योगदा सत्संग मठ स्थापना दिवस पर विशेषः नेत्र-रोगियों के लिए वरदान से कम नहीं योगदा अस्पताल, हर धर्म के लोग ले रहे स्वास्थ्य लाभ, नेत्र-रोगियों के अनुसार डा. मंगत के हाथों में जादू
22 मार्च 1917, यानी आज ही के दिन परमहंस योगानन्द जी ने रांची में योगदा सत्संग मठ की स्थापना की थी। अपने स्थापना काल से ही इस मठ में परमहंस योगानन्द जी द्वारा, जो आध्यात्मिकता व सेवा कार्य का बीजारोपण किया गया। वह आध्यात्मिकता व सेवा कार्य का वट-वृक्ष ऐसा विशाल रूप धारण कर लिया है कि उसकी छाया में हर धर्म, हर समुदाय व हर जाति के लोग बिना किसी भेद-भाव के यहां सेवा-लाभ ले रहे हैं, तथा स्वयं को अनुप्राणित कर रहे हैं।
योगदा सत्संग मठ ने अपने सेवा भाव से जिस प्रकार वंचित व अत्यंत निर्धन समाज की सेवा का जो निरन्तर प्रयास जारी रखा हैं। उसका उदाहरण विरले ही दिखने को मिलता है। यहीं कारण है कि योगदा सत्संग मठ का नाम आज सेवा का पर्याय बन गया है। आप रांची के किसी भी इलाके में चल जाइये। आप किसी भी समुदाय के बीच में चले जाइये। आपको ऐसे लोग काफी संख्या में मिल जायेंगे, जिन्होंने अपने आंखों का इलाज वह भी बिना एक पैसे खर्च किये मिल ही जायेंगे।
सेवा भाव ही का तो प्रभाव है कि यहां नेत्र का इलाज करानेवाले 77% लोग मुस्लिम समुदाय से आते हैं और ठीक होने के बाद बड़े ही गर्व से कहते है कि उन्होंने अपना आंखों का ऑपरेशन योगदा सत्संग सेवाश्रम चैरिटेबेल हॉस्पिटल में कराया। डॉ. मंगत साहेब ने उनका ऑपरेशन किया। मतलब सबकी जुबान पर और किसी का नाम हो या न हो, पर योगदा में इलाज कराया और डा. मंगत साहेब ने इलाज की, यह जरुर होता है।
हाल ही में 7 दिसम्बर 2022 की घटना है। रांची के चुटिया स्थित विंध्यवासिनी नगर रोड नं 2 में रहते हैं, संतोष कुमार केसरी। जिनकी चाची मीरा देवी जो खूंटी के मरिचा गांव में रहती हैं। उनको आंख का ऑपरेशन कराना था। वो जब यहां आई, तो वो भी किसी के कहने पर आई थी कि योगदा सत्संग मठ में आंख का इलाज अच्छा होता है। जब वो ओपीडी में आई तो पता चला कि उनका बीपी बढ़ा हुआ है, पहले उन्हें बीपी को ठीक करने की दवा दी गई। एक सप्ताह बाद फिर उन्हें बुलाया गया। ऑपरेशन हुआ। आज जिस आंख का ऑपरेशन हुआ। वो पूर्णतः ठीक हैं। वो बेहद खुश है। पूरा परिवार योगदा सत्संग सेवाश्रम का नाम ले रहा हैं।
यहीं नहीं कुछ लोग यह भी कहते है कि सरकारी अस्पतालों व निजी अस्पतालों का हाल तो राम जाने। सरकारी अस्पताल तो बदनाम है। सच्चाई तो यह भी है कि निजी अस्पताल में भी पैसे देने पर आपका काम ठीक हो ही जायेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं, पर इतना तो जरुर विश्वास है कि बिना एक पैसे खर्च किये योगदा सत्संग आश्रम में जाकर आंख का ईलाज तो बेहतर हो ही सकता है, वो भी सौ प्रतिशत गारंटी के साथ।
रांची रेलवे कॉलोनी की रहनेवाली माया बताती है कि बहुत पहले उनकी मां चंदन देवी का भी आंख का ऑपरेशन इसी योगदा सत्संग मठ में हुआ था, पर पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी, अब तो काफी लेटेस्ट टेक्नॉलॉजी का भी यहां लोग इस्तेमाल करने लगे हैं, जिसका फायदा हम रांचीवासी भी उठा रहे हैं और दूसरे लोग भी। माया यह भी कहती है कि योगदा सत्संग मठ में इलाज कराने से दो फायदे हैं। एक तो परमहंस योगानन्द जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ, आध्यात्मिक प्रवृत्तियों से भी आप जुड़े गये और दूसरी शत प्रतिशत गारंटी की आप ठीक होकर ही जायेंगे, भला गुरुजी के आश्रम से कोई दुखी कैसे जा सकता है। असंभव।
रांची में ही रांची प्रेस क्लब के सदस्य व वरिष्ठ पत्रकार परवेज कुरैशी बताते है कि उनकी मां फुरकान खातून की आंखें जब जवाब देने लगी। तब वे अपनी मां की आंख की इलाज के लिए रांची के कई आंख अस्पतालों व आंख के डाक्टरों के यहां दौड़ लगाई। जहां जाते सभी यही बताते कि मां की आंख का ऑपरेशन कराओ, नहीं तो और ज्यादा प्राब्लम बढ़ जायेगा। जहां जाते पन्द्रह से सोलह हजार रुपये की मांग होती। इधर मां बार-बार कहती कि हमें कहीं नहीं जाना, मुझे योगदा अस्पताल ले चलो, वहां ठीक हो जायेंगे।
परवेज कुरैशी बताते हैं कि चूंकि मां कई लोगों से सुन चुकी थी कि योगदा में अच्छा इलाज होता हैं। फिर क्या था, मां को योगदा सत्संग सेवाश्रम में ले गये। वहां के डाक्टर ने एक ड्राप वाली दवा दी और कहां कि इसे आंखों में डालिये। मेरी मां की आंखें अब ठीक हैं। तीन साल से उसे अब कोई प्राब्लम ही नहीं। बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो गई। वो अपनी बहन असरुन खातून का भी इलाज योगदा सत्संग आश्रम चैरिटेबल अस्पताल में ही कराते हैं। कोई प्राब्लम ही नहीं।
अब सवाल उठता है कि रांची योगदा सत्संग आश्रम हैं कहां?
रांची जंक्शन से उत्तर दिशा की ओर, मात्र कुछ ही कदमों की दूरी पर है – योगदा सत्संग मठ और ठीक इससे सटे योगदा सत्संग सोसाइटी द्वारा योगदा सत्संग सेवाश्रम के नाम से चल रहा एक चैरिटेबल हॉस्पिटल, पूरे झारखण्ड ही नहीं, बल्कि इससे सटे बिहार, बंगाल, ओड़िशा के नेत्र रोगियों व उनके परिवारों के हृदयों में ऐसा स्थान बना लिया है कि उस स्थान को बना पाना किसी भी नेत्र अस्पताल व किसी भी नेत्र चिकित्सक के लिए कम से कम इस जन्म में तो असंभव हैं।
ऐसा नहीं कि रांची में नेत्र चिकित्सा के नाम पर केवल योगदा सत्संग सेवाश्रम में ही नेत्र का इलाज अथवा ऑपरेशन होता हैं। सच्चाई तो यह है कि यहां अनेक ऐसे अस्पताल हैं और उसके डाक्टर भी यहां भरे-पड़े हैं, पर पता नहीं बिहार, बंगाल व ओड़िशा से आनेवाले ज्यादातर नेत्र रोगियों और उनके परिवारों को यहां पहुंचने के बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. जी एस मंगत की ही तलाश रहती हैं।
विद्रोही24 की नजर, इस सेवाश्रम पर पिछले कई दशकों से रही हैं। विद्रोही24 ने पाया है कि यहां केवल नेत्र रोगियों की इलाज नहीं होती, बल्कि यहां कान, नाक, गला, स्त्री रोग, बाल रोग, हृदय रोग, छाती रोग, चर्म रोग, हड्डी रोग के भी विशेषज्ञ बैठते हैं और यहां आनेवाले रोगियों का वे निःशुल्क इलाज करते हैं। हम उन सारे चिकित्सकों का जो यहां निःशुल्क सेवा दे रहे हैं। यहां के लाभार्थियों के लिए उसकी समय-सारणी उपलब्ध करा दे रहे हैं।
- डा. वरुण कुमार, हृदय रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक गुरुवार, प्रातः नौ से दस बजे तक।
- डा. एस ठाकुर, स्त्री रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक मंगल व गुरुवार, दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तक।
- डा. देवजानी पाल, सामान्य रोग, प्रत्येक सोम, गुरु व शनि, प्रातः दस से 11 बजे तक।
- डा. आर पी चौधरी, सामान्य रोग, प्रत्येक बुध, गुरु व शनि, प्रातः 8 से 9.30 तक।
- डा. विकास कुमार, सामान्य रोग, प्रत्येक सोम, मंगल व शुक्र, प्रातः 8 से 9.30 तक।
- डा. गौतम मैत्रा, सामान्य रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक गुरुवार, दोपहर 2.45 से 4 बजे तक।
- डा. रणधीर कुमार, हड्डी रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक मंगल व शुक्र, प्रातः 11 से 12 बजे तक दोपहर तक।
- डा. विशाल भटनागर, छाती रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक गुरुवार, दोपहर 2 से 3 बजे तक।
- डा. एस मिश्रा, चर्म रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक बुधवार, दोपहर दो से तीन बजे तक।
- डा. आर पी चौधरी, चर्म रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक सोमवार, दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक।
- डा. जी एस मंगत, नेत्र रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक सोम, शुक्र, शनि, प्रातः 9 बजे दोपहर 2 बजे तक।
- डा. विक्रमजीत पाल, नेत्र रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक शनि, प्रातः 9 बजे से 10 बजे तक।
- डा. इवा रानी कालिता, बाल नेत्र रोग विशेषज्ञ, प्रत्येक सोमवार, शुक्रवार और शनिवार, प्रातः 9 से 2 बजे तक।
- डा. के बी अग्रवाल, कान, नाक गला विशेषज्ञ, प्रत्येक बुध व शनि, दोपहर 2 से 3.30 तक।
- डा. आलोक पाठक, आयुर्वेद विशेषज्ञ, प्रत्येक सोम, बुध व शुक्र, प्रातः 9 बजे से दस बजे तक।
- डा. सुनील कुमार, होम्योपैथी, प्रत्येक मंगल, बुध व शनि, प्रातः 11 से दोपहर 12 बजे तक।
- डा. प्रमोद कुमार, फिजियोथेरेपी, प्रत्येक मंगल व शुक्र, प्रातः 9 से 10 बजे तक।
जैसा कि मैंने कहा कि यहां हर प्रकार के रोगियों का निःशुल्क इलाज होता हैं, पर योगदा सत्संग सेवाश्रम सर्वाधिक नेत्र-रोगियों के लिए चर्चा में पिछले कई वर्षों से रह रहा हैं। आप देखेंगे कि यहां सुबह से ही नेत्र-रोगियों की लंबी कतार हर सोमवार, शुक्रवार और शनिवार को देखने को मिल जायेंगी। चूंकि इन्हीं दिनों नेत्र चिकित्सा के लिए ओपीडी यहां खुला होता हैं, जबकि ऑपरेशन के लिए मंगलवार, बुधवार और गुरुवार का दिन पहले से ही तय है। यहां जो लोग इलाज के लिए आते हैं। वे खुलकर कहते हैं कि यहां उन्हें न तो दवा के और न ही ऑपरेशन के पैसे लगते हैं। स्थिति ऐसी है कि प्रत्येक वर्ष यहां आंख का ऑपरेशन करानेवालों की संख्या लगभग 2000 के करीब है।
आये थे डा. मंगत संन्यासी बनने, पर गुरुजी कुछ और ही चाहते थे
डा. जी एस मंगत बताते हैं कि पहले डा. राजमोहन यहां अपनी सेवा दिया करते थे। उन्हें ठीक से याद नहीं, पर हो सकता है कि वो 1990 से अपनी सेवा देते होंगे। परंतु वे (जी एस मंगत) इस योगदा सत्संग सेवाश्रम से 2004 से जुड़े, जो आज भी जारी है। वे बताते है कि वे रांची के योगदा सत्संग मठ में संन्यासी बनने आये थे, पर उन्हें कहा गया कि आपके लिए संन्यासी से ज्यादा चिकित्सक बनकर सेवा देना ही श्रेष्ठतम सेवा हैं। तभी से वे इस ओर ही अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए हैं। वे यह भी बताते है कि उनके जीवन में परमहंस योगानन्द जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘Whispers from Eternity’ का बड़ा प्रभाव हैं। जिसमे परमहंस योगानन्द जी ने बताया है कि हम किस प्रकार अपने लिये दिव्य आनन्द की स्थितियों का निर्माण कर सकते हैं।
वे विद्रोही24 को अपनी सेवा के दौरान प्राप्त होनेवाली अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि जब लोग उनके पास इलाज कराने के लिए आते हैं। तो वे नाना प्रकार की भय व तनावों से आक्रांत रहते हैं, पर जैसे ही उनसे बातचीत होने लगती हैं तो रोगी भय व तनावों से मुक्त होकर अपनी बातें रखते हैं और फिर उन्हें उनकी रोगों से मुक्ति दिलाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। वे यह भी कहते हैं कि जब वहीं नेत्र रोगी ठीक होकर अपने घर जाने लगते हैं तब उनके अंदर की फीलिंग जब उनके चेहरे पर देखने को मिलती हैं तो उस आनन्द को परिभाषित करने को शब्द नहीं होते।
उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि एक बार जब वे लुधियाना में थे तो एक रोगी उनके पास आई। वो बेहद तनाव में थी। मैंने उनकी सारी बातों को ध्यान से सुना और सुनने के बाद पुछा कि आप अब ये बताये कि आपको तकलीफ क्या है? तब उस रोगी का कहना था कि उन्हें तो कोई रोग ही नहीं हैं, मतलब जैसे ही आप किसी रोगी से बेहतरीन ढंग से पेश आते हैं। आप पायेंगे कि बातचीत में ही बहुत सारे रोगी स्वयं को बेहतर स्थिति में पाते हैं।
डा. जी एस मंगत अपने सेवा कार्यों से इतने लोकप्रिय हो गये हैं कि, उन्हें देखते ही इलाज कराने आये रोगी व उनके परिवार प्रसन्न हो जाते हैं, मानो उनका नेत्र संबंधी रोग सदा के लिए चला गया। नेत्र रोगियों की भारी भीड़, डा. जी एस मंगत को परेशान नहीं करती, बल्कि उनमें और जोश भर दिया करती हैं। वे इसका सारा श्रेय अपने गुरु परमहंस योगानन्द को देते हैं। वे यह भी कहने में गुरेज नहीं करते कि मुझे जीने का मकसद मिल गया हैं, वे अपने मार्ग पर चले जा रहे हैं। भगवान, गुरु और समाज के प्रति हम अपना ड्यूटी इसी तरह निभाते रहे, और हमें क्या चाहिए, ऐसे भी इन सारे कार्यों में रहने पर गुरु जी उन्हें कभी बोर होने नहीं देते, यही क्या कम है।
योगदा सत्संग आश्रम चैरिटेबल हॉस्पिटल निर्धनों व मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए एक आशा की किरण साबित हो रही हैं। यहां के चिकित्सकों का सेवा भाव और परमहंस योगानन्द जी द्वारा बताये सेवा मार्ग पर चलने की सोच, इन्हें अन्य अस्पतालों के चिकित्सकों से अलग करती है। यहां के संन्यासियों द्वारा चिकित्सकों के साथ मिलकर निरन्तर सेवा कार्यों को और कैसे बेहतर बनाया जाये, इसको लेकर चलनेवाली निरन्तर प्रक्रिया इसे और श्रेष्ठतम मार्ग की ओर ले जा रही है।