राजनीति

भाजपा की नजर में हेमन्त सरकार का बजट खोदा पहाड़ निकली चुहिया, आजसू के अनुसार झूठ का पुलिंदा, माले ने कहा निराशाजनक

जैसा कि हमेशा से होता आया है, सत्ता पक्ष अपने बजट को हमेशा सराहता है। विपक्ष बजट में खोट निकालता है। ठीक उसी प्रकार हेमन्त सरकार द्वारा पेश किये गये चौथे बजट के बाद यहां सत्तापक्ष और विपक्ष का भी यही हाल हैं। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने इस बजट की जहां प्रशंसा की है, वहीं भाजपा के अनुसार वर्तमान बजट खोदा पहाड़ निकली चुहिया को चरितार्थ कर रहा है। भाजपा ने इससे आगे बढ़कर इसको लूट का भी बजट बताया तो कुछ भाजपाइयों ने इसे पुरानी बोतल में नई शराब करार दे दिया।

आजसू ने इस बजट को औपचारिकता मात्र बताते हुए कहा कि ये बजट नहीं खानापूर्ति है। यह बजट झूठ का पुलिंदा है। बुनियादी सवालों को इसमें दरकिनार कर दिया गया है। बजट में ना भविष्य को लेकर कोई चिन्ता व्यक्त की गई है और न ही कोई विजन है। इसमें कहीं राज्य के प्रति प्रतिबद्धता भी नहीं दिख रही। बस झूठे वायदों और आंकड़ों का सहारा लेकर बजट पेश कर दिया गया हैं।

झारखंड सरकार के द्वारा पेश किए गये बजट को भाजपा सांसद दीपक प्रकाश ने लूट का बजट कहा। उन्होंने आज प्रदेश कार्यालय में प्रेस को सम्बोधित करते हुए कहा कि झारखंड सरकार के इस बजट का अवलोकन करने से साफ प्रतीत होता है कि यह बजट राज्य को लूटने के लिए तैयार किया गया है। यह बजट दिशाहीन बजट है।

श्री प्रकाश ने कहा कि जब तक राज्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश नही लगेगा तब तक झारखंड का भला नही होने वाला है। उन्होंने राज्य सरकार की विज़न पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार बजट तो बनाती है लेकिन उसे धरातल पर उतार नही पाती है। उन्होंने कहा कि राज्य का बजट गांव, किसान, मजदूर जो आवश्यक चीजों से वंचित है उन्हें केंद्र बिंदु में रखकर बनाया जाना चाहिए था।राज्य के आधारभूत संरचना को मजबूत करने वाला बजट होना चाहिए था।

श्री प्रकाश ने कहा कि पिछले बजट का आकार 1 लाख करोड़ का था। लेकिन सरकार उस बजट में से मात्र 44 प्रतिशत ही खर्च कर पाई। यह सरकार की कथनी और करनी को उजागर करने के लिए काफी है। उन्होंने कहा कि पिछले बजट में कृषि क्षेत्र के लिए जितनी राशि का प्रावधान किया गया था उसमें से सिर्फ राज्य सरकार 12 प्रतिशत ही खर्च पायी। शिक्षा क्षेत्र में बजट का 53 प्रतिशत, शहरी विकास के क्षेत्र में  23.91 प्रतिशत, जल संसाधन विभाग में 44.54 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिये आवंटित की गई राशि का 67.1 प्रतिशत, पेयजल विभाग में 22.09, खाद्य आपूर्ति विभाग में 30.04 प्रतिशत राशि ही सरकार खर्च कर पाई है।

इससे हम कह सकते है कि सरकार के पास बजट की राशि को खर्च करने की योजना तथा नियत ही नही है। केंद्र सरकार के द्वारा गव्य विकास योजना के तहत जो राशि राज्य सरकार को दी गयी थी उस पैसे को राज्य सरकार खर्च ही नही कर पाई है। श्री प्रकाश में कहा कि भारत की प्रति व्यक्ति आय है 1 लाख 97 हज़ार रुपये, जबकि झारखण्ड का प्रति व्यक्ति आय है 87 हज़ार रुपये।

उन्होंने कहा कि आज राज्य का शिक्षा की हालत बदतर हो गयी है। 45 हज़ार सरकारी स्कूलों में से 62 सौ स्कूलों में शिक्षक नही है, 90 हज़ार से अधिक पद खाली पड़े है, बेरोजगार दर दर की ठोकरें खा रहे है।  64 प्रतिशत सरकारी विद्यालयों में बच्चों के खेलने के लिए मैदान नही है, 37 प्रतिशत विद्यालयों में पुस्तकालय नहीं है। रघुवर सरकार के समय खरीदे गए एम्बुलेंस आज सड़ रहे हैं। सरकार उसका उपयोग नही कर पा रही है। जबकि लोग एम्बुलेंस की कमी के कारण खटिया में मरीजों को अस्पताल पहुंचा रहे है। पुराने मेडिकल कॉलेज बन्द है। उन्होंने सवालिया लहजे में पूछा आखिर बजट का पैसा जा कहां रहा है।

श्री प्रकाश ने राज्य सरकार को हर क्षेत्र में विफल करार देते हुए कहा कि राज्य सरकार माल महाराज का और मिर्जा खेले होली वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है। उन्होंने कहा कि आयुष्मान योजना का नाम बदलकर मुख्यमंत्री ने अपने नाम पर किया लेकिन प्राइवेट अस्पतालों को पैसा नही दे रही है नतीजा आयुष्मान योजना आज झारखंड में फेल है। हर घर नल से जल योजना आज झारखंड में पूरी तरह से फेल हो चुका है। राज्य के 61 लाख परिवारों में से मात्र 19 लाख परिवार को ही कनेक्शन दिया गया है, परंतु जल अभी तक नही मिला है।

श्री प्रकाश ने देश के मोदी के नेतृत्व में चल रही भाजपा सरकार और यूपीए सरकार की झारखंड़ के नजरिये से तुलना करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने राज्य को पांच साल में टैक्स का 89 हज़ार 6 सौ 48 करोड़ रुपये दी, वही यूपीए की सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में 35 हज़ार 9 सौ 98 करोड़ रुपये दी थी, मोदी सरकार ने झारखंड को ग्रांट ऐड के रूप में 2022-23 में 17 हज़ार 4 सौ 5 करोड़ रुपये दी, जबकि यूपीए की सरकार ने 2013- 14 में मात्र 4 हज़ार 65 करोड़ रुपये दी थी।

श्री प्रकाश ने कहा कि राज्य की हेमन्त सरकार जिस दल के साथ मिलकर सरकार चला रहे है वह दल अपने आपको आदिवासी की हितैषी कहती है। लेकिन उनका आदिवासी हितैषी का सच यह है कि यूपीए की केंद्र सरकार ने आदिवासी कल्याण के जो राशि 2013-14 में आवंटित की थी वो मात्र 19 हज़ार 433 करोड़ रुपये जबकि भाजपा की सरकार ने आदिवासी कल्याण के लिए 2023-24 में 1 लाख 19 हज़ार करोड़ रुपये आवंटित की है। श्री प्रकाश ने राज्य सरकार के बजट को पुरानी बोतल में नयी शराब की संज्ञा देते हुए कहा कि यह बजट केवल जनता को दिग्भ्रमित करने वाला बजट है। यह बजट आदिवासी,महिला, दलित, गरीब और मजदूर विरोधी बजट है।

आजसू का बजट पर प्रतिक्रिया

दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए बजट को लेकर झारखंड के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने कहा कि झूठी सरकार ने झूठ का पुलिंदा पेश किया है। बजट में बुनियादी सवालों को दरकिनार किया गया। आम लोगों, गरीबों, किसानों, युवाओं, महिलाओं और बेरोजगारों के लिए बजट में कुछ भी नहीं है।

ऐसा प्रतीत हो रहा कि सरकार बजट के नाम पर बस खानापूर्ति कर रही है। सरकार का मुख्य उद्देश्य बस समय काटना है। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क, इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर कोई फोकस नहीं। आंकड़ों को सजाकर सरकार भारी-भरकम बजट तो बना रही है, लेकिन समय पर पैसे कैसे खर्च हों, समेकित विकास की रुपरेखा कैसे तय हो, खनन संपदा की लूट कैसे रुके, राजकोषीय घाटा कैसे सुदृढ़ हो, इसे सुनिश्चित करने में सरकार लगातार नाकाम साबित होती रही है।

क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने हेतु सरकार ने पहल तो किया लेकिन इसमें नागपुरी, कुडमाली, पंचपरगनिया, खोरठा भाषाओं को शामिल नहीं किया। यह दुःखद है, चिंतनीय है। हम इसे लेकर विधानसभा सत्र में आवाज उठाते रहेंगे। ऐसी त्रुटियां दुबारा ना हो, सरकार को इसे हर हाल में सुनिश्चित करना होगा।

भाकपा माले की बजट पर प्रतिक्रिया

झारखंड बजट पर भाकपा माले की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी रही। भाकपा माले का कहना है कि यह बजट संतोषजनक नहीं है। झारखंड का वार्षिक बजट पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य जनार्दन प्रसाद ने कहा कि राज्य के बजट में 15% की वृद्धि के बावजूद यह संतोषजनक नहीं है।

झारखंड गांव समाज की बहुलता वाला राज्य है। जिसकी अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। सबसे ज्यादा पलायन की समस्या भी इन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों से होता है। बावजूद बजट में सरकार मात्र 11.8% वृद्धि की है। दरअसल कृषि विकास की सामग्रिक योजना के तहत खेतों में सिंचाई का प्रबंध, तीन फसलो की खेती व्यवस्था पर जोर देने के लिए समुचित व्यवस्था, पठारी क्षेत्रों में भी सिंचाई के अभाव में वैकल्पिक खेती की व्यवस्था की प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिस पर सरकार की प्राथमिकता नहीं है।

साथ ही फसलों की उपज का लाभकारी दाम और वनोपज की उचित दाम के लिए मंडी व्यवस्था लागू करने की जरूरत की नीति को अपनाया ही नहीं जा रहा। पलायन को रोकने के लिए रोजगार सृजन की व्यापक योजना बनाई जानी चाहिए जिसपर सिर्फ खानापूर्ति की गई है। राज्य सरकार को अपने वादों के अनुकूल रोजगार मुहैया कराने और तमाम रिक्तियां भरने का प्रस्ताव लेना चाहिए जिस पर अपेक्षित जोर का अभाव दिख रहा है।

शिक्षा और स्वास्थ्य में कुछ बढ़ोतरी तो है पर वह पर्याप्त नहीं है। नए स्कूलों के निर्माण की बात तो दूर है बल्कि रघुवर दास के समय जो 10 हजार स्कूलों को बंद किया था उसे भी बहाल नहीं किया गया है। शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए विश्वविद्यालय से लेकर लोवर स्कूल में शिक्षकों की संपूर्ण बहाली अनिवार्य है जिसे नजर अंदाज किया गया है। हर गांव में स्वास्थ्य केंद्र और दवा और डाक्टर की व्यवस्था की गारंटी किए बिना जनता को महंगी मेडिकल सेवा से मुक्ति नहीं मिल सकता जिसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

बेरोज़गारी भत्ता भी नारा बनाकर रखा गया है। जिसे जमीन पर उतारने का कोई बंदोबस्त नहीं है।‌ नाम गरीब और गांव का किया गया है पर उस ओर अनुकूल प्रावधान नहीं है। सरकार व्यवहार में गरीबों की आय बढ़ाने, उनकी सामाजिक सुरक्षा की गारंटी और गांव की प्राथमिकता दें, तभी झारखंड की सही दिशा बनेगी।