अपनी बात

खुद सवर्ण होकर दलितों-पिछड़ों का हक मारनेवाले CPIML नेता, जिस नीतीश को एक सीट जीतने की ताकत नहीं, उस BJP को सौ सीटों पर समेटने का ख्वाब देख रहे

सत्ता ऐसी ही होती है, जब वो मिलती है, तो मूर्खों-बेवकूफों व लाचारों में भी प्राण फूंक देती हैं, जरा देखिये न, पटना में ऐसी ही एक पार्टी भाकपा माले ने अपना 11वां महाधिवेशन आयोजित किया, महाधिवेशन के पहले उसने गांधी मैदान में एक बहुत बड़ी रैली आयोजित की। दूर-दूर से लोगों को ढो-ढोकर इनके द्वारा पटना के गांधी मैदान को भरने का प्रयास किया गया, पर वो भरी नहीं, लेकिन ऐसी भी नहीं थी कि आप उक्त रैली को फ्लॉप कह दें। भाकपा माले भले ही कुछ न करें, पर उसे भीड़ लाने की तकनीक पता है।

भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य जो खुद बंगाली ब्राह्मण हैं, सवर्ण है। भाकपा माले के महासचिव पद पर विराजमान है। उन्होंने अपनी सीट खाली कर उस पद पर कभी भी दलितों-पिछड़ों को विराजमान करने के लिए पहल नहीं की, पर बातें तो ऐसा करेंगे जैसे कि लगता है कि उनके जैसा दलित-पिछड़ा समर्थक इस संसार में कोई हैं ही नहीं, तभी तो आर्थिक रुप से मिले सवर्णों के आरक्षण को गलत बताने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी और इसके जगह दलितों व पिछड़ों के आरक्षण को और बढ़ाने की वकालत कर दी।

दीपंकर भट्टाचार्य कोई पहले नेता नहीं हैं, ऐसे ही कई नेता राष्ट्रीय जनता दल में भी भरे-पड़े हैं, जो बाते तो पिछड़ों व दलितों के सम्मान की करते हैं, पर अपने बेटे या खुद को सांसद/विधायक बनाने के लिए राजद के लालू प्रसाद व रावड़ी देवी के चरणोदक पीने से भी गूरेज नहीं करते, और ये सभी के सभी ब्राह्मण है। कुछ तो ऐसे हैं कि जब राज्यसभा से इन्हें जनता दल यूनाईटेड वाले टिकट नहीं देते तो लगे नीतीश को ही गरियाने लगते हैं। ऐसे कई महान नेता हैं, कितने का नाम लें, पर बेचारे गरीब ब्राह्मण जिन्हें अब खाने की भी लाले पड़े हुए हैं, उन्हें ये लोग सवर्ण के नाम से गरियाने से नहीं चूकते। मनोज झा, शिवानन्द तिवारी जैसे लोग इसी श्रेणी के महामंडलेश्वर में आते हैं।

अब हम बात करते हैं भाकपा माले की। भाकपा माले पीएम मोदी व भाजपा से बड़ी खफा है। कांग्रेस के राहुल गांधी में खुदा का नूर उसे नजर आ रहा हैं। हो भी क्यों न। एक समय था, याद करिये, 1977 का समय, जब इनके लिए ही एक नारा बना था। नारा याद है न…

सत्ता कांग्रेस सीपीआई।

चोर-चोर मौसेरा भाई।।

अब चूंकि ये मौसेरे भाई है तो तो मौसा का बेटा, मौसे के ही न काम आयेगा कि चाचा के लिए काम आयेगा। कमाल है, दीपंकर भट्टाचार्य अपने मंच पर सत्ता के गलियारे से सदा के लिए गायब होने को बेताब नीतीश कुमार को अपने मंच पर आमंत्रित किये थे, बेचारा नीतीश को लगा अब क्या? अब तो दिल्ली दूर ही नहीं, बोल दिया कि सभी विपक्ष एक हो जाये तो भाजपा को वे 100 से नीचे में समेट देंगे, यानी जिंदगी भर जो व्यक्ति भाजपा की वैशाखी पर बैठकर सत्ता का सुख भोगा, वो भाजपा के नेताओं पर आंख तरेर रहा हैं। कमाल है, कहां से इतना ज्ञान हो जाता हैं ऐसे लोगों को। कही ऐसा तो नहीं कि ये समय-समय पर भांग खाकर भाषण देने लगते हैं।

अरे भाकपा माले की ही बिहार या झारखण्ड में क्या औकात है? पहले अपनी औकात तो देखिये, फिर चलियेगा विपक्ष को एक सूत्र में बांधने के लिए। पहले अपने आप को तो बेहतर स्थिति में ढालिये। अपनी कथनी-करनी तो सुधारिये। पहले खुद भाकपा माले के महासचिव पद से खुद को अलग करिये और वहां कोई दलित या पिछड़ा या किसी मुसलमान को बैठाइये, तब न समझे कि आप सचमुच में सवर्ण विरोधी समता मूलक समाज के अधिष्ठाता यानी भारत भाग्य विधाता है।

आप तो जब चीन भारत के भू-भाग पर कब्जा करता हैं तो आप अपना मुंह सी लेते हैं। चीन भारत की आर्थिक संप्रभुता को चुनौती देता है तो ‘दुनिया के मजदूर एक हो’ का नारा लगाते हैं और भारत तथा पिछड़ा राज्य बिहार की समृद्धि की बात करते हैं, इतना बिहार को बकलोल समझा है। आप क्या समझते है कि यादव, कुर्मी और मुसलमान के कॉम्बिनेशन से बिहार में आप भाजपा को चुनौती दे देंगे। अरे भाजपा और प्रचंड बहुमत से बिहार में अपना परचम लहरायेगी, क्योंकि जनता लालू प्रसाद के जंगल राज और आपके द्वारा बिहार में जाति-पांति के नाम पर जो गुंडागर्दी मचाई गई हैं, उसे जनता भूली नहीं हैं।

ऐसे भी भाजपा में कोई जीतन राम मांझी, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद या दीपंकर भट्टाचार्य जैसा नेता नहीं हैं, वहां एक से एक धाकड़ लोग बैठा हैं, जो आपकी सारी राजनीति का हवा निकाल देगा। अभी और आप अपने प्रदेश कार्यालय से लेकर गांधी मैदान पटना भाया विधानसभा तक थोड़ा उछल कूद मचा लीजिये। जो नीतीश सदन में कहता है कि मिट्टी में मिल जाउंगा, भाजपा में नहीं जाउंगा और फिर उसी भाजपा से सट कर सत्ता हासिल करता हैं।

उस नीतीश पर आपको इतना भरोसा और जो भाजपा खुलकर कहती है कि हम धारा 370 हटायेंगे, राम मंदिर बनायेंगे, मतलब जो कहती हैं, वो करती हैं, उससे इतनी नफरत। भाई हमें तो लगता है कि फिर से भाजपा 2024 में 400 सीटे न जीत लें और बिहार की सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा न हो जाये, इसलिए हमारा सुझाव रहेगा कि आप अभी से ही ईवीएम के खिलाफ कौन-कौन सा बयान देना उस वक्त जरुरी होगा, इस पर काम करना शुरु कर दीजिये।