नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर, विपक्षी दलों के बयान को आप अपनी चेतना के अनुसार स्वीकार करेंगे या अस्वीकार, मैं इसे आप पर छोड़ता हूं
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को लगता है कि 28 मई को नई दिल्ली में नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों, वो भी महान क्रांतिकारी वीर सावरकर के जन्मदिन पर संपन्न होने जा रहा हैं, वो पूर्णतः गलत है, झामुमो का मानना है कि ऐसा करके भाजपा ने एक आदिवासी राष्ट्रपति का अपमान किया है। इसको लेकर झामुमो ने कई तर्क दिये हैं, जिसे आप अपनी चेतना के अनुसार स्वीकार भी कर सकते हैं और अस्वीकार भी कर सकते हैं।
दरअसल इस देश में हर राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार राजनीति करता है और अपनी सुविधा के अनुसार अपने प्रतिद्वंदियों को गलत और सही ठहराता है। ज्यादातर राजनीतिक दल अपने प्रतिद्वंदियों को शत्रु मानकर, उसका हर समय अपमान ही करता है, चाहे उसका प्रतिद्वंदी सही ही क्यों न हो। आश्चर्य है कि एक ओर पूरे विश्व के प्रमुख नेता नरेन्द्र मोदी की सराहना करते नहीं थक रहे, उन्हें अपने देश का सर्वोच्च सम्मान देने से नहीं चूक रहे, उनके पांव तक छूने से परहेज नहीं कर रहे।
वहीं अपने देश में नरेन्द्र मोदी को गाली देने, उन्हें अपमानित करने, तथा हर समय उन्हें कोसने के लिए कोई न कोई विपक्षी दल अपने ढंग से समय, स्थिति व प्रकरण चून ही लेता है। अभी पूरे देश में नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर नरेन्द्र मोदी और भाजपा की विपक्षी दल तीखी आलोचना कर रहे हैं। वे पार्टियां तीखी आलोचना कर रही हैं, जो समय-समय पर राष्ट्रपति को अपने इशारों पर नचाया, उनसे वो काम करवाया जो वो करना भी नहीं चाहते थे।
पर आज स्थिति देख लीजिये, वे ही लोग नरेन्द्र मोदी और भाजपा को कटघरे में खड़े कर रहे हैं। कल तक जो पार्टियां नये संसद भवन के निर्माण पर ही अंगूलियां उठा रही थी, अब बन जाने पर राष्ट्रपति के द्वारा उद्घाटन क्यों नहीं कराया जा रहा, इसको लेकर बहस कर रही हैं, कमाल तो यह है कि जो कांग्रेस की सोनिया गांधी व राहुल गांधी और उनके पूर्व के नेता अपने इशारों पर जिसे पाया, उसे राष्ट्रपति बना दिया, प्रधानमंत्री बना दिया और अपने इशारों पर देश को चलाते रहे, उन्हें इस मुद्दे पर बड़ा कष्ट हो रहा हैं, और जो लोग कांग्रेस के साथ शासन में शामिल हैं, वे भी चून-चून कर शब्दकोष से गलतियां व खामियां निकालकर भाजपा को, प्रधानमंत्री को जो चाहे, जो बक दे रहे हैं।
इसमें वे लोग भी शामिल है, जिनके नेता को चारा घोटाले में सजा भी मुकर्रर हुई है। जिस वीर सावरकर के नाम पर कांग्रेस के शासनकाल में ही उनके सम्मान में डाक टिकट तक जारी किये गये, वे कांग्रेसी वीर सावरकर को अपमानित करने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते है और उनके इशारों पर वे पार्टियां भी ऐसा करती हैं, जिनका जनाधार किसी खास क्षेत्र में हैं। हालांकि विपक्षी दलों में शामिल शिव सेना (उद्धव गुट) इसको लेकर कांग्रेस को कई बार चेतावनी दे चुका है कि वो वीर सावरकर के अपमान को बर्दाश्त नहीं करेगा, फिर भी कांग्रेस और आज झामुमो ने खुलकर वीर सावरकर के बारे में अनाप-शनाप बयान दे ही डालें।
हालांकि पूरा देश जानता है कि हमारे देश में राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल संवैधानिक पद हैं। सम्मानित पद हैं। इनका देश के शासन में प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं रहता। ये संसद या विधानसभा को संबोधित भी करते हैं, तो उसमें उनका कुछ भी नहीं रहता, बल्कि सरकार द्वारा तैयार किये गये भाषण को ही पढ़ते हैं, फिर भी पता नहीं इन दिनों राष्ट्रपति पर कांग्रेसियों और उनके साथ चलनेवालों को बड़ा राष्ट्रपति से प्रेम हो उठा है।
कल तक आदिवासी महिला जो राष्ट्रपति के पद की उम्मीदवार थी, उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करनेवाली पार्टियों को आज राष्ट्रपति में आदिवासी और महिला दिखाई पड़ रही हैं और इसी की दुहाई देकर भाजपा और पीएम मोदी से उन्हें सम्मान देने की बात कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यहां की प्रमुख विपक्षी पार्टियां न तो आदिवासियों को, न ही महिला को, न ही दलितों को सम्मान देती हैं।
सच्चाई यही है कि इनका सम्मान, सिर्फ इनका अपने परिवार के लिए होता हैं, नहीं तो देश की जितनी भी प्रमुख पार्टियां हैं, उनका चरित्र और व्यवहार देख लीजिये, आपको सब पता चल जायेगा। सोनिया गांधी क्या अपने राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नहीं लड़ रही, क्या लालू यादव अपने बेटे को बिहार का सीएम बनाने के लिए हथकंडे नहीं अपना रहे, क्या यहीं हाल विपक्ष के अन्य दलों के नहीं हैं, और जब यहीं हैं तो बेवजह की आदिवासी, महिला, दलित, पिछड़ा आदि का बहाना देकर वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर निशाना क्यों?