राजनीति

स्थानीय व नियोजन नीति पर जिद छोड़े हेमन्त, 9वीं शेड्यूल में जाने पर भी न्यायालय में होगी इसकी समीक्षा, कोर्ट की आपत्तियों पर ध्यान दें – बाबूलाल

भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि झारखंड सरकार जो भी नियोजन नीति बनावें, वह झारखंड की धरती पर बनाएं। इसको लेकर एक दो दिन लंबी बहस करनी पड़े तो करें, जिन निर्णयों पर कोर्ट की आपत्ति है सभी को देखते हुए बच्चों के भविष्य के लिए और क्या बेहतर होगा, सभी को समाहित करते हुए एक ठोस और राज्यहित में नीति बनाने की आवश्यकता है। यह बच्चों के भविष्य के लिए बेहतर होगा और सरकार के लिए उचित भी। राज्य सरकार को इस पर जिद छोड़ देनी चाहिए और नौजवानों  के भविष्य पर राजनीति नहीं हो। श्री मरांडी विधानसभा में पत्रकारों से बात करते हुए ये बातें कही।

हिन्दी और अंग्रेजी को छोड़ ऊर्दू को प्राथमिकता देना अव्यवहारिक

श्री मरांडी ने कहा कि हेमंत सोरेन की सरकार ने 2021 में नियोजन नीति बनाई थी, जिसमें प्रावधान किया गया था कि जो लोग 10वीं और 12वीं झारखंड से करेंगे वहीं नौकरी के लिए योग्य होंगे। जो लोग झारखंड से बाहर से पढ़ कर आएंगे वे इसके योग्य नहीं होंगे। एक प्रकार से यह नीति ही अव्यवहारिक थी। दूसरा उसमें यह किया गया था कि हिंदी और अंग्रेजी को समाप्त करके उर्दू को प्राथमिकता दी गई थी।

इन दो मुद्दों को लेकर लोग हाईकोर्ट चले गए थे और हाईकोर्ट ने भी सरकार की इस निर्णय को निरस्त कर दिया। झारखंड के लोग सड़क पर आंदोलनरत हैं। झारखंड सरकार की जो बातें विभिन्न स्रोतों से सामने आ रही है कि अब झारखंड सरकार हाई कोर्ट के निर्णय के विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। दूसरी ओर स्थानीय और नियोजन नीति एवम् ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण को 9th शेड्यूल में डालने को लेकर राजभवन की ओर कुच किया है।

हेमन्त सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती

श्री मरांडी ने कहा कि पार्टी की ओर से और मेरा सरकार से आग्रह है कि झारखंड के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करें और उन्हें और अंधेरी गलियों की और नहीं धकेलें। चूंकि स्थानीय और नियोजन नीति तय करने का काम राज्य सरकार का होता है। राज्य सरकार अपने जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकती है और दूसरों के कंधों पर फेंक नहीं सकती। इसलिए सरकार से  कहूंगा कि वह बिना विलंब किए अब यही पर बैठकर निर्णय करे।

सरकार अगर सोच रही है 9th शेड्यूल में चला जाएगा तो कोर्ट उसकी समीक्षा नहीं करेगा तो यह गलत है। 2007 में सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय आ चुका है। कोर्ट ने साफ कहा है कि कोई भी कानून सरकार बनाती है और 9th शेड्यूल में डालती है कोई सोचता है कि वह कानून बन जाएगा, ऐसा नहीं है कोर्ट उसकी भी समीक्षा कर सकती है। ऐसी स्थिति में मामला तो और फंसेगा।

श्री मरांडी ने उदाहरण स्वरूप कहा कि आज देश भर में एक विषय को लेकर सर्वत्र चर्चा हो रही है। जजों की नियुक्ति के लिए जो कॉलेजियम था उस सिस्टम के बदले केंद्र सरकार ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइटमेंट कमीशन जो गठित की थी, लोकसभा और राज्यसभा से सर्वसम्मत से जो कानून बना लेकिन इसकी भी सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा की। मामला अब भी लटका है। सभी जगह चर्चा और बहस हो रही है। श्री मरांडी ने कहा कि मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में राज्य सरकार को बच्चों के भविष्य से कदापि खिलवाड़ नहीं करनी चाहिए। राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है और उनकी जिम्मेवारी भी बनती है।