छवि रंजन की पत्नी के साथ अपमानजनक व्यवहार करनेवाले पत्रकार के खिलाफ FIR दर्ज हो, महिला आयोग व राज्य पुलिस स्वतः संज्ञान लें
तुम पत्रकार हो, पत्रकार ही रहो तो ठीक है, तुम जज कब से बन गये? तुम्हें अधिकार किसने दिया कि तुम किसी आरोपी की पत्नी को चोर की पत्नी कहो? क्या तुम्हारे माता-पिता या जिस संस्थान में तुम काम करते हो, उन्होंने तुम्हें संस्कार नहीं दिया, चरित्र की जन्मघूंटी नहीं पिलाई कि एक महिला का सम्मान कैसे किया जाता है? या एक महिला का सम्मान कितना महत्वपूर्ण है?
अगर तुम्हारे इस हरकत से उस महिला ने अपना आपा खो दिया अथवा उसके साथ कुछ हो गया तो इसके लिए जिम्मेवार कौन होगा? क्या तुमने अपना चरित्र या संस्कार देखा है? कि तुम क्या हो? अगर तुम्हारे इसी हरकत से दुखी होकर, प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने भृकुटि तान दी और तुम्हारी वजह से अन्य पत्रकारों को प्रवर्तन निदेशालय कार्यालय के आस-पास भटकने से भी मनाही कर दी तो फिर क्या होगा?
दरअसल तुमने जो हरकत की है, उस हरकत को देखते हुए, जहां तुम काम करते हो, उस संस्थान को चाहिए कि बिना देर किये तुम्हे अपने संस्थान से बाहर निकाले। महिला आयोग को चाहिए कि वो तुम्हारे खिलाफ स्वतः संज्ञान लें, क्योंकि तुमने एक महिला के सम्मान के साथ खेलने की कोशिश की। होना तो यह भी चाहिए कि राज्य की पुलिस स्वतः संज्ञान लेकर तुम्हारे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करें और तुम्हें गिरफ्तार करें।
क्योंकि तुमने वायरल वीडियो में साफ कहा है कि तुम्हारी रुचि समाचार संकलन करने में नहीं, बल्कि यही बोलने के लिए आये थे, मतलब तुम आदतन अपराध करने के लिए घर/संस्थान से निकले थे। मेरी आज एक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी से इस संबंध में बातचीत हुई है, उनका कहना है कि अगर कोई स्वतः संज्ञान नहीं लेता है तो छवि रंजन की पत्नी को चाहिए कि उक्त पत्रकार के खिलाफ संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज कराये और पुलिस इस मामले में एक्शन लें, क्योंकि यह अक्षम्य अपराध है।
इधर इस पूरे मामले में राज्य के संभ्रांत पत्रकारों ने विभिन्न माध्यमों के द्वारा उक्त पत्रकार की तीखी आलोचना की है। रांची प्रेस क्लब से संबंधित क्लब फॉर इन्फारेमेशन नामक व्हाट्सएप ग्रुप में भी सुबह से जमकर चर्चा चल रही है। वरिष्ठ पत्रकारों के समूहों ने एक स्वर में कहा है कि पत्रकार का काम किसी की पत्नी को गाली देना है क्या?, एक ने कहा कि यह सड़क छाप हरकत है, ऐसा तो गुंडे भी नहीं करते हैं, उन्हें भी संस्कार होता हैं, लेकिन यहां तो संस्कार विहीन कार्य किया जा रहा है। एक ने कहा कि पत्रकार कब से जज बनने लगे।
एक ने कहा कि इस तरह की अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। एक ने कहा कि ऐसे लोगों को चिह्नित कर कार्रवाई करनी चाहिए। ज्यादातर पत्रकारों ने ऐसा हरकत करनेवाले को लीचड़ की संज्ञा दी। एक ने कहा कि ईडी ऑफिस के बाहर दारु चल रहा था, गरिमा कहा से याद रहेगा। एक ने कहा कि बहुत घटिया स्थिति है। वैसे आज के बाद ईडी दफ्तर के बाहर ऐसी स्थिति बनी तो सीआरपीएफ तैयार है। अंदर ले जाकर कुटाई करेगा अब। तब कोई ये नहीं कहे कि पत्रकारिता पर हमला हुआ है। एक ने कहा कि ऐसे लोगों को चिह्नित कर इस जमात से दूर रखो। अपना अस्तित्व बचाओ।
एक ने कहा कि सादर अपील – प्रेस की गरिमा का तो ख्याल रखे भाई लोग। अब से थोड़ी देर पहले ईडी के ज्वाइंट डायरेक्टर ने कॉल किया। उन्होंने बताया कि कल दफ्तर के बाहर पत्रकारों ने हूटिंग की। ईडी के अधिकारी जब निकल रहे थे, अरे चश्मेवाला, अरे, ओए चश्मिश जैसे कमेंट किया गया। सीआरपीएफ नहीं होती तो दिक्कत आती। भाई, लोगों से गुजारिश है कि ऐसा माहौल नहीं बनने दें, और जो ऐसा व्यवहार सामने करें, उसे रोके भी।
आपकी पत्रकारिता कब से डर गई आपने पत्तरकार का नाम क्यों नही लिखा