नार्थ-ईस्ट के मतदाताओं ने भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं को पिलाई टॉनिक, इसका असर राजस्थान, मध्यप्रदेश व छतीसगढ़ के विधानसभा चुनाव पर दिखेगा
नार्थ-ईस्ट के मतदाताओं ने सचमुच भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं टॉनिक पिला दी हैं। ऐसा राजनीतिक च्यवनप्राश भी खिलाया है, जिसका असर आनेवाले राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है। चाहे मोदी का विरोध करनेवाले कुछ भी कह लें। नार्थ ईस्ट के चुनाव परिणाम ने यह भी दिखला दिया कि आज भी मोदी का जादू पूरे देश में सर चढ़कर बोल रहा है।
जो मीडिया या जो लोग भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। उन्हें भी आज घोर निराशा हाथ लगी है, क्योंकि उन्होंने मान लिया था कि कांग्रेस-वाममोर्चा का गठबंधन और कही नहीं, तो त्रिपुरा में जरुर अपना कमाल दिखायेगा, पर वहां भी भाजपा दुबारा सत्ता में आ गई, वो भी अपने बलबूते पर। मेघालय में जहां कांग्रेस पूर्व में 21 सीटों पर थी, वहां अब वो खुद पांच सीटों पर सिमट गई।
आश्चर्य इस बात को लेकर भी है, कि भाजपा नागालैंड जैसी ईसाई बहुल राज्य में बहुमत प्राप्त की है, जबकि भाजपा पर घोर हिन्दू सांप्रदायिक होने का आरोप लगता है। शायद यही कारण रहा कि दिल्ली में नरेन्द्र मोदी ने अपने कट्टर प्रतिद्वंदियों को निशाने पर लिया और ताल ठोककर कह दिया कि उनके प्रतिद्वंदी कहते हैं कि ‘मर जा मोदी’, पर देश की जनता कहती है कि ‘मत जा मोदी’। पीएम मोदी ने तो साफ कह दिया कि वे कहते है कि मोदी तेरी कब्र खुदेगी। वे जितना हमारी कब्र खुदने की बात करते हैं, कमल उतना ही खिलता चला जा रहा है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो आत्मविश्वास और जनता के आशीर्वाद से लवरेज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को किसी भी चुनाव में हरा पाना उतना आसां नहीं, जितना मोदी विरोधी पार्टियां या मीडिया के लोग समझ रहे हैं। आनेवाले समय में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा कार्यकर्ताओं को ये नार्थ-ईस्ट का चुनाव परिणाम अपना कमाल अवश्य दिखायेगा। अब दुगने उत्साह से भाजपा कार्यकर्ता यहां लगेंगे और 2024 में लोकसभा चुनाव में भी इसका असर दिखेगा।
नार्थ ईस्ट के चुनाव परिणाम आने के बाद देश के विभिन्न प्रान्तों में फैले भाजपा के नेता व कार्यकर्ता आज चार-पांच दिन पहले ही होली मनाने लग गये हैं। दुसरी ओर कांग्रेस के नेताओं व कार्यकर्ताओं में घोर निराशा अभी से छा गई है। शायद ऐसी हार, उन्होंने कभी सोची भी नहीं होगी। रही बात, वाममोर्चा की तो ऐसा लगता है कि जनता ने अब उनसे सदा के लिए पिंड छुड़ाने की सोच ली है। नहीं तो कांग्रेस-वाममोर्चा का गठबंधन (वो भी तब जब कि ये केरल में एक दूसरे के घोर विरोधी है, उसके बाद भी त्रिपुरा में मिलकर लड़े) का प्रदर्शन त्रिपुरा में जरुर कमाल दिखाता।