जन-जातीय भाषा मुंडारी में रामायण लिख रहे छत्रपाल सिंह मुंडा ने बाल कांड को पूरा करने में सफलता पाई, अब अयोध्याकांड पर काम शुरू
यह बड़े ही सौभाग्य की बात है कि 15 नवम्बर आने में अब कुछ ही दिन शेष रह गये हैं, यानी भगवान बिरसा के जन्मदिन के कुछ ही दिन शेष रह गये हैं। छत्रपाल सिंह मुंडा द्वारा लिखे जा रहे ‘मुंडारी रामायण’ का प्रथम कांड यानी बाल कांड परिपूर्ण कर लिया गया। ऐसे तो राम-कथा कई भाषाओं में लिखी जा चुकी हैं और सभी भाषाओं में राम-कथा को वहीं स्थान मिला, जैसा कि वाल्मीकि रामायण अथवा श्रीरामचरितमानस को प्राप्त हैं।
लेकिन जन-जातीय भाषा, उसमें भी मुंडारी भाषा में राम-कथा को लिखने का साहस किसी ने भी नहीं किया, पर ये साहस छत्रपाल सिंह मुंडा ने किया और वे निरन्तर जनजातीय भाषा में स्वलिखित ‘मुंडारी रामायण’ को पूरा करने में जी-जान से जुटे हैं, उनके इस प्रयास को देख, मुंडारी समाज के लोग भी उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे।
ज्ञातव्य है कि छत्रपाल सिंह मुंडा, स्व. मझिया मुंडा के सुपुत्र है और वे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में उप-निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं तथा जन-जातीय भाषा में राम-कथा को वे नया रूप देने में लगे हैं। बाल-कांड का मुंडारी भाषा में पूरी तरह अनुवाद करने के बाद ये आगे अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड, लंका काण्ड और उत्तर कांड की ओर आगे बढ़ेंगे।
छत्रपाल सिंह मुंडा द्वारा लिखे जा रहे इस मुंडारी रामायण से लोगों को अपनी जन-जातीय भाषा में राम-कथा को जानने और समझने का मौका मिलेगा। ऐसे भी भगवान राम यहां के जन-जातियों में ऐसे घुले-मिले हैं कि उन्हें इस जन-जातीय समाज से कभी अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसी का तो प्रभाव है कि छत्रपाल सिंह मुंडा ने राम-कथा के बाल कांड को पूरी तरह से पूर्ण कर, अयोध्या कांड की ओर आगे बढ़ने का फैसला लिया।
खूंटी में रहनेवाले समाजसेवी निर्मल सिंह, विद्रोही 24 से बातचीत के क्रम में कहते है कि उन्हें खुशी के साथ-साथ आश्चर्य भी हो रहा है कि छत्रपाल सिंह मुंडा ने असंभव को संभव सा कर दिखाया है। मुंडारी जैसी जन-जातीय भाषा में राम-कथा का लिखा जाना, इस बात का साक्षी है कि इससे रामकथा को समझने और जानने में मुंडारी भाषा के ग्रामीणों को और बल मिलेगा। उन्होंने इस महती कार्य के लिए छत्रपाल सिंह मुंडा की भूरि-भूरि प्रशंसा की।