अपनी बात

अखबारों/कारोबारियों/पोंगा पंडितों का गोरखधंधा और अपराजिता का कभी क्षय नहीं होनेवाली अक्षय तृतिया

सुजाता और अपराजिता दो सगी बहनें रांची में ही रहती हैं। संयोग से इन दोनों के पिता रमेश प्रसाद अपनी हैसियत के अनुसार एक संपन्न परिवार में दोनों की शादियां एक ही घर में, वो भी एक ही दिन करा दी। दोनों के पति प्रशासनिक अधिकारी हैं और घर में किसी चीज की कमी नहीं हैं। इनके बच्चे भी रांची के एक अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। पर सुजाता व अपराजिता के स्वभाव व सोच, दोनों को एक-दूसरे से अलग कर देती है।

सुजाता का मानना था कि बिना धन के जीवन नहीं चल सकता, जबकि अपराजिता ठीक इसके विपरीत थी। अपराजिता का मानना था कि धन एक सीमा तक ही किसी की मदद कर सकता है, जबकि ज्ञान व आशीर्वाद की कोई सीमा नहीं होती, इसके आधार पर व्यक्ति हर प्रकार की मुसीबतों का सामना कर सकता है, उस पर विजय प्राप्त कर सकता है।

सुजाता व अपराजिता के पति इन दोनों के विचारों से अलग अपनी दुनिया में रहते थे। उन दोनों का मानना था कि महिलाओं को सौंदर्य के साधन में बांधे रखियें और खुश रहिये। इसलिए दोनों के पति कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ते, जब भी अपने पत्नियों को खुश रखने का कोई मौका उन्हें मिल जाता, वे इसका फायदा उठाते तथा स्वर्णाभूषणों से उन्हें लाद देते। वह मौका भी साल में दो बार जरुर इन्हें आकर दे जाता। वो मौका था शादी की सालगिरह का और दूसरा मौका रहता दीपावली के दो दिन पहले आनेवाली धनत्रयोदशी यानी धनतेरस का।

सुजाता व अपराजिता के पति अपनी पत्नियों के लिए इस दिन कुछ न कुछ सौंदर्य की सामग्री वो भी सोने का जरुर लेते, क्योंकि धन की कोई कमी नहीं थी, और उन्हें लगता था कि दोनों की पत्नियां सोने के आभूषण को पाकर जरुर खुश होती होंगी। बात में दम भी था। सुजाता को इन दोनों मौकों का खुब इंतजार रहता, क्योंकि उसको इस बात का विश्वास रहता था कि घर में उसके आज सोने का कोई न कोई आभूषण जरुर आयेगा, और उसके शरीर के विभिन्न अंगों में वे आभूषण खुब सजेंगे। जबकि अपराजिता के लिए ऐसी कोई बात नहीं थी।

इस वर्ष संयोग से दोनों की शादी के दिन अक्षय तृतिया के दिन ही पड़ रहे थे यानी 23 अप्रैल को। सुजाता को खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे विश्वास था कि उसका पति इस बार डबल धमाका करेंगे यानी सोने के आभूषणों की ढेरी लग जायेगी, क्योंकि एक तो अक्षय तृतिया और दूसरी शादी की सालगिरह एक दिन पड़ रही थी।

इधर अपराजिता ने अपने पिता को फोन लगाया और पूछा कि क्या उसकी शादी जब हुई थी, तो उस दिन अक्षय तृतिया था, क्योंकि अपराजिता को याद था कि जब उसकी शादी हो रही थी, तो उसकी दादी ने उसी दिन घर के आस-पास रहनेवाले सभी गरीबों को उनके मन-मुताबिक कपड़ें, मिठाइयां और पैसे अपने पोते-पोतियों के माध्यम से दिलवा रही थी, क्योंकि वो हर साल आनेवाले अक्षय तृतिया के दिन यही सब काम करती।

दादी का कहना था कि दुनिया के सारे भौतिक संसाधन क्षय हो जाते हैं, पर गरीबों की दुआएं, जरुरतमंदों की सेवाओं से मिलनेवाली आशीर्वाद कभी क्षय नही होता, वो जीवन के हर पड़ाव पर उमड़-घुमड़कर सेवा करनेवालों-सभी पर दया रखनेवालों पर बरसता रहता है, अक्षय तृतिया यहीं संदेश देता है कि आप ऐसी वस्तु इस दिन प्राप्त करों, जो कभी क्षय नहीं हो, भला दुनिया में कौन ऐसा भौतिक वस्तु नहीं हैं, जिसका क्षय नहीं होता, लेकिन ज्ञान व आशीर्वाद कभी क्षय हुआ हैं क्या?

अपराजिता को आज भी याद है कि एक बार जब उसकी मां रांची से पटना जा रही थी तो गया जं. से जैसे ही हटिया-पटना एक्सप्रेस खुली, कुछ उचक्कों ने उसकी मां के गर्दन से सोने की चैन खींच लिये थे। मां बहुत दुखी थी। मां को किसी ने बता दिया था कि सोना का खोना या चला जाना अच्छा नहीं माना जाता। मां को इसकी चिन्ता नहीं थी कि उसके सोने का चैन कोई उचक्का लेकर चलता बना।

मां को इसकी चिन्ता थी कि सोने के चैन खोने से कहीं उनके घर अनिष्ट न हो जाये। अपराजिता की मां जब अपने घर पटना पहुंची तो उन्होंने दादी को फोन लगाया और सारी घटना की जानकारी दे दी। दादी ने अपराजिता की मां को समझाया कि किसने कह दिया कि सोने के खोने से अनिष्ट होता है। अरे जरा समझो, हो सकता है कि जिसे तुम उचक्का समझ रही हो, उसके घर में कोई तकलीफ से गुजर रहा हो, उसे धन की आवश्यकता हो। पर कोई उसकी मदद करने को तैयार न हो। ऐसे में तुम्हारे गले में पड़ी सोने की चैन पर उसकी नजर पड़ी होगी और वह उसे बेचकर, अपने परिवार में उस बीमार सदस्य की बीमारी पर उस धन को खर्च कर रहा हो, तो सोने की चैन की सार्थकता वहां कितनी बढ़ गई होगी।

ईश्वर तुम्हें कितना आशीर्वाद दे रहा होगा कि तुम्हारे सोने के एक चैन ने उस गरीब के घर में आई संकट को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। अरे भाई, सोने की चैन जो तुम्हारे गले में थी तो उसका क्या मूल्य था, मूल्य तो तब हैं न, जब वो किसी के काम आये। अपराजिता की मां, अपनी सास की बात सुनकर अचंभित थी। उसे लगा था कि सोने की चैन खोने से उसकी सांस डांटेंगी, लेकिन यहां तो बात ही उलट गई थी। खैर अपराजिता की मां को इस घटना और उनकी सांस की बातों ने जिंदगी ही पलट कर रख दी।

लेकिन ये सारी घटनाएं अपराजिता के मानसिक पटल पर छाई हुई थी, पर सुजाता इन सारी बातों को भूल चुकी थी। उसके लिए ये सारी बातें कोई मायने नहीं रखती। सुजाता मानती थी कि आपकी पुछ तभी होगी, जब आपके पास धन हो, नहीं तो गरीबों को आजकल कौन पुछता है? इधर सुजाता अपने घर आ रही अखबारों को खुब पलटे जा रही थी। अक्षय तृतिया के आने के पहले ही सोने-चांदी व आभूषणों के क्रेताओं को रिझाने के लिए कारोबारियों ने मूर्ख तथाकथित पंडितों व अखबार से जुड़े मूर्ख पत्रकारों के आलेखों से अखबारों को पाट रखा था।

धीरे-धीरे इन अखबारों की चका-चौंध ने हर घर में अपनी पकड़ बना रखी थी। सभी को लग रहा था कि अक्षय तृतिया के दिन सोना खरीदना ही चाहिए। लोग अपने-अपने बजट के अनुसार सोने के आभूषण को खरीदने के लिए दिमाग लगाने शुरु कर दिये थे। कोई अपने बैंक में जमा राशि को इसके लिए खंगालने की कोशिश कर रहा था तो कोई कर्ज लेने में भी शर्म महसूस नहीं कर रहा था। मतलब घर की जमा पूंजी कारोबारियों के यहां देने के लिए, लोग बेकरार थे, घर की खुशियां समाप्त हो रही थी, पर लोगों को लग रहा था कि अक्षय तृतिया के दिन सोना लेने से उनके घर में शांति-समृद्धि आयेगी।

इधर सुजाता ने अखबार पलटने के क्रम में एक से एक आभूषण की सूची बनाई और अक्षय तृतिया के दो दिन पहले ही उस सूची को अपने पति के पास लाकर पटक दिया। बेचारे पति महोदय तो सोच रखे थे कि वो हमेशा की तरह एक कोई आभूषण लाकर दे देंगे, वो तो उनकी पत्नी है, खुश हो जायेंगी। लेकिन ये क्या इतनी लंबी सूची।

पति ने सुजाता से पूछा कि इतनी लंबी सूची का मतलब, तो सुजाता ने कहा कि बहुत वर्षों के बाद अपनी शादी की सालगिरह अक्षय तृतिया के दिन पड़ा है, जिस दिन अपनी शादी हुई थी। इस मौके को वो हाथ से गंवाना नहीं चाहती। हम लोग इस बार शादी की सालगिरह को विशेष तरीके से मनायेंगे। सुजाता के पति का दिमाग उड़ चुका था, क्योंकि इसी साल उसके बच्चे की पढ़ाई पर कुछ ज्यादा ही राशियां खर्च हो चुकी थी। जेब में पैसे नहीं थे। लेकिन पत्नी को खुश भी करना था। वे सोच में पड़ गये।

इधर अपराजिता के पति के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी। वो इस हालत में था कि अपराजिता के कहने पर कुछ भी कर सकता था, क्योंकि इस साल उसे प्रमोशन भी मिला था। अपराजिता के पति को लगता था कि ये सब उसकी पत्नी के धर्म का फल है कि उसे उन्नति मिली है। उसने अपराजिता को कहा कि अपराजिता बोलो इस बार अक्षय तृतिया में क्या ला दूं? अपराजिता ने कहा कि क्या बात है, आज आप बहुत खुश नजर आ रहे हैं। हां, क्यों नहीं। एक तो प्रमोशन। दूसरा अक्षय तृतिया आ रहा है और बहुत दिनों के बाद उस दिन 23 अप्रैल पड़ रहा हैं। ऐसे में इस दिन को हम क्यों न विशेष तरीके से मनायें।

अपराजिता को पति का यह बात सुन खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने कहा कि देखो संभल कर, मैं बहुत कुछ मांग सकती हूं। देना पड़ेगा। अपराजिता के चेहरे खिल गये थे, क्योंकि कल ही तो अपराजिता को पता चला था कि उसके दूर के रिश्तेदार के घर में बेटी की शादी होनी है। उन लोगों ने सारी तैयारियां कर ली हैं। पर बारातियों को खिलाने के लिए पैसे कम पड़ गये थे। इज्जत जाने का खतरा उत्पन्न हो गया था। अब वे करें तो क्या करें? अपराजिता ने उनलोगों से पूछा कि बारातियों को खिलाने में कितने पैसे खर्च होंगे। चूंकि अपराजिता के रिश्तेदार भी स्वाभिमानी थे, वे किसी के आगे हाथ पसारना नहीं चाहते थे। अपराजिता इस बात को जानती थी। उधर से उत्तर मिला – ऐसा कुछ नहीं, हमलोग कुछ न कुछ कर लेंगे।

अपराजिता ने अपने पति से सारी बातें कह सुनाई। अपराजिता के पति ने कहा कि अपराजिता तुम निराश मत हो। हम कल ही तुम्हारे साथ उनके यहां जायेंगे और सारी व्यवस्था कर देंगे। अपराजिता और उसके पति उस रिश्तेदार के घर पहुंचे। अपराजिता और उसके पति ने देखा कि शादी की सारी तैयारियां हो चुकी हैं, पर लोग बारातियों के स्वागत को लेकर बेचैन है। अपराजिता के पति ने उन्हें समझाया और लोग तैयार हो गये। अपराजिता के पति ने वहां ही बैठकर खाने-पीने, टेंट तथा घर की सजावट की व्यवस्था कर दी और फिर घर लौट आये।

लीजिये, 23 अप्रैल का शादी का सालगिरह का दिन आ गया। सुजाता और अपराजिता दोनों खुश थे। सुजाता ने अपराजिता को बुलाकर, उसे वे सारे गहने दिखाये, जो उसके पति ने अक्षय तृतिया के दिन खरीदे थे। सुजाता ने कहा कि अखबारों में उसने पंडितों और कारोबारियों से सुन रखा था कि आज सोना खरीदना हैं तो जमकर खरीदारी की। फिर सुजाता ने अपराजिता से पूछा कि तुम्हारे पति ने भी तो तुम्हारे लिए कुछ खरीदा होगा, दिखाओ। अपराजिता ने कहा कि हमने तो इस बार कुछ खरीदा ही नहीं, अगली बार सोचूंगी। सुजाता ने पुछा – मतलब। मतलब ये कि इस बार हम रागिनी की शादी सेलिब्रेट करेंगे। सुजाता को समझ नहीं आया कि अपराजिता ने ये क्या कह दिया।

इधर अपराजिता के पति ने अपराजिता को बांहों में भरकर कहा कि अपराजिता एक बात मैं कहूं। अपराजिता ने कहा – हां, क्यों नहीं? पता नहीं क्यूं? हर बार मैं तुम्हें शादी की सालगिरह या धनतेरस या अक्षय तृतिया के दिन कुछ न कुछ लाकर देता रहा। तुम सहर्ष स्वीकार की। जो भी दिया। स्वीकार की। कभी आज तक कुछ मांगा नहीं। इस बार मांगा भी तो ऐसा कि मैं अंदर से हिल गया हूं। जो खुशी इस बार हमें मिली है, वो खुशी मुझे कभी नहीं मिली। अपराजिता मुझे तुम पर गर्व है।

अपराजिता ने कहा कि देखो, अक्षय तृतिया का मतलब क्या होता हैं? तुम्हें पता है – नहीं। अक्षय तृतिया का मतलब होता है कि इस दिन ऐसा सौदा करो, जिस सौदे का कभी क्षय नहीं हो। जरा सोचों, तुम जो गहने लाते, वे सिर्फ हमारे शरीर की शोभा बढ़ाते, पर आज जहां अपनी राशि खर्च हो रही हैं, वो किसी के घर के सम्मान की शोभा बढ़ा रहे हैं, उनकी शोभा से हमें निश्चय ही वो आशीर्वाद ईश्वर के द्वारा प्राप्त हो रहा होगा, जिस आशीर्वाद का कभी क्षय हो ही नहीं सकता। ऐसे में तो अक्षय का मतलब समझ ही गये होंगे।

अपराजिता के पति ने कहा कि अपराजिता जितना ज्ञान तुम्हें हैं, उतना ज्ञान तो इन अखबार के संपादकों, मूर्ख पंडितों और कारोबारियों तक को नहीं होगा। अपराजिता ने कहा कि इससे हमें क्या, इन बेकार की बातों में हमें उलझना भी नहीं हैं। हां, हमें खुशी हैं कि हम दोनों ने अक्षय तृतिया और शादी की सालगिरह को इस बार विशेष तरीके से मनाया जो हमेशा यादगार रहेगा। वो इसलिये कि रागिनी के परिवारवालों की खुशियों में हम भी जो शामिल हो गये।