नहीं पता कि उत्सव और पर्व में क्या अन्तर हैं? जब इन महान विभूतियों को उत्सव और पर्व में अन्तर नहीं मालूम तो फिर उन्होंने ये शब्द छठोत्सव कहां से निकाल लिया? अगर आप अखबारों के नियमित पाठक हैं तो छठोत्सव अपने मुंह से ज्यादा नहीं, छह बार बोलकर दिखा दीजिये, पहली बात कि ये शब्द कभी जुबान पर चढ़ेगा ही नहीं, क्योंकि ऐसे-ऐसे शब्द बोलने के लिए हमारी जिह्वा नहीं बनीं।

दरअसल हम सभी को चाहिए कि महापर्व छठ को परम्परागत तरीके से मनायें, अगर आपको छठ मनाना नहीं आता तो आपके घर में जो बुढ़ी महिलाएं हैं या आपके पास-पड़ोस में जो बुढ़ी महिलाएं हैं, उनके पास जाएं, उनके पांव दबाएं, उनसे प्यार से पूछें, वो जो आपको छठ के बारे में बतायेंगी, वो इन अधकचरों अखबारों/चैनलों से कही बेहतर होगा। नहीं तो आनेवाले दिनों में यही अखबार/चैनल आपके बुद्धि को हर लेने के बाद किसी मूर्ख से ये कहलवा देंगे कि हाथी पर बैठकर अर्घ्य देने से हाथ का दर्द खत्म हो जाता हैं, गदहे पर बैठकर अर्घ्य देने से गर्दन का दर्द दूर हो जाता हैं और अखबारों/चैनलों में छपी या दिखाई जानेवाली इन खबरों को देख/पढ़ कई गदहे, गदहे पर सवार होकर अर्घ्य देते नजर आयेंगे, उस वक्त आपकी व आपके समाज की क्या स्थिति होगी? परिकल्पना आज ही कर लीजिये, इसलिए महापर्व छठ की गरिमा व उसकी पवित्रता को गिरने से बचायें, अखबारों/चैनलों को ना कहना शुरु करिये।