गांव न हो गया बच्चा हो गया, जिसको देखो वह उसे गोद लेने की ही बात कर रहा
गांव न हो गया कि एक बच्चा हो गया, जिसको देखों वह गांव गोद लेने को कह रहा हैं। जी हां, एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सासंदों को एक – एक गांव गोद लेने को क्या कह दिया, अब सीएम रघुवर दास भी ये कहने लगे कि हर अधिकारी एक गांव को गोद ले लें। भाई, क्या अधिकारियों को अब कोई काम नहीं रह गया, अब वे एक गांव गोद लेंगे, तब जाकर गांव का विकास होगा? इसका मतलब हो गया कि पूरे राज्य में सिस्टम फेल हो गया हैं, इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि मुख्यमंत्री की बात भी हवा में उड़ जा रही हैं, अगर ऐसा हैं तो ऐसी सरकार कि झारखण्ड में आवश्यकता क्यों? क्यों न इसे बाहर का रास्ता दिखाया जाये।
हमसे नहीं होगा, अधिकारी एक गांव को गोद लें
याद करिये, बार-बार राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ताल ठोंककर कहते है कि पूर्व में इस राज्य में बहुमत की सरकार नहीं थी, इसीलिए ये राज्य विकास से वंचित रह गया। पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार आई है, और यहां विकास की गंगा अविरल रुप से बह रह हैं। ये अपनी ठकुरसोहाती में अपनी ही पार्टी की ओर से बने मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा के शासनकाल पर भी प्रश्नचिह्न लगा देते है, पर जब अपने पर आती है, सिस्टम चारों और से फेल हैं तो उनकी बुद्धि ध्वस्त होती दीख जाती है, तभी तो हार-पछता कर कह देते है कि हर अधिकारी एक गांव को गोद लें।
कोई ज्यादा दिन की बात नहीं हैं, शुक्रवार को प्रोजेक्ट भवन मे विकास योजनाओं की समीक्षा हो रही थी, जिस दरम्यान राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यह बात कह दी। उन्होंने बयान दिया कि उपायुक्त समेत सभी वरीय अधिकारियों को एक-एक गांव गोद लेना चाहिए। अधिकारी हर रविवार को गोद लिये गांव में जाये और वहां के लोगों से मिले। उनकी परेशानी जाने और उसका समाधान करें। गांव को आदर्श बनायें। अब सवाल उठता है कि जब प्रधानमंत्री ने सासंदों से निवेदन किया कि हर सांसद एक – एक गांव गोद लें और जब प्रधानमंत्री के इस घोषणा की, स्वयं भाजपा के सांसदों ने ही हवा निकाल दी, तो फिर मुख्यमंत्री की औकात क्या कि वे अधिकारियों से, वे काम करा लेंगे, जो भाजपा सांसदों ने नहीं किये?
यहां के प्रशासनिक अधिकारियों को गांव के विकास से क्या मतलब?
हम कैसे मान लें, जिन उपायुक्तों, सचिवों, प्रधान सचिवों पर विभिन्न विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने की जिम्मेवारी है। जो उन विकास योजनाओं को जमीन पर न उतारकर, अपनी पत्नी और बेटों के विकास पर ज्यादा ध्यान देते है, वे गांव को गोद लेकर, गांव का सर्वांगीन विकास करा देंगे, ऐसे भी किन्हीं उपायुक्तों, सचिवों, प्रधानसचिवों व भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को किसी ने रोक कर रखा हैं क्या कि आप गांवों का विकास न करें। अरे ये तो गांवों के विकास संबंधी योजनाओं से ही तो अपना पेट भरते हैं, इन्हें विकास से क्या मतलब?
सच तो ये हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गांव को आर्थिक रुप से मजबूत करने के लिए एक से एक योजनाएं लागू की, पर जरा पूछिए झारखण्ड में कार्यरत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से, कि उन्होंने क्या किया? उन्होंने इन सारी योजनाओं से चीन को आर्थिक रुप से मजबूत करने में अपनी सारी शक्ति लगा दी। उसका एक उदाहरण, मैं देता हूं। पिछले साल की बात है, मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र का सीधी बात कार्यक्रम चल रहा था। जिसमें मुख्यमंत्री रघुवर दास, मुख्यमंत्री के सचिव सुनील कुमार बर्णवाल, विकास आयुक्त अमित खरे मौजूद थे।
जब दुमका से आये फरियादी की किसी ने नहीं सुनी और हंसते रहे
दुमका से एक फरियादी ने गुहार लगाई कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुमका आये थे, और उस दिन जो ऋण वितरण हुआ था, उसमें उसे उसी दौरान बैंक से एक बैटरी चालित ईरिक्शा कर्ज के रुप में मिला था, जो एक महीने में ही खराब हो गया, अब वह क्या करें कैसे बैंक का ऋण चुकाए और कैसे अपना घर चलाएं? उस दिन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुस्कुराकर कहा था कि बैंक अगर चीनी सामान देगा तो यहीं होगा, और वह फरियादी रोता हुआ, वहां से निकल गया, किसी ने नहीं सुनी, उसकी फरियाद।
जो लोग अमित खरे को बहुत ईमानदार कहते हैं, उन्होंने भी उसके कष्ट को दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, उस फरियादी का दर्द व रुदण चीख-चीखकर बता रहा था कि कैसे ग्रामीणों के चीत्कार पर ये सरकार और उसके मातहत काम करनेवाले अधिकारी, गांव को सत्यानाश करने पर तुले हैं और हमारा पड़ोसी चीन, बीजिंग और शंघाई मैं बैठकर यही के नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों से काम लेकर स्वयं को मजबूत बनाने में लगा हैं और फिर उसी से भारत की सरहदों को छोटा करने में ज्यादा दिमाग लगा रहा हैं।