तुम्हें नहीं पता, बिना हेलमेट पहनकर दुपहिये चलाने का अधिकार सिर्फ झारखण्ड के CM को है
बिना हेलमेट पहन कर दुपहिये वाहन चलाने का अधिकार तो सिर्फ हमें यानी सीएम रघुवर दास को हैं, तुमलोग बिना हेलमेट पहन कर कैसे चल दिये? शायद ऐसा ही कुछ झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास इन युवाओं से कह रहे हैं। जरा अब उपरोक्त फोटों को ध्यान से देखिये, एक अखबार में छपी है। सिदगोड़ा स्थित सूर्य मंदिर से मुख्यमंत्री रघुवर दास सोमवार को सुबह दस बजे, रांची जाने के लिए जैसे ही निकले। इन युवाओं पर इनकी नजर पड़ी। उन्होंने रोका, कुछ सवाल दागे और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया।
अब सवाल उठता है कि ये युवा बिना हेलमेट पहने गाड़ी चला रहे थे, तो सीएम ने इन्हें पुलिस के हवाले कर दिया और इन युवाओं को पुलिस ने चेतावनी देकर छोड़ दिया। कुछ ऐसी ही हरकत, एक महीने पहले सीएम रघुवर दास, जमशेदपुर में ही की थी, तो उस वक्त सीएम का ये अंतःज्ञान कहा चला गया था, क्या उन पर ये नियम लागू नहीं होता?
सवाल उन अखबारों और चैनलवालों से भी तथा वहां काम करनेवाले संपादकों व प्रधान संपादकों से इसे मुद्दा क्यों नहीं बनाया, आज की तरह उसे प्रथम पृष्ठ पर क्यों नहीं छापा? आखिर सीएम के उस दिन की गलती को जनता के समक्ष रखने की बजाय, उसे महिमामंडित क्यों किया? इसका मतलब हुआ कि सीएम और प्रधानसंपादकों की गलती, गलती नहीं होती, और सामान्य लोगों की गलती, गलती होती है। हम ऐसी नेतागिरी और ऐसी पत्रकारिता की कड़ी भर्त्सना करते हैं और धिक्कारते हैं ऐसे लोगों को, जो कानून तोड़नेवालों में भी भेद-भाव करते हैं।
कुल मिलाकर, ये तो वहीं बात हुई, कानून तोड़ने का अधिकार, सिर्फ और सिर्फ सीएम, कनफूंकवों, आइएएस-आइपीएस अधिकारियों और अखबारों व चैनलों में काम करनेवाले दलाल टाइप संपादकों की हैं, जो समाचार को प्रस्तुत करने में भी दोगली नीति अपनाते हैं।