पहचानिये इन्हें, ये हैं भाजपा के तारणहार मतलब झारखण्ड से भाजपा साफ, 2024 में भी बनेगी राज्य में बहुमत के साथ हेमन्त सरकार
पहचानिये इन्हें, ये लोग राज्य में भाजपा के तारणहार हैं, जिन्हें जनता तो दूर, कार्यकर्ता भी पसन्द नहीं करते, ये लोग इस प्रकार घमंड में चूर रहते है, जैसे लगता है कि ये अगर भाजपा में नहीं रहेंगे तो भाजपा का कल्याण ही नहीं होगा और न ही भाजपा को लोकसभा या विधानसभा की सीटें आ पायेंगी। सच्चाई यह है कि 2014 का लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव दोनों चुनावों में जनता ने इन नेताओं के कहने पर भाजपा के झोली में वोट नहीं डाल दिये थे और न ही सत्ता में ले आये थे, ये शत प्रतिशत मोदी लहर का कमाल था।
जिस लहर पर सवार होकर रघुवर दास जैसे लोग राज्य के मुख्यमंत्री पद तक पहुंच गये और इनकी कृपा से कनफूंकवों ने राज्य में भाजपा की ऐसी बांट लगाई कि 2019 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयास के बावजूद भाजपा सत्ता से बहुत दूर ही नहीं, बल्कि वर्तमान में देखा जाये तो हाशिये पर चली गई है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो दीपक प्रकाश हो या आदित्य साहू या प्रदीप वर्मा इनके पास कितनी राजनीतिक शक्ति हैं, उत्तर होगा – शून्य। पर इन्होंने फायदा कितना उठाया, देखते ही देखते इनमें से दो राज्यसभा पहुंच गये, राज्यसभा तो जानते ही होंगे, मतलब छह वर्षों तक इन्हें मस्ती काटने और बयान देने का सर्टिफिकेट मिल गया और उसके बाद अगर सांसद नहीं भी बने तो क्या, जीवन भर उन्हें और उनके परिवार को पारिवारिक पेंशन मिलता रहेगा, पर इनसे आम जनता या भाजपा के कार्यकर्ताओं को क्या मिला?
अब इसी फोटो में एक प्रदीप वर्मा नजर आ रहे हैं, इन्होंने भाजपा को क्या दिया या इनसे भाजपा को क्या फायदा, तो दरअसल इनके हाथ में टाटीसिलवे स्थित सरला बिरला संस्थान हैं, ये समय-समय पर आरएसएस व भाजपा के लोगों को उक्त संस्थान का राजनीतिक इस्तेमाल करने का अवसर प्रदान कर देते हैं और लीजिये इसका फायदा ऐसा हुआ कि ये भाजपा के महामंत्री हो गये। इसी भाजपा में एक ऐसा भी विधायक हुआ, जिसमें घिनौने आरोप लगे, पर रघुवर जी की ऐसी कृपा हुई कि वो विधायक ही नहीं बना, सारे आरोपों से भी मुक्त हो गया तो क्या भाजपा इसी के लिए बनी है।
भाजपा के ही एक विक्षुब्ध नेता जो अपना नाम नहीं छापने के शर्त पर बताते है कि एक समय था, जब भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी मानी जाती थी, पर आज क्या है? भाजपा विशुद्ध रुप से लेन-देन वाली पार्टी हो गई है। जो जितना बड़ा अर्थ (धन) व व्यवसाय में मजबूत, चाहे वो अनैतिक ही क्यों न हो, वो मठाधीश बनता जा रहा हैं, दिल्ली से आनेवाले बड़े मठाधीश नेता उनके साथ बैठकर बैठकें करते, फोटो खिंचवाते, बयान देते हैं, इससे बड़ी शर्मनाक बातें और क्या हो सकती हैं, पर जिन्होंने भाजपा का झंडा ढोया, आज विपरीत परिस्थितियों में भी भाजपा को छोड़ने की सपने में भी नहीं सोच सकते, जरा पूछिये क्या ये दिल्ली से आनेवाले नेता उन भाजपा नेताओं के पास जाते हैं? उनकी मनःस्थिति को समझने की कोशिश करते हैं?
राजनीतिक पंडितों की मानें तो संघ जिसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा हैं, जरा पूछिये कि संघ से जुड़े लोग कर क्या रहे हैं, तो वे इन भाजपा नेताओं के घर में जो मांगलिक कार्यक्रम होते हैं, उनके आमंत्रण पत्र बांटने में लग गये हैं, भाजपा नेताओं की जी-हुजूरी करते हैं, कि वक्त पड़े तो ये लोग उन्हें और उनके परिवारों को धन-धान्य से परिपूर्ण कर सकें, ऐसे में जहां ऐसी सोच पनप गई हो, उस राजनीतिक पार्टी का क्या होगा?
राजनीतिक पंडितों का तो ये भी कहना है कि जब तक दीपक प्रकाश, आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा जैसे नेताओं का भाजपा में बोलबाला रहेगा, हेमन्त सोरेन और उनकी सत्ता को झारखण्ड से हटाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन होगा, अकेले बाबू लाल मरांडी या निशिकांत दूबे क्या कर लेंगे? बाबूलाल मरांडी चाहे तो झारखण्ड में किसी भी स्थान से लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ें वे आराम से जीतेंगे पर जरा भाजपा या संघ के लोग ही बता दें कि आदित्य साहू, दीपक प्रकाश या प्रदीप वर्मा को कहा जाये कि आप अपनी प्रतिभा पर विधानसभा या नगरपालिका के किसी वार्ड का चुनाव जीत कर दिखा दें तो क्या उसमें वे सफल होंगे?
एक भाजपा कार्यकर्ता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ये सारे के सारे नेता भाजपा प्रदेश कार्यालय में आकर करते क्या है? सिर्फ और सिर्फ बैठकें, आखिर इन बैठकों से क्या निकलेगा या क्या कर लेंगे, जब अंत में पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही जनता से वोट लेना है। इसलिए हमलोगों ने भाजपा से दूरियां बना ली। ऐसी दूरियां बना ली कि भाजपा के धरना-प्रदर्शन में भी शामिल नहीं होते, क्योंकि वे पार्टी का झंडा ढोने के लिए बने है किसी व्यक्ति विशेष के नहीं। इन भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि आनेवाले समय में अगर दिल्ली के शीर्षस्थ नेताओं ने झारखण्ड की ओवरवायलिंग नहीं की, जमीन से जुड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं दिया और हवा-हवाई नेताओं से काम लेंगे तो फिर नतीजा सिफर ही होगा।
फिलहाल इन्हीं नेताओं का कमाल है कि राज्य में ईडी के लाख कमाल दिखाने के बावजूद हेमन्त सोरेन का बाल बांका भी नहीं हो पाया है, क्योंकि जनता तो यही कह रही है कि अगर हेमन्त सोरेन को हटायेंगे तो किसे लायेंगे? रघुवर दास, दीपक प्रकाश, आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा, अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं को, क्या इन नेताओं में सुरखाब के पर लगे हैं, अरे ये सभी मोदी के नाम से जीते हैं तो फिर मोदी के नाम पर एक जमीन से जुड़ा भाजपा कार्यकर्ता क्यों नहीं आगे बढ़े, सवाल तो यही हैं, इसका हल जितना जल्दी निकल जाये तो अच्छा, नहीं तो “झारखण्ड में गइल भइसिया पानी में” करम में लिखा हुआ है।
इधर कुछ भाजपा के पुराने नेता व भाजपा की सेहत के बारे में सोचनेवाले कार्यकर्ता विद्रोही24 से बातचीत के क्रम में कहते है कि जो नेता किन्हीं कारणों से बिदक कर नई पार्टी बना ली या नया ठिकाना ढुंढ लिया। भाजपा को चाहिए कि उन कारणों को सदा के लिए बंद करें, साथ ही जो भाजपा छोड़कर चले गये और वे भाजपा में पुनः आना चाहते हैं, तो उनका स्वागत करें, क्योंकि ये समय की मांग है, क्योंकि वो पहले वाली बात गई, जिसमें आप कहा करते थे कि झारखण्ड का मतलब भाजपा।
अब स्थिति पूर्णतः बदल गई है, क्योंकि संघ व संघ की आनुषांगिक संगठन सभी शिथिल पड़ गये हैं, कही कोई जमीनी स्तर का कार्यक्रम नहीं होता, केवल सेमिनार व संगोष्ठी कर ये लोग अपना कार्यक्रम का इतिश्री कर ले रहे हैं, जिससे कुछ होने जानेवाला नहीं, सच्चाई यह है कि इस बार लड़ाई एक सशक्त झामुमो की टीम से होने जा रही हैं, जिसने सत्ता पाने के तीन वर्षों में ही जनता के बीच एक अच्छी पैठ बना ली है, आपके यह कह देने से कि झामुमो को आप आनेवाले समय में सत्ता से हटा देंगे तो आप मुगालते में हैं।
झामुमो ने एक रणनीति के तहत बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष बनने से रोका है, झामुमो जानता है कि दीपक प्रकाश, आदित्य साहू, प्रदीप वर्मा, अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं को जब चाहे तब राजनीतिक मैदान में पटखनी दे सकते हैं, पर बाबूलाल मरांडी को पटखनी देने में दिक्कतें आ सकती है, क्योंकि बाबूलाल मरांडी में वे सारे गुण मौजूद हैं, जो झारखण्ड की मिट्टी से जुड़े नेताओं में होनी चाहिए।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा कुछ भी बैठकें कर लें, कितना भी सेमिनार/संगोष्ठी कर लें, उनके पास जो प्रादेशिक स्तर के नेता हैं, वे हेमन्त सोरेन ही नहीं, उनके विधायकों के आस-पास भी वर्तमान में कही नहीं ठहरते, तो बाकी की बात ही छोड़ दीजिये। झामुमो की कुछ सीटें तो अब ऐसी हो गई है कि भाजपा अब किसी जिंदगी में उसे नहीं पा सकती और इसके लिए कोई जिम्मेवार हैं तो वो भाजपा है, क्योंकि उसने अपने कार्यकर्ताओं को हाशिये पर रखा और ऐसे नेताओं को माथे पर चढ़ा लिया, जो झारखण्ड की राजनीति में शून्य से उपर नहीं उठ पाये हैं।
एक भाजपा का 70 वर्षीय कार्यकर्ता तो साफ कहता है कि जहां करिया मुंडा जैसे नेताओं की पुछ नहीं, वहां हम जैसे कार्यकर्ताओं की क्या पुछ होगी? भाजपा की स्थिति बहुत ही खराब है, अब भाजपा कितना भी भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली पर जाकर भगवान बिरसा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर आये, अब वैसी बात नहीं, स्थितियां-परिस्थितियां बदलती जा रही, कई तो भाजपा के वर्तमान विधायक अगली बार विधानसभा से झामुमो की टिकट लेने के लिए मन बना रहे हैं, इसके लिए अभी से दिमाग लगाने में लगे हैं, अब ऐसे में भाजपा की क्या स्थिति है, भाजपा के शीर्षस्थ नेता ही खुद आकलन कर लें, तो ठीक है।