भाजपाइयों की पिटाई हो तो आंदोलन और भाजपाइयों के कारण जिस पत्रकार के सिर में नौ टांके लग गये, उसके लिए भाजपा ने क्या किया?
नीचे दिये गये फोटो में प्रयुक्त बैनर के शब्दों को ध्यान से पढ़िये, क्या लिखा है भाजपाइयों ने… । भाजपाइयों ने लिखा है कि “हेमन्त हटाओ झारखण्ड बचाओ आंदोलन के दौरान हेमन्त सोरेन के इशारे पर पुलिस प्रशासन ने लाठी, डंडे, आंसू गैस, रबर की गोली, ईंट-पत्थर से निहत्थे भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला किया। इसके विरोध में काला फीता बांधकर, मौन जुलूस एवं पुतला दहन” मतलब अपने भाजपा कार्यकर्ताओं के दुख से दुखी होकर ये भाजपा के नेता पूरे राज्य के विभिन्न जिलों में मौन जुलूस निकाला, पुतला दहन किया, काले फीते बांधे।
लेकिन इनके कल के आंदोलन के दौरान इनके कार्यकर्ताओं की वजह से जिन पत्रकारों के सिर फंट गये, कैमरे टूट गये, शरीर के विभिन्न अंगों में चोटें आई, उनके लिए भाजपाइयों ने कौन सा आंदोलन किया? कहां आंसू बहाएं? किन-किन पत्रकारों के घर जाकर उनके दर्द को भाजपा के बड़े नेताओं ने साझा किया? विद्रोही24 डंके की चोट पर पूछ रहा हैं, क्या भाजपा के नेता बतायेंगे?
कमाल है भाजपा कार्यकर्ताओं की पिटाई हुई तो उसका दर्द आपको फिर से सड़क पर ले आया और आपकी वजह से एक पत्रकार को सिर पर नौ टांके लग गये, उसकी सुध कौन लेगा, उसके प्रति सहानुभूति प्रदान करने के लिए किसे जाना चाहिए। क्या भाजपा नेताओं के अंदर संवेदनशीलता का अभाव हो गया हैं, या वे संवेदनहीन हो चुके हैं?
विद्रोही24 ने घायल पत्रकार मुकेश जिन्हें सिर पर नौ टांके लगे हैं, उनसे आज दो बार बातचीत की और कुशल क्षेम पूछा। कुशल क्षेम पूछने के दौरान मुकेश ने बताया कि उसके सिर पर चोट पुलिस के डंडे या लाठी से नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा फेंके जा रहे पत्थर से लगी। जब वो घायल होकर अस्पताल पहुंचा तो फटे हुए सिर से केवल छोटे-छोटे पत्थरों को हटाने में ड्रेसर को आधे घंटे से ज्यादा लग गये।
हालांकि अस्पताल ने उन्हें भर्ती करने को कहा था, पर वो घर आकर आराम करना ज्यादा बेहतर समझा। इसलिए फिलहाल वो घर पर हैं। यह पूछे जाने पर कि भाजपा के किसी नेता ने सहानुभूति प्रकट करने के लिए उसके घर पर आये या नहीं अथवा मोबाइल से संपर्क किया या नहीं। मुकेश का उत्तर था – नहीं। मुकेश का ‘नहीं’ में उत्तर ही बताता है कि पत्रकारों के प्रति भाजपा का क्या रवैया अब तक रहा हैं या उसकी सोच कैसी है?
भाजपा नेताओं से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा शर्मनाक व निन्दनीय कृत्य
इधर सुनने में आया है कि कुछ पत्रकार जिनके कल समाचार संकलन के दौरान कैमरे टूट गये थे, वे प्रेस क्लब से जुड़े एक व्यक्ति के साथ भाजपा नेताओं से संपर्क कर, अपनी बेबसी का रोना रोते हुए भाजपा से कुछ सहयोग राशि चाहते हैं ताकि उनके कैमरे का प्रबंध हो जाये। विद्रोही24 का इस संबंध में कहना है कि इस प्रकार की सोच ही पत्रकारों को नीचे स्तर तक ले जाती है।
अगर किसी पत्रकार का कैमरा टूटा है या चोटें आई हैं तो यह भी सच्चाई है कि यह सब ड्यूटी के दौरान हुआ हैं और जहां या आप जिस संस्थान के लिए काम करते हैं, उस संस्थान का फर्ज बनता है कि आपको उचित सामग्री या आर्थिक सहयोग आपको उपलब्ध कराये। हर बात पर नेताओं के आगे जाकर अपना मान-मर्दन कराना और सहयोग लेने की बात करना यह निम्नस्तरीय सोच हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा, इस बात की गांठ बांध लीजिये।
इसलिए जिसके मन में भी ये ख्याल आ रहा है कि भाजपा का कार्यक्रम था, इसलिए भाजपा नेताओं से आर्थिक सहयोग लेकर बेहतर भविष्य का आगाज किया जाये, तो ये उचित नहीं बल्कि शर्मनाक व निन्दनीय कृत्य है। इससे जितना जल्दी हो सके, तौबा कर लें, पत्रकारों का दल तो अच्छा रहेगा।