धर्म

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर योगदा संन्यासियों ने परमहंस योगानन्द सहित समस्त गुरुओं को किया याद, बहती भक्ति रसधारा में शिष्यों ने लगाई डूबकी

आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा यानी उन गुरुओं को समर्पित वह विशेष दिन, जिन गुरुओं ने अपने शिष्यों पर विशेष प्रेम लूटाकर उनके जीवन को प्रेमानन्द से भर दिया। जिन गुरुओं ने अपने शिष्य के हृदय को दिव्य प्रकाश से भर दिया। जिन गुरुओं ने अपने शिष्यों को नित्य नवीन आनन्द प्रभु से साक्षात्कार करवा दिया। जिस दिन शिष्य अपने ऐसे गुरुओं को याद कर, उनके प्रति अपना विशिष्ट प्रेम को लूटाता हैं और उनसे बार-बार यह अनुग्रह करता/रखता है कि ऐसे दिव्य गुरुओं का आशीर्वाद बराबर उस पर बना रहे।

ठीक ऐसा ही परिदृश्य दिखाई पड़ा। रांची के योगदा सत्संग मठ में जहां योगदा संन्यासियों व योगदा भक्तों ने गुरु पूर्णिमा के इस विशेष दिन को विशेष ढंग से मनाया। ऐसे तो प्रत्येक वर्ष यहां गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। पर, यहां एक विशेष चीज यह देखने को बराबर मिला कि यहां हर वर्ष कुछ न कुछ नवीनता देखने को अवश्य मिल जाती है, जिस नवीनता को देख योगदा भक्त उस छाप को सदा के लिए अपने हृदय में धारण कर उसे वर्ष पर्यन्त अपने हृदय व मन-मस्तिष्क में बनाये रखते हैं।

इस बार स्वामी अमरानन्द गिरि ने अपने भजनों से सभी के हृदय को आह्लादित कर दिया। उनके मुक्त कंठ ने परमहंस योगानन्द व अन्य गुरुओं को इस प्रकार से याद किया, कि उनकी भक्ति रस धारा में वहां उपस्थित सभी योगदा संन्यासियों व योगदा भक्तों ने डूबकी लगाई। वे भजन गाते और बिना किसी किन्तु-परन्तु के वहां उपस्थित सभी के होठों पर वे भजन स्वयं अपनी उपस्थित दर्ज करा देते। सभी के मन-मस्तिष्क पर उनके गाये भजन छाये रहे।

उनके द्वारा गाये भजन, जैसे – गोपाल गिरधारी, गोपाल गिरधारी…, हर हर शंकर साम्ब सदाशिव, हर हर महादेव बम बम भोला…, ओम गुरु, ओम गुरु, जय गुरु जय, जय गुरु जय गुरु, जय गुरु जय, युक्तेश्वर गिरि जय गुरु जय, लाहिड़ी महाशय जय गुरु जय, महावतार बाबा जी जय गुरु जय, अमर गुरु योगानन्द, परमहंस सदगुरुदेव…, लोगों के कानों में मिसरी घोल गये।

उसके बाद एक अन्य संन्यासी ब्रह्मचारी संभवानन्द ने भक्ति रस की गंगा बहाई। उन्होंने गुरु का ध्यान करो, मन में प्रेम भरो, गुरु की शरण में रहो, सदा तुम गुरु की शरण में रहो…, गुरु तुम्हारे चरणों में, हम नित नित शत शत नमन करें…, गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम्, गुरु शरणम्… गाये।

इधर योगदा सत्संग मठ में स्थित शिव मंदिर के प्रांगण में परमहंस योगानन्द जी की बड़ी सी चित्र के आगे संन्यासियों और योगदा भक्तों के द्वारा गुरु भजन के साथ-साथ गुरु पूजन का कार्यक्रम चल रहा था और उधर पूरे आश्रम में मैंने महसूस किया, कि वहां आस-पास खड़े विशाल वृक्ष व छोटे-छोटे पौधे भी परमहंस योगानन्द के आगे शांत भाव से खड़े होकर, स्वयं को तृप्त करने में लगे थे।

चूंकि मैंने पहले ही कहा था कि आज का दिन किसी भी शिष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है, जो गुरुओं के महातम्य को समझता है, जो गुरु के महातम्य को जानेगा ही नहीं, वो क्या समझेगा कि गुरु पूर्णिमा क्या होता है? पर हमने देखा कि देश के कोने-कोने से कई श्रद्धालु योगदा सत्संग मठ आकर आज यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

उन्होंने आज के दिन के महत्व को समझा और अपने परमहंस योगानन्द द्वारा स्थापित इस आश्रम में रहकर यहां के संन्यासियों के साथ अपना आज का दिन गुजारना ज्यादा जरुरी समझा और अपने जीवन को धन्य करने में लगाया। कार्यक्रम समाप्ति के बाद, भंडारा का भी आयोजन हुआ, जहां कई ब्रह्मचारियों व संन्यासियों और योगदा भक्तों ने श्रद्धालुओं के बीच गुरु प्रसाद भी वितरित किया।