अपनी बात

शर्मनाकः होली की आड़ में प्रश्नों की मर्यादा भूले पत्रकार, एक महिला जनप्रतिनिधि की व्यथा को समझने की भी, नहीं की कोशिश

क्या है होली? कभी किसी ने समझने की कोशिश की है? क्या होली मर्यादा और गरिमा को भूल जाने का नाम है? या अपने संस्कार, परम्परा, विरासत और संस्कृति के संयोजन का नाम है। आज भी गांवों में जाइये तो आप देखेंगे कि जो बड़े-बुजुर्ग हैं, उन्हें छोटे होली के दिन उनके पांवों में अबीर-गुलाल रख, उनसे आशीर्वाद ग्रहण करते हैं और बड़े छोटों को उनके मस्तक व गालों पर गुलाल लगाकर उन्हें आशीर्वाद देकर, आनेवाले भविष्य के लिए सुखद जीवन की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।

यही ग्रामीण परम्पराएं हमें होली के विराट चरित्र का संदेश देती है, पर आज क्या हो रहा है? लोग सब कुछ भूलते जा रहे हैं और याद क्या रख रहे हैं, तो बस अश्लीलता, होली के नाम पर हुड़दंग और एक दूसरे को अपनी बातों से दुखी कर देना और फिर ये कहना कि बुरा न मानो होली है। आज कुछ ऐसा ही दृश्य देखने में आया झारखण्ड विधानसभा परिसर में, जिसे विद्रोही24 ने देखा। महसूस किया और जरुरी समझा कि आपलोगों तक ये बात पहुंचे।

आज रांची का एक यू-ट्यूब चैनल (उस यू-ट्यूब चैनल का मैं नाम नहीं देना चाहता हूं) के संवाददाता ने होली पर विशेष न्यूज बनाने के चक्कर में, झारखण्ड विधानसभा परिसर में यहां के मंत्रियों-जनप्रतिनिधियों से ऐसे-ऐसे सवाल किये और होली गीत उनके मुख से गंवाना चाहे, जो एक शरीफ आदमी वो भी जो जनप्रतिनिधि है, कभी भी सार्वजनिक जगहों पर नहीं गा सकता।

पर यहां भी आश्चर्य है कि एक मंत्री ने उक्त चैनल के संवाददाता के कहने पर कुछ पंक्तियां दुहरा दी, जबकि दूसरे मंत्री ने एक भी आपत्तिजनक गाने नहीं गाये, बार-बार गाने का दबाव देने पर भी उक्त घटिया स्तर के कथित होली गीत गाने से इनकार कर दिया। इसी बीच एक महिला जनप्रतिनिधि जो विधानसभा पोर्टिको में अपनी गाड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी, उक्त चैनल के संवाददाता ने उनसे ऐसी सवाल कर दी कि वहां खड़े सभी लोग एक टक निहारते रह गये, आश्चर्य में पड़ गये, कि इस संवाददाता ने ये क्या पूछ दिया?

आश्चर्य है कि वो महिला जनप्रतिनिधि भी उक्त संवाददाता को देख अचंभित थी कि ये पूछ क्या रहा हैं और क्या ये कोई सवाल एक महिला जनप्रतिनिधि से वो भी एक संवाददाता, झारखण्ड विधानसभा परिसर में पूछ कैसे सकता है? वो महिला जनप्रतिनिधि बार-बार उस संवाददाता के बेकार के सवालों से खुद को दूर रखने का प्रयास करती और कहती कि वो अभी इस स्थिति में नहीं है कि इस प्रकार के उत्तर दे सकें, पर वो तो अपने सवालों के जवाब पाने के लिए महिला जनप्रतिनिधि की व्यथा को भी ताखे पर रख चुका था।

इस बीच एक संवाददाता ने उक्त संवाददाता को मोबाइल से संपर्क साधा और पूछा कि क्या जी, आप यही सब सवाल करते हैं, तो उक्त संवाददाता का जवाब था कि होली में और क्या सवाल हो सकता है? अब सवाल उठता है कि जिस सवाल को हम इस समाचार में नहीं लिख सकते, वो सवाल भी क्या सवाल हो सकता है? इस पर चिन्तन आप करें और सोचे कि आखिर आज के पत्रकार, पत्रकारिता को किस दिशा की ओर ले जा रहे हैं?