अपनी बात

भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को चाहिए कि झारखण्ड में प्रदेश अध्यक्ष पद पर विराजमान दीपक प्रकाश को किसी भी हालत में न बदले

भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को चाहिए कि झारखण्ड में प्रदेश अध्यक्ष पद पर विराजमान दीपक प्रकाश को किसी भी हालत में न बदलें, चाहे उन पर कितना भी दबाव क्यों न हो। किसी दबाव में न आये, क्योंकि 2024 में झारखण्ड में पुनः हेमन्त सरकार आये, इसके लिए झारखण्ड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद पर दीपक प्रकाश का रहना उतना ही जरुरी है, जितना कि 2019 में रघुवर दास के साथ केन्द्रीय नेतृत्व मजबूती से खड़ा था।

जो विद्रोही24 के नियमित पाठक हैं। वे जानते होंगे कि 2017 से लेकर 2019 तक बार-बार विद्रोही24 यही कहता आ रहा था कि जितना देर तक या जितने समय तक या विधानसभा चुनाव तक रघुवर दास सत्ता में रहेंगे, उतनी ही हेमन्त सरकार के सत्ता में आने की संभावना बढ़ती चली जायेगी। हालांकि कई अखबारों के मालिक, प्रबंधन से जुड़े लोग व संपादकों का समूह उस वक्त रघुवर सरकार द्वारा मिल रहे मुंहमांगी विज्ञापनों की रकम के बोझ तले दबे होने के कारण रघुवर दास के खिलाफ कुछ भी बोलने से बचते थे।

वे जमकर उस वक्त हर-हर रघुवर, भज-भज रघुवर का नारा स्वयं भी लगाते थे। स्थिति ऐसी थी कि उन्हें विश्वास हो चला था कि फिर से भाजपा ही सरकार में आयेगी, लेकिन विद्रोही24 ताल ठोककर कहता था कि गई भईसिया पानी में वाली लोकोक्ति झारखण्ड में चरितार्थ होगी और हुआ भी वहीं। सत्ता के मद में मदांध होकर, रघुवर दास ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारनी शुरु कर दी। कनफूंकवों की बातों में आकर उल्टे-पुल्टे फैसले लेने शुरु किये, स्थिति ऐसी हुई कि सत्ता से बाहर तो हुए ही, अपनी विधायकी भी गंवा बैठे।

ठीक वही अभी स्थिति है। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व को भगवान सद्बुद्धि दें कि वे किसी भी हालत में 2024 तक दीपक प्रकाश को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से न हटाएं, क्योंकि यही व्यक्ति हेमन्त सोरेन को सत्ता में फिर से स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभायेगा, क्योंकि इस व्यक्ति के पास जनाधार नहीं हैं और न ही कार्यकर्ताओं पर अच्छी पकड़। ले-देकर, जो भी अभी भाजपा में बूथ को मजबूती प्रदान करने के लिए मगजमारी चल रही हैं। उस मगजमारी को शांत करने के लिए झामुमो के नेता व राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के तरकस में एक से एक तीर भरे पड़े हैं, जो भाजपा के किसी भी अभियान को धूल-धूसरित कर सकते हैं।

दीपक प्रकाश और उनकी टीम सिवाय व्हाट्सएप व सोशल साइट पर ही अपनी बहादुरी दिखा रहे हैं। उन्हें लगता है कि सोशल साइट पर कब्जा कर लेने से, बहादुरी दिखा देने से, राज्य की जनता उनके साथ हो जायेगी। लेकिन सच्चाई कुछ दुसरी ही बयां कर रही हैं। भाजपा की प्रमुख सहयोगी आजसू धीरे-धीरे अपने को मजबूत करने में लगी हैं। वह धीरे-धीरे स्वयं को मजबूत करने के लिए अपने वोटरों को साधने में लगी हैं, पर भाजपा के पास न तो टीम है और न टीम भावना।

लेकिन दूसरी ओर झामुमो के पास एक सशक्त युवा नेता है। वो युवा नेता स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन है। इस युवा नेता ने भाजपा द्वारा दी गई अनेक चुनौतियों व झंझावातों को झेला है और उन चुनौतियों व झंझावतों को पटखनी भी दी है। पूर्व राज्यपाल द्वारा दी गई मुसीबत हो या ईडी द्वारा उन्हें लपेटने की कोशिश, हर क्षेत्र में इस युवा शख्स ने भाजपा नेताओं को बढ़िया से धोया हैं।

उसका मूल कारण है कि प्रदेश में एक-दो नेताओं को छोड़कर (बाबूलाल मरांडी-निशिकांत दूबे) इनके पास कोई नेता ही नहीं हैं। जो भीड़ भी इक्ट्ठी कर सकें, जिसके पास जनसमूह हो। एक-दो और नेता हैं भी तो उन्हें भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने सम्मान देना भी जरुरी नहीं समझा, इसका मतलब है कि वैसे नेता समय आने पर पाला भी बदलेंगे, जिससे नुकसान भाजपा का ही होगा।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो लोकसभा चुनाव के एक साल और विधानसभा चुनाव के डेढ़ साल ही बचे हैं। ऐसे में हेमन्त सोरेन के तरकस में कई तीर हैं, अगर हेमन्त सोरेन ने वो एक-एक कर तीर छोड़ने शुरु किये, तो भाजपा के सारे वीर कहीं दिखाई नहीं पड़ेंगे, क्योंकि वे सारे वीर तो वहीं करेंगे, जो उनका प्रदेश अध्यक्ष कहेगा, और प्रदेश अध्यक्ष तो वही करेगा, जितना उसके पास अनुभव होगा और अनुभवों के मामले में तो दीपक प्रकाश से अपना हेमन्त सोरेन तो बीस ही अब तक साबित हुए हैं।

नहीं विश्वास हैं तो विधानसभा का पटल और बाहर में उनके दिये बयान तथा दीपक प्रकाश के व्हाट्सएप ग्रुप में आनेवाले बयान और उसके बाद उन बयानों को अखबारों द्वारा मिलनेवाले स्थान से अपना ज्ञान बढ़ा लीजिये। अंत में हेमन्त सोरेन को घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि पलड़ा आज भी उनके नेतृत्व में महागठबंधन का ही भारी है, भाजपा कहीं भी मार्केट में नहीं है।