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झारखण्ड विधानसभा में प्रेस दीर्घा के पत्रकारों ने की नई परम्परा की शुरुआत, JMM MLA सुदिव्य की भाषण का किया बहिष्कार, बन सकता है विशेषाधिकार का मामला

झारखण्ड विधानसभा में पत्रकारों ने एक नई परम्परा की आज शुरुआत कर दी। इस नई परम्परा को शुरुआत करने में झारखण्ड विधानसभा पत्रकार दीर्घा समिति के सदस्यों ने भी प्रमुख भूमिका निभाई। दरअसल हुआ यह जैसे ही विभागीय बजट पर चर्चा के दौरान झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार ने सदन में अपनी बातें रखनी शुरु की। प्रेस दीर्घा में बैठे एक-दो पत्रकारों को छोड़कर सभी ने उनके भाषण का बहिष्कार कर दिया और प्रेस दीर्घा से उठकर बाहर चले गये।

फिर जैसे ही स्पीकर रबीन्द्र नाथ महतो ने भाजपा विधायक बिरंची नारायण का नाम पुकारा। बिरंची नारायण ने भाषण देना प्रारंभ किया। उसके तीन मिनट बाद बहिष्कार करनेवाले पत्रकारों का समूह प्रेस दीर्घा में आकर अपने कार्यों को गति देनी शुरु कर दी। हम आपको बता दें कि इस बहिष्कार कार्यक्रम में राजधानी से प्रकाशित/प्रसारित होनेवाले बड़े-बड़े अखबारों/चैनलों से लेकर छोटे-छोटे अखबारों/चैनलों व एजेंसिंयों से जुड़े पत्रकारों के समूह शामिल थे।

हमने पत्रकारों के समूह के इस कृत्यों पर कई लोगों से बातचीत की। कुछ ने खुलकर अपनी बातें रखी। कुछ ने पता नहीं उन्हें किस बात का भय था, पूरा प्रश्न सुनने के बाद अपना मोबाइल ही बंद कर दिये। एक बहुत बड़े अखबार में काम कर चुके और फिलहाल एक संवैधानिक पद पर पहुंचे एक व्यक्तित्व ने सिर्फ इतना ही कहा कि पत्रकारों को सिर्फ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने दायित्वों के प्रति जवाबदेह हैं।

उनका काम सिर्फ यह है कि सदन में क्या हुआ और सदन की सारी घटनाएं ईमानदारी से जनता के बीच रख देना, अगर हमने यह नहीं किया, इसका मतलब है, हमने अपने कामों में ईमानदारी नहीं बरती। हमारा काम आंदोलन करना या आंदोलन चलाना नहीं, हमारा काम सिर्फ और सिर्फ जनता तक सदन की बात पहुंचा देना। झारखण्ड विधानसभा में पत्रकारों के  समूह द्वारा विधायक के भाषण के दौरान उनकी बातों के समय प्रेसदीर्घा का त्याग करना कही से भी उचित नहीं कहा जा सकता।

झारखण्ड के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी कहते हैं कि सदन में तो कई माननीय विधायक अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी टिप्पणी करते हैं। उन्हें भ्रष्ट बताते हैं, तो अधिकारियों का समूह भी अधिकारी दीर्घा छोड़कर बाहर चला जाता है क्या? नहीं न। इसीलिए जैसे अधिकारी, अधिकारी दीर्घा छोड़कर नहीं जाते, उसी प्रकार प्रेस दीर्घा में बैठे पत्रकारों को भी अपने कर्तव्यों का निर्वहण करते रहना चाहिए था।

इंदर सिंह नामधारी यह भी कहते है कि यह गलत परम्परा की शुरुआत है। आप प्रेस दीर्घा में बैठते। उनकी बातें सुनते। आप उनकी खबरों को अपने अखबारों में जगह देते या नहीं देते या अपने चैनल में चलाते या नहीं चलाते। यह दूसरी बात होती। इसके द्वारा भी अपना आक्रोश वे व्यक्त कर सकते थे, पर प्रेस दीर्घा से उठकर चला जाना, किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं। वे यह भी कहते है कि कई लोग तो आजकल कई मीडिया को गोदी मीडिया से भी संबोधित करते हैं।

कुछ पत्रकार ही बार-बार गोदी मीडिया-गोदी मीडिया चिल्लाते रहते हैं, तो क्या कोई गोदी मोडिया के लायक काम करता है या नहीं करता है। वो ये सब बोलनेवालों का प्रतिकार भी करता हैं क्या? वे यह भी कहते है कि अगर झामुमो विधायक वाली मुद्दे पर कुछ पत्रकार विरोध कर भी रहे हैं, तो कुछ को करने देते, सभी को बहिष्कार में शामिल करना या हो जाना ठीक नहीं।

विधायी कार्यों के जानकार अयोध्या नाथ मिश्र के अनुसार, ये गलत परम्परा की शुरुआत पत्रकारों ने कर दी हैं। अगर कोई विधायक इस मामले को स्पीकर के पास विशेषाधिकार मामले के लिए ले जाता हैं तो ये विशेषाधिकार का भी मामला बनता है। पहली बात की आप प्रेस दीर्घा में बैठकर किसी भी माननीय को अपने अनुसार हैंडल नहीं कर सकते। अगर झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार ने पत्तलकार कहा तो सबसे पहले पत्तलकार का शाब्दिक अर्थ क्या होता हैं? यह डिफाइन करना होगा। जो कभी हो ही नहीं सकता।

इसलिए ऐसे मामले में जबकि स्पीकर ने अपना निर्णय सुना रखा हैं। आप विधानसभा को चुनौती नहीं दे सकते। इसी प्रकार की टिप्पणी बहुत बड़े संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति ने की हैं। उनका कहना है कि कौन सी बात, कौन सी पंक्ति को स्पंज करना हैं या नहीं करना हैं। इसका दबाव कोई भी पत्रकार या संस्था किसी भी स्पीकर या सदन के उपर नहीं डाल सकता। ये सामान्य सी बात है। सभी को समझने की जरुरत है। ये पूरी तरह से सदन के अंदर चलनेवाली विशेष नियमावलियों से बंधा मामला और माननीयों तथा स्पीकर के अधिकार क्षेत्र से सबंधित है। इसे आप चुनौती नहीं दे सकते।

झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार ने विद्रोही24 से इस संबंध में बातचीत में कहा कि दरअसल वे जब चर्चा में भाग ले रहे थे, तो उनका ध्यान प्रेस दीर्घा की ओर था ही नहीं, क्योंकि उनका पूरा ध्यान बजट चर्चा की ओर था। उन्होंने कहा कि जिन बातों को लेकर प्रेस दीर्घा में बैठे पत्रकारों ने उनके भाषण को सुनने से इनकार किया, प्रेस दीर्घा से बाहर चले गये। इससे उन्हें कोई समस्या नहीं हैं। वे सदन के प्रति जिम्मेदार हैं। अपनी बात वे सदन में रखते रहेंगे। रही बात कौन गलत हैं या कौन सही, ये देखने के लिए सदन की सर्वोच्च शक्तियां मौजूद हैं।