परमहंस योगानन्दजी के गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरि दया में फूलों से भी कोमल और सिद्धांतों में वज्र से भी कठोर थे – स्वामी सदानन्द
ज्ञानावतार स्वामी युक्तेश्वर गिरि जी जहां दया की आवश्यकता होती थी, वहां वे फूलों से भी कोमल हो जाया करते थे और जहां सिद्धान्त की बात होती थी, वहां वे वज्र से भी कठोर हो जाया करते थे। सच्चाई भी यहीं हैं जो उच्चकोटि के गुरु होते हैं, उनके ये स्वभाव में ये बातें हुआ करती है। वे तो अपने शिष्यों को आध्यात्मिक उन्नति व ईश्वर के मार्ग पर ले जाने के लिए हर प्रकार के कठिन मार्ग को सुगम बनाने का प्रयत्न करते हैं, बदले में वे सिर्फ यहीं चाहते है कि उनका शिष्य उनके बतायें मार्ग पर दृढ़ निश्चयी होकर सिर्फ चलता रहे, बढ़ता रहे। यह बातें आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग में योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी सदानन्द ने कही।
उनका आज का पूरा प्रवचन ज्ञानावतार स्वामी युक्तेश्वर गिरि पर केन्द्रित था। उन्होंने अपने वक्तव्यों में कहा कि स्वामी युक्तेश्वर गिरि ने अपना शरीर छोड़ने के बाद कई लोगों को इस प्रकार दर्शन दिया, जैसे वे मानव शरीर के रुप में उसके पास विद्यमान हो। वे कई घंटों तक पुनरोत्थान के बाद कई लोगों से वार्ता भी करते रहे। उनमें से एक अपने परमप्रिय गुरु परमहंस योगानन्द जी भी थे।
उन्होंने बताया कि सन् 1963-64 में अपनी भारत यात्रा के दौरान दयामाता जी ने भी उन्हें देखा था। स्वामी सदानन्द गिरि ने स्वामी युक्तेश्वर गिरि जी के बारे में बताया कि वे बराबर कहा करते थे कि अपने अंदर व्याप्त भय का मुकाबला डटकर करो। ये जो मोह-माया है, वो मनुष्य को अंधा बनाकर रख देता है। इससे उपर उठो। स्वामी युक्तेश्वर गिरि हमेशा ब्रह्मवेला में उठ जाया करते थे। फिर गंगा के किनारे परिभ्रमण भी किया करते।
स्वामी सदानन्द ने कहा कि युक्तेश्वरजी कहा करते थे भोजन वहीं करो, जो तुम्हारे शरीर की प्रकृति के अनुसार हो। भोजन जितना सादा व संतुलित होगा, उतना ही अच्छा है। स्वामी युक्तेश्वर गिरि जी के आश्रम से कोई भुखा नहीं लौटता, वे फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि फिजूलखर्ची मनुष्य को अशांत बनाकर रख देता है। वे कहा करते थे कि अपने शरीर के अंदर जो आत्मा हैं, उसकी रक्षा आध्यात्मिक शक्तियों के सुरक्षा प्रहरियों को तैनात करके करो, फिर देखों तुम्हें कितना आनन्द प्राप्त होता है।
उन्होंने कहा कि युक्तेश्वर गिरि हमेशा ग्रुप मेडिटेशन में विश्वास करते थे। यही बातें परमहंस योगानन्द जी भी कहा करते थे। परमहंस योगानन्द जी ने ही कहा था कि माया का अंधकार धीरे-धीरे सभी को अपने आगोश में ले रहा हैं, हमें चाहिए कि हम क्रिया योग के माध्यम से स्वयं को इससे बचाएं। स्वामी सदानन्द ने कहा कि आप सभी दोनो समय सुबह-शाम क्रिया योग का अभ्यास करें। योगदा सत्संग सोसाइटी द्वारा बताई गई। हं-सः व ओम् तकनीक का अभ्यास करें।
उन्होंने युक्तेश्वर गिरि जी के जीवन में घटी घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि कुम्भ मेले में लाहिड़ी महाशय के कहने पर ही युक्तेश्वर गिरि उक्त मेले में जाकर, महावतार बाबा जी से मिले थे। जहां महावतार बाबा जी ने उन्हें स्वामी की उपाधि दे डाली थी। उसी कुम्भ मेले में महावतार बाबा जी ने युक्तेश्वर गिरि को कहा था कि कालांतराल में एक तेजस्वी बालक उनको प्राप्त होगा, जो पूर्व और पश्चिम को अपनी आध्यात्मिक शक्ति से एक करने का प्रयास करेगा।
दरअसल वो बालक और कोई नहीं परमहंस योगानन्द जी थे। जो उन्हें कालांतराल में मिले। जिसे देखकर युक्तेश्वर गिरि ने समय आने पर पहचान भी लिया था। स्वामी सदानन्द ने अपने प्रवचन में बड़ी ही रोचक कथा सुनाई, जो युक्तेश्वर गिरि और परमहंस योगानन्द जी के मिलने से संबंधित थी। उन्होंने कहा कि जब परमहंस योगानन्द जी युक्तेश्वर गिरि से मिले थे तब उन्होंने कहा था कि “मैं तुम्हें निस्वार्थ प्रेम प्रदान करता हूं।” उनके शब्दों में साधारण प्रेम में स्वार्थ छुपा होता है, पर निस्वार्थ प्रेम दिव्य और आध्यात्मिक प्रेरणाओं से युक्त होता है।
स्वामी सदानन्द ने कहा कि अगर ईश्वर को पाना है। आध्यात्मिक पथ पर आपको उन्नत होना है। तब आप एक काम पहले करें, वह यह कि आप अतीत को भूल जाये। दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हैं, जो अतीत में पाप नहीं किया हैं। आपके पास वर्तमान हाथ में हैं। आप इस वर्तमान को हाथ से निकलने न दें। आप आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयास करें।
आप पायेंगे कि आप प्रगति पथ पर हैं। उन्होंने कहा कि इस आध्यात्मिक पथ पर चलेंगे तो आपको अनेक दिव्य अनुभूतियों से सामना होगा, आप उन अनुभूतियों को किसी से शेयर न करें, क्योंकि जब शेयर करेंगे तो फिर उन अनुभूतियों को आप प्राप्त नहीं कर पायेंगे, आप उन अनुभूतियों में निरन्तर डूबने का प्रयास करें।
स्वामी सदानन्द ने युक्तेश्वर गिरि के आश्रम में आये कुमार नामक शिष्य और परमहंस योगानन्द जी के बीच हुए कटुता की भी छोटी कहानी सुनाई, उस कहानी से यही पता चला कि जो गुरु होते हैं, वे अपने प्रिय शिष्य को किसी भी हालात में रक्षा ही करते हैं, उन्हें सत्य-असत्य का पता चलता रहता है, इसलिए जो आध्यात्मिक पथ पर हैं, उसके लिए कही कोई समस्या ही नहीं। यही कारण रहा कि कुछ पल में ही वो कुमार नामक शिष्य आश्रम से वंचित हो गया, जबकि परमहंस योगानन्द युक्तेश्वर गिरि जी के सान्निध्य में आगे बढ़ते चले गये।
स्वामी सदानन्द ने युक्तेश्वर गिरि जी की उनकी मां के संबंध की एक सुंदर कड़ी कहानी के रुप में सुनाई जो बड़ा ही रोचक था। स्वामी युक्तेश्वर गिरि के पुनरोत्थान के बाद उनका मुंबई के होटल में परमहंस योगानन्द जी से दो घंटे तक मिलकर बातें करनी वाली घटना का वृंतात भी स्मरणीय रहा। युक्तेश्वर गिरि जी के देह त्याग की कथा बड़ी ही मार्मिक रही। कुल मिलाकर स्वामी सदानन्द प्रवचन दिये जा रहे थे और कब समय बीत गया, योगदा भक्तों को पता ही नहीं चला।