जब भी आपके साथ कुछ बढ़िया हो, आप आनन्द में हो, आप बिना देर किये ईश्वर को इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित करें – स्वामी शुद्धानन्द
जब भी आपके साथ कुछ बढ़िया होता है, आप आनन्द महसूस करते हैं, आप बिना देर किये ईश्वर को इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित करिये। जब आप समस्याओं में होते हैं, कष्ट में होते हैं, तब भी ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते रहिये, हालांकि यह संभव नहीं हैं, पर प्रयास मत छोड़िये। आप पायेंगे आपकी मदद के लिए ईश्वर खड़ा है। ईश्वर पर दृढ़ विश्वास रखिये। किसी भी हालत में आप उसे मत छोड़े। उन पर अपना विश्वास बनाये रखिये। यही तीन अवस्थाएं आपको ईश्वर के निकट ले जायेंगी। उनसे प्रेम करना सीखा देंगी। यह बात आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग में स्वामी शुद्धानन्द ने योगदा भक्तों से कही।
उन्होंने बड़े ही सुंदर ढंग से श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय के तीसवें श्लोक को उद्धृत किया… यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।। अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि जो सभी में मुझको यानी श्रीकृष्ण को देखता है और सभी को मेरे अंतर्गत देखता है, उसके लिए मैं कभी अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए कभी अदृश्य नहीं होता।
स्वामी शुद्धानन्द का कहना था कि ईश्वर से कुछ भी छुप नहीं सकता। अतः हमें उनके प्रति हमेशा कृतज्ञता का भाव मन में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान और उससे परे भी हैं। उन्होंने कहा कि आपके जीवन में जो भी कुछ हो रहा है। आप उसके लिए उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करें। उन्होंने कहा कि भगवान को पाना इतना आसान नहीं है। उसके लिए आपको निरन्तर संघर्ष करना पड़ेगा। उसके लिए तत्पर रहना होगा। अपनी आध्यात्मिक चेतना को निरन्तर उपर लाना होगा।
उन्होंने कहा कि मन में यह भावना लानी होगी कि हे प्रभु आप जो भी मेरे साथ करो, पर आपके प्रति जो मेरा प्रेम हैं, वो किसी भी हालत में कम नहीं होगा। प्रभु के प्रति विश्वास को बढ़ाना होगा। यह विश्वास जान लीजिये कि अभ्यास से होता है। यह अभ्यास भी तभी सार्थक होगा, जब आप योगदा के बताये गये मार्गों का अनुसरण करेंगे। उन्होंने कहा कि ईश्वर को पाने के लिए अपने अंदर की आकांक्षाओं को जगाना होगा। मतलब अपने शरीर व मन को स्वस्थ और नियंत्रित करते हुए आध्यात्मिक भाव को जागृत करना होगा।
उन्होंने एक बंग भाषा में प्रचलित लोकोक्ति को सरलता से कह दिया कि ‘कष्ट करें, श्रीकृष्ण पावे’। उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर को पाने के लिए गुरु का होना भी बहुत जरुरी है। उनके बिना यह तो संभव ही नहीं कि आप ईश्वर को पा लें। हम सभी भाग्यशाली है कि हम अपने गुरु के सान्निध्य में स्वयं को ईश्वर को पाने के लिए नाना प्रकार के प्रयासों को करने में जुटे हैं।
उन्होंने सभी से कहा कि संकल्प कर लें कि हम कभी आराम नहीं करेंगे। तब तक आध्यात्मिक पथ पर चलते जायेंगे। जब तक ईश्वर को प्राप्त न कर लें। हमेशा नियमित रुप से आध्यात्मिक डायरी में अपने संस्मरण लिखेंगे कि आज हमने ईश्वरीय कृपा के अंतर्गत क्या पाया? आप पायेंगे कि यह आध्यात्मिक डायरी बाद में यह बताने को उद्यत होंगी कि आप पर ईश्वर ने कितनी कृपा की है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर को पाने में हमेशा सतर्क रहिये, क्योंकि बिना सतर्कता के भी ईश्वर को पाना संभव नहीं। आप जो भी करें। ईश्वर को अर्पण करते हुए करें। आप कामयाब होंगे। याद रखें, भगवान कहते है कि करोड़ों में कोई एक व्यक्ति उनकी कृपा पा रहा होता हैं। आप स्वयं को करोड़ों में नहीं, स्वयं को वो एक व्यक्ति बनाने की कोशिश करें। स्वयं को माने कि वो एक व्यक्ति आप ही हैं, जिस पर ईश्वर की कृपा होनी है। हम गुरु के शरण में हैं। इसलिए ईश्वरीय कृपा तो होनी ही हैं। इसमें कोई शंका भी नहीं रहनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार की शंका को अपने मन में घर बनाने नहीं दें, क्योंकि ये शंका जब एक बार मन में घर बना लेती हैं तो फिर वो निकल नहीं पाती, आप उसके प्रभाव में आकर ईश्वर प्राप्ति के मार्ग से स्वयं को दूर कर लेते हैं। आज के रविवारीय सत्संग में स्वामी शुद्धानन्द ने दो योगदा भक्तों के नाम पुकारें – 1. राम प्रकाश और 2. ज्ञान भूषण। इन दोनों महानुभावों ने योगदा से जुड़ने के बाद उनके जीवन में क्या परिवर्तन हुए। इसका रसास्वादन ध्यान मंदिर में बैठे योगदा भक्तों को कराया, जिससे सभी लाभान्वित हुए।