अभिनन्दन करिये 45 वर्षीया रिंकी का, जिसने कोरोना लहर में पति के बीमार होने, ससुर की मौत हो जाने के बाद भी अपने पथ से डिगी नहीं, अकेले संघर्ष करती रही
2021 कोरोना का सेंकेड वेभ, जब रांची में हर गली मुहल्ले में कोरोना लहर मौत का तांडव कर रहा था। उस कोरोनाकाल में रांची के चुटिया स्थित केतारीबागान, विन्ध्यवासिनी नगर रोड नंबर 2 में रहनेवाली 45 वर्षीया रिंकी कुमारी अकेले अपने घर में आई एक साथ अनेक विपत्तियों से संघर्ष कर रही थी। आश्चर्य हैं कि जब वो अकेले संघर्ष कर रही थी, तो उस मुहल्ले में रहनेवाले एक पड़ोसी को छोड़कर किसी ने उनकी मदद नहीं की। फिर भी, रिंकी को इस बात का तनिक मलाल नहीं। वो बीती हुई बातों को भूलकर, अपने बच्चों व पति के साथ आगे बढ़ती जा रही हैं।
आश्चर्य है, जहां रिंकी रहती हैं। वहां एक से एक परिवार रहते हैं, जो हर प्रकार से संपन्न हैं, पर कोरोना के भय से किसी ने उनके साथ उस वक्त साथ रहना या साथ देना या बाद में मोबाइल से भी सहानुभूति प्रकट करना भी जरुरी नहीं समझा। सभी अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। रिंकी बताती है कि यह वह समय था जब इसी मुहल्ले में पांच लोग कोरोना के शिकार होकर दिवंगत हो चुके थे। इसी दौरान अचानक उनके पति मुकेश को स्किन अल्सर हो गया। जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। उनके पति मुकेश करीब एक महीने अस्पताल में रहे। जैसे ही 28 अप्रैल 2021 को वो अपने पति को घर लाई। ठीक दो दिन बात उनके ससुर राम शोभा राय का निधन हो गया।
घर में छोटे-छोटे दो बच्चे। पति बीमार और इधर ससुर जी का परलोक सिधार जाना। अगल-बगल से कोई मदद नहीं मिलना। क्या करती। जैसे-तैसे शव-वाहन को प्राप्त करने के लिए जहां-तहां फोन लगाना शुरु किया। अचानक फोन पटना लग गया, वहां से रिम्स का नंबर मिला। रिम्स से शव-वाहन 30 अप्रैल 2021 को सुबह सात बजे घर पहुंचा। वो अकेले अपने ससुर जी का शव लेकर, शव-वाहन से घाघरा पहुंची। उस वक्त पति मुकेश के तीन दोस्त वहां पहुंच चुके थे। उस श्मशान घाट में अकेले रिंकी ने ससुरजी को मुखाग्नि दी।
वहां अंतिम संस्कार करने के बाद, घर पहुंचकर, बीमार पति को देखना, बच्चों को देखना, फिर ससुर जी का श्राद्ध करने का काम, अकेले देखना, मतलब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। पर क्या करे, उसने स्वयं को संभाला। अकेले ही बाजार जाकर श्राद्ध के सारे सामान लाई। एकादशा का काम भी खुद किया। घर पर श्राद्ध कार्य भी खुद संपन्न की।
वो कहती है कि पूरे लॉकडाउन के दौरान वो और उनका परिवार दूध और चुड़ा खाकर काटा, क्या करें, कोई विकल्प नहीं था। घर से निकलने की मनाही। बच्चे छोटे-छोटे, उन्हें इन सब का ज्ञान नहीं। इधर ससुर जी का परलोक सिधारना, किसी के द्वारा कोई मदद को आगे नहीं आना। अब रोने से तो काम चलता नहीं, खुद को संभालने की भी कोशिश की। बच्चों को भी संभाला। अब तो दो साल होने को आये। पति स्वस्थ है। बच्चे भी ठीक हैं।
लेकिन जब भी दो साल पहले की घटना याद आती हैं। तो कांप जाती है। भगवान ऐसा कष्ट किसी को न दें। वो इसी दौरान अपने पति मुकेश के तीन दोस्तों अजीत, जीतन व राजन को शुक्रिया कहना नहीं भूलती। वो कहती है कि ससुर जी की मृत्यु के बाद इनसे जब उन्होंने मदद की गुहार लगाई तो इन सभी ने यथा संभव मदद करने को कोशिश की। जबकि पड़ोसी में एक सुनील जी, मेरे ससुर जी की अंतिम क्रिया में शामिल होने के लिए घाट तक गये थे।
बाकी के मुहल्ले के लोग तो झांकने तक नहीं आये और न ही यह पूछने की, आपके पति बीमार है। बच्चे छोटे-छोटे हैं। ससुर जी का देहांत हो गया है। उनका अंतिम संस्कार कैसे होगा। आप अकेली कैसे ये सब करेंगी। लेकिन मैं इन सबसे दूर, उन कष्टों को अकेली झेलती चली गई। एक तरह से अच्छा ही हैं। मैंने विपत्तियों को झेलना सीख लिया है। अपने बच्चों को भी इसी तरह बनाउँगी ताकि उन्हें किसी की सहायता की जरुरत ही न पड़ें और वे आती हुई विपत्तियों को स्वयं ही झेलने में सक्षम हो।
वंदनीय महिला का अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय पहल। ईश्वर इस महान व्यक्तित्व को और अधिक शक्ति प्रदान करें।