अपनी बात

आप माने या न माने, सूरत कोर्ट के एक फैसले ने राहुल गांधी की नींव जरुर हिला दी, पर यह फैसला भाजपाइयों के लिए भी भविष्य में खतरे के संकेत जरुर दे दिये

आखिर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी द्वारा दिया गया वक्तव्य कि “चोरों का सरनेम मोदी है। सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है, चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो या चाहे नरेन्द्र मोदी।” भारी पड़ ही गया। जब कल यानी गुरुवार को सूरत की अदालत ने उन्हें इस मामले में दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुना दी, साथ ही पन्द्रह हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया।

राहुल गांधी के खिलाफ सूरत पश्चिम के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने मानहानि का केस दर्ज कराया था। पूर्णेश मोदी के कथनानुसार राहुल गांधी ने ऐसा कहकर पूरे समाज को चोर कह डाला, जिससे पूरे समाज के सम्मान को ठेस लगी है। मानहानि हुई है। बताया जाता है कि इस केस को लेकर स्वयं राहुल गांधी तीन बार कोर्ट में पेश हुए और स्वयं को बेकसूर बताते हुए कहा था कि उनकी मंशा गलत नहीं थी। वे तो भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठाये थे।

इधर लोकसभा सचिवालय ने सूरत कोर्ट के फैसले के बाद एक अधिसूचना जारी करते हुए राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी। जिसको लेकर पूरी कांग्रेस और उनके समर्थक आंदोलनरत हैं और वे इसके लिए भाजपा सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। कुछ लोग आश्चर्य कर रहे है कि जिस आईपीसी की धारा 499 एवं 500 में राहुल गांधी को दोषी ठहराया गया। उस मामले में अधिकतम सजा दो वर्ष तय है। ऐसे में राहुल गांधी को अधिकतम सजा सुना देना अर्थात् विपक्ष की आवाज को कुंद करने के बराबर है।

कई लोग ये भी कहते है कि ऐसे संवाद तो राजनीतिज्ञों द्वारा सामान्य सी बात है, पर आज तक किसी भी राजनीतिज्ञ के खिलाफ ऐसी वारदात नहीं हुई। सामान्य तौर पर जो राजनीतिज्ञ होते हैं, वे ऐसी मसलों पर ध्यान नहीं देते। लेकिन जिस प्रकार से राहुल गांधी के साथ ऐसी घटना घटी है, तो हो सकता है कि इसका प्रभाव आनेवाले समय पर उस पार्टी पर भी पड़े जो फिलहाल आज सत्ता में हैं, क्योंकि इस प्रकार की घटनाओं से बच पाना किसी भी राजनीतिज्ञ या राजनीतिक दल के लिए एक तरह से नामुमकिन हैं।

आज भी कई अखबार, पत्र-पत्रिकाएं ऐसे भरे पड़े हैं। उन राजनीतिक बयानों से जो आईपीसी की धारा 499 एवं 500 के अंतर्गत आते हैं। कई लोगों ने इसलिए केस दर्ज नहीं कराये, कि कौन अदालत के चक्कर में पड़ता है, बेकार का धन और समय दोनों जाने का खतरा बना रहता हैं, पर इसकी भी क्या गारंटी की संबंधित राजनीतिज्ञ को दो वर्ष की ही सजा मिले, ये तो न्यायाधीश के उपर निर्भर करता है, कि वो दोषी को अधिकतम सजा दें या न्यूनतम दें।

झारखण्ड में ही कई ऐसे विधायक हैं, जिन्हें मामूली से केस में दो साल की सजा दे दी गई और उनकी राजनीतिक कैरियर को सदा के लिए समाप्त कर दिया गया। जबकि कई ऐसे भी विधायक है, जिन्होंने अपराध का रिकार्ड बनाया है, और उसे सजा भी मिली तो डेढ़ साल की, ताकि उसका राजनीतिक कैरियर बचा रहे। अब इस प्रकार से सजा मिलते रहे तो भाई हो गया, मिल गई न्याय, हो गई क्रांति, हो गया राजनीतिक सुधार। दरअसल, आम जनता जानती है कि ये सब दांव-पेंच का खेल है। जो जितना मजबूत, उसके पक्ष में न्याय भी उतना ही मजबूत।

हाल ही में झारखण्ड की घटना बताता हूं। एक पत्रकार को एक घटिया स्तर के शराबी पत्रकार ने फोन पर जमकर गंदी-गंदी गालियां और उसे जान से मारने की धमकी दी। उक्त पत्रकार ने इसकी ऑनलाइन शिकायत की। बाद में तीन-चार दिन के बाद संबंधित थाने में वो पत्रकार गया कि उसकी प्राथमिकी दर्ज हुई या नहीं। तो वहां के थानेदार ने शिकायतकर्ता पत्रकार को बड़े हितकारी शब्द कहकर यह समझाया कि इस पर तो आईपीसी की धारा 499 या 500 की धारा लागू होगी। इस प्रकार के केस में कुछ नहीं होता। इसलिए आप बेकार का दिमाग लगा रहे हैं।

जब एक अधिवक्ता से उक्त पत्रकार ने इस संबंध में राय ली तो उस अधिवक्ता का भी कहना था कि दूर्र ये भी सब कोई केस होता हैं, सब फालूत केस है।  अंत में दूसरे दिन उक्त पत्रकार ने थानेदार को जाकर कहा कि ऐसा करें कि आप हमारे उपर दया करें, मुझे आप के थाने में अब प्राथमिकी दर्ज नहीं करानी है। मैं अपनी प्राथमिकी को ईश्वर की अदालत में ले जाउँगा। वो इस मामले को देखेगा।

सचमुच आपको विश्वास नहीं होगा, ईश्वर की अदालत में वो मुकदमा चल रहा हैं। फैसला भी जल्द आनेवाला है। इधर जब वो शिकायतकर्ता पत्रकार राहुल गांधी का मामला आज देख रहा हैं, तो उसके होश ही उड़ गये। मतलब देश में क्या चल रहा हैं। उसकी बानगी है राहुल गांधी को मिली सजा और आईपीसी की धारा 499 व 500 का खेल।

कहने का तात्पर्य यह है कि राहुल गांधी ने निश्चय ही एक व्यक्ति के उपर लांछन लगाने के बजाय, पूरे समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया। ऐसे में वे इस मामले में दोषी है ही। इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता, क्योंकि एक व्यक्ति की गलती के लिए आप पूरे समाज या समुदाय को कटघरे में खड़ा नहीं कर सकते। वैसे भी आप एक देश के जाने माने नागरिक व राजनीतिज्ञ हैं, आपकी बातों की पकड़ होगी ही। लेकिन इस पूरे प्रकरण पर दो साल की अधिकतम सजा का प्रावधान शायद ही भारत की आम जनता को पचें। फिलहाल भाजपा को भले ही लगे कि उसने इस प्रकरण पर बाजी मार ली है, पर इसके दीर्घकालिक परिणाम अनिष्ट ही साबित होंगे।