धर्म

निरन्तर ध्यान, सत्कर्म, आलोचना से बचने की कला, योगदा सत्संग सोसाइटी की पुस्तकों का अभ्यास आध्यात्मिक जीवन में बेहतरीन भूमिका निभाती है – श्रेयानन्द

निरन्तर ध्यान, सत्कर्म, अच्छा स्वास्थ्य, किसी की आलोचना नहीं करना और योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़ी पुस्तकों का निरन्तर अध्ययन और उसके अनुसार किया जानेवाला आचरण आपको अध्यात्म के उच्च शिखर अथवा ईश्वर के मार्ग पर ले जाने के लिए काफी है। ये बातें आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग में योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी श्रेयानन्द ने कही।

उन्होंने कहा कि ध्यान में निरन्तरता होना जरुरी हैं। अगर आप इसमें स्वयं अवरोध उत्पन्न करेंगे तो ये आपके आध्यात्मिक शिखर पर पहुंचने में रुकावट बनेगा। ये आपको सोचना है कि करना क्या है? उन्होंने कहा कि परमहंस योगानन्द जी कहा करते थे कि ध्यान में निरन्तरता होना जरुरी है, साथ ही ध्यान नियमित रुप से प्रातः और संध्या में हर साधक को करते रहना चाहिए, क्योंकि ये ध्यान का सही समय है।

उन्होंने कहा कि आपको पता होगा कि गुरुजी ने महाभारत के सौ कौरवों की तुलना 100 बुराइयों से की हैं, जिससे हमें सावधान रहना है। इन बुराइयों पर हम विजय प्राप्त कर सकते हैं, ये अपने हाथों में हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए आप योगदा सत्संग सोसाइटी से प्रकाशित होनेवाली पुस्तकों का नियमित रुप से अध्ययन करें, ये आपको बुराइयों पर विजय प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होंगी।

उन्होंने यह भी कहा कि एकांत में ध्यान करने से अच्छा है कि आप सामुहिक रुप से ध्यान करें, क्योंकि एकांत में ध्यान करने से सिर्फ आपकी आत्मा रिचार्ज होती हैं, जबकि ग्रुप मेडिटेशन से आत्मा और मन दोनों रिचार्ज हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मौन रहना, ध्यान में जाने का एक प्रमुख मार्ग है, इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि एकांत में रहने की कोशिश भी करनी चाहिए, पर वह एकांत ईश्वर के साथ हो, तो फिर क्या कहने। एकांतता दरअसल हमारे अंदर जिम्मेदारी, सकारात्मक ऊर्जा व हमारी याददाश्त को बढ़ाने में सहायक होती है। इसलिए ईश्वर को पाने की ईच्छा में मौन और एकांतता विशेष रुप से सहायक होती है।

उन्होंने आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ने के लिए लोगों से संतुलित जीवन को अपनाने को कहा। जैसे सात्विक भोजन करने, अधिक खाना नहीं खाने, तामसी भोजन से बचने की भी लोगों को सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि आप विपरीत परिस्थितियों में भी हंसना-प्रसन्न रहना नहीं छोड़े, क्योंकि यह आपके शरीर के अंदर ऊर्जा का संचार करेगा। स्वयं संयमित जीवन अपनाये। जीवन को अनुशासित रखें। दयालुता को अपनाएं। सभी से प्रेम करना सीखें। कभी किसी की आलोचना नहीं करें, क्योंकि आलोचना आपके मन की शांति को हर लेती हैं, फिर आप कहीं के नहीं रहते, बेचैन हो जाते हैं।