अन्नी अमृता ने ‘ये क्या है?’ पुस्तक के माध्यम से समाज में फैली भ्रांतियों और आम जनता के दर्द को जन-सामान्य के बीच रखा
बहुत दिनों के बाद एक पुस्तक हाथ लगी। पुस्तक का नाम है – ये क्या है? इस पुस्तक को लिखी है – जमशेदपुर की तेजतर्रार व कट्टर ईमानदार पत्रकार अन्नी अमृता ने। इस पूरी पुस्तक को मैंने कल ही पढ़ा है। पुस्तक पढ़ने के बाद लगा कि इस पर अपना मंतव्य मुझे देना चाहिए। इसलिए मैं अपने मंतव्य के साथ हूं। इस पुस्तक में 11 कहानियां हैं। संयोग है, इस पुस्तक के बारे में ‘प्रवेश’ के माध्यम से दो शब्द लिखनेवाली डा. रागिनी भूषण जी ने पूरी पुस्तक का बहुत ही सुन्दर चित्रण कर दिया है।
मेरे दृष्टिकोण से इस पुस्तक में वहीं कहानी उद्धृत है। जिस कहानी को अन्नी अमृता ने जिया है अथवा वो कथाएं हैं, जो उसकी जिंदगी को छू कर निकल गई हैं। हम इस पुस्तक में राजनीति, अपराध, पत्रकारिता व जिंदगी के विभिन्न आयामों का रसास्वादन कर सकते हैं। इस पुस्तक में बाल व स्त्री मनोविज्ञान की भी झलक मिलती है। जब मैंने पुस्तक की लेखिका व वरिष्ठ पत्रकार अन्नी से पूछा कि इस पुस्तक का नाम ‘ये क्या है?’ क्यों रखी?
तब अन्नी का कहना था कि इस पुस्तक का क्या नाम दें, वो इसी उधेड़-बुन में थी। तभी उनकी बेटी प्रकाशन को तैयार पुस्तक को हाथ में लेकर सहसा उन्हीं (अन्नी अमृता) से पूछ बैठी कि – मां ये क्या है? और लीजिये वहीं से इस पुस्तक का नाम भी मिल गया। कई कथाकारों से वार्ता के दौरान यह बात भी छनकर आई कि बेटी मान्या ने तो सहजता से सवाल रखे थे, पर कभी-कभी सहजता से आये सवाल भी कई चमत्कारों को जन्म दे देते हैं।
हालांकि इस पुस्तक में कई कहानियां हैं, अगर हम सभी कहानियों पर चर्चा करें तो एक लंबा आलेख हो जायेगा। फिर भी एक कहानी – गोल्फ है। जिसकी चर्चा मैं करना चाहूंगा। इस राज्य में एक मुख्यमंत्री हुए। उन्हें गोल्फ बहुत पसंद है। जब भी मौका मिलता है वे गोल्फ मैदान पहुंच जाते हैं। कई शाटस् भी दागते हैं। अपना मनोरंजन तो करते ही हैं, दूसरों का भी मनोरंजन करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, पर इसी दरम्यान वे यह भूल जाते हैं कि उनका दायरा कितना विस्तृत और कितना महत्वपूर्ण है? आश्चर्य है कि हमने भी यह महसूस किया है कि जो लोग कहते हैं कि उनका जीवन कांटों से भरा रहा हैं, संघर्पपूर्ण रहा हैं, पर वे जब महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचते हैं तो वे ये भूल जाते है कि उनका जीवन किसके के लिए बना है।
अन्नी को बधाई कि वो गोल्फ में उस दर्द को शानदार तरीके से उकेरी है कि एक बच्चे का पिता कितना सपना लेकर उक्त मुख्यमंत्री के दरवाजे पर, एक नहीं कई बार गया, और टकटकी लगाकर देख रहा था कि उसकी समस्या का समाधान हो जायेगा, पर समस्या का समाधान तो नहीं हुआ, बाद में वो महसूस किया कि वो मुख्यमंत्री के घर आकर मजाक सा बन गया है।
इसी कहानी में एक पत्रकार का क्या दर्द होता है? वो एक पॉलिटिशयन की घटिया स्तर की पॉलिटिक्स और अपने कार्यालय में बैठे चैनल हेड/संपादक की सोच के बीच किस तरह पीस रहा होता है। कैसे इसी बीच उसकी सारी सोच धूल-धूसरित होती रहती हैं? उसकी जिंदगी की कोई मायने नहीं रह जाता, इस दर्द को बेहतरीन ढंग से रखी हैं, जिसके लिये लेखिका बधाई की पात्र है।
इस पुस्तक में कई ऐसी भी कहानियां हैं, जो लेखिका के जीवन से संबधित है। उस दर्द को लेखिका ने बड़ी ही ईमानदारी से बयां किया है। जिसकी जमकर तारीफ होनी चाहिए। इस पुरुष प्रधान समाज में एक महिला के प्रति आज भी किस प्रकार की सोच है? इन कहानियों से वो सब परिलक्षित होती है। एक छोटी सी बच्ची की मां को, अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए समाज व ससुराल में रहकर क्या-क्या झेलना पड़ता हैं, उसके बावजूद भी वो अपने लक्ष्य से नहीं चूकती और स्वयं तथा अपनी बेटी को सर्वोच्चता के शिखर पर पहुंचाने के लिए कैसे संघर्ष कर रही हैं? उसके लिए ये पुस्तक तो पढ़ना ही पड़ेगा।
मेरे विचार से, आम तौर पर इस हालात में हर लड़की या महिलाएं समझौते करती है। जो समझौते करती है। वो अपने हालातों से लड़ना नहीं जानती। लेकिन जो समझौते नहीं करती। वहीं तो एक राह बनाती है। जो दूसरे के लिए एक मार्ग प्रशस्त करती है। इस पुस्तक में जमशेदपुर में घटित अपराधिक घटनाओं की भी चर्चा है। जो उस वक्त जमशेदपुर में काफी चर्चित हुई थी। पर वो घटनाएं कैसे लेखिका को उद्वेलित करती है? वो दर्द भी इन कहानियों में दिखता है। ट्राली बैग में चयनिका और धर्म, नन्ही परी और सत्य मगर अफसोसजनक: दीपा-द्विज हत्याकांड ऐसी ही अपराधिक कहानियां है, जो हर पाठक को झकझोरती भी है।