भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेता राज्य के CM हेमन्त सोरेन को गाली देकर अपना सिर्फ खीझ निकाल सकते हैं, क्योंकि सत्ता से उखाड़ फेंकने की ताकत उनमें रत्ती भर भी नहीं
जब से राज्य के मुख्यमंत्री पद पर हेमन्त सोरेन विराजमान हुए हैं। तब से लेकर आज तक पता नहीं क्यों, भाजपा के प्रदेशस्तर के नेता उन्हें फूटी आंखों से भी देखना क्यों नहीं पसन्द करते? लोकतंत्र में विपक्षी दलों द्वारा सत्ता पक्ष के गलत नीतियों/कार्यों का विरोध प्रजातंत्र को मजबूती प्रदान करता है, पर विरोध की भाषा गालियों में परिवर्तित हो जाये, तो इसे क्या कहेंगे?
हालांकि इन गालियों का प्रयोग अब हर दल के लोग अपने विरोधियों के लिए कर रहे हैं, पर भाजपा जैसी खुद को अनुशासित मानने वाली पार्टी, राज्य के मुख्यमंत्री को नालायक, अहंकारी, अल्पज्ञानी, अयोग्य, मूर्ख, बेवकूफ व चोर जैसे उपाधियों से अलंकृत करें, वो भी अपने सोशल साइट पर लिखकर इसका प्रचार-प्रसार करें, तो इसे क्या कहा जाये?
यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक राजनीतिक ईकाई है, आज भी इसके संगठन मंत्री जो होते हैं, वे संघ से ही जुड़े होते हैं, जिसकी पार्टी पर पकड़ ज्यादा मजबूत होती है। हाल ही में जब से राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री व वर्तमान में भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का टिव्ट मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन पर आना शुरु हुआ है, उस टिव्ट में छपे हुए आपत्तिजनक शब्दों पर बुद्धिजीवियों में चर्चा शुरु हो गई।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो ऐसी भाषा का प्रयोग वहीं करता हैं, जो बहुत ही कमजोर होता है या अपनी हार मान चुका होता है या वो समझ लेता है कि उसका अब कोई वजूद नहीं रहा। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि राज्य में आज भी हेमन्त सोरेन की सरकार उतनी ही मजबूती से खड़ी हैं, जितनी की दिसम्बर 2019 में थी। जरा देखिये इस पहली ट्विट को जो बाबूलाल मरांडी का है …
“कभी कभी सोचता हूँ कि परिवारवादी दलों ने अपने योग्य, अनुभवी और संघर्षशील नेताओं को आगे किया होता तो तस्वीर कितनी अलग होती। जैसे यूपी में मुलायम सिंह ने, बिहार में लालू यादव ने और झारखंड में शिबू सोरेन ने अपने किसी दूसरे अनुभवी, जुझारू साथी को गद्दी सौंप दी होती या उन्हें आगे बढ़ा दिया होता तो राज्य का कुछ भला हो गया होता।
झारखंड के संदर्भ में मेरा मानना है कि स्टीफन मरांडी जी, दिवंगत साईमन मरांडी, लोबिन हेम्ब्रम जैसे कई अनुभवी आंदोलनकारी ज़मीन से जुड़े नेता थे, जो शिबू जी के साथी रहे लेकिन जब गद्दी सौंपने की बात आई तो उन्हें किनारे लगा अपने अयोग्य, अहंकारी, अल्पज्ञानी एवं सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए नालायक बेटे हेमंत को नेतृत्व थमा दिया। परिणाम सामने है। परिवारवादी दल लोकतंत्र पर कलंक हैं। इन्हें मिटाना ज़रूरी है। अगले चुनाव में जनता अयोग्य परिवारवादियों को निकाल बाहर करेगी।”
दूसरा टिव्ट पर अब नजर डालिये – “चोर को चोर नहीं तो क्या कहा जाय? जो मुर्ख ग़लत के विरोध में आवाज़ उठाने वालों पर सत्ता के नशे एवं ताक़त से बिना सिर पैर के झूठे मुक़दमे करवाये, जो अपनी ग़लतियों एवं ज़मीन-जायदाद के लालच में एक-एक कर खुद के बनाये जाल के केश-मुक़दमों में अपनी लूट मंडली के मित्रों के साथ सपरिवार फँसता चला जाय, उसे मुर्ख और बेवक़ूफ़ नहीं तो क्या कहा जाय?”
आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ भी कभी राहुल गांधी और उनकी पार्टियों के नेता कई बार आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं, जिसके दुष्परिणाम भी कांग्रेस पार्टी को उठानी पड़ी, कई राज्यों में उनकी सत्ता आते-आते हाथों से निकल गई। कही ऐसा नहीं कि झारखण्ड में भी भाजपा के साथ वहीं हाल हो जाये। हालांकि ऐसा दूर-दूर तक दिखता नहीं कि भाजपा यहां सत्ता में आ ही जाये।
इनके प्रदेशस्तर के अयोग्य नेताओं ने पार्टी को उस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि लोकसभा में पार्टी एक सीट भी निकाल पायेगी, इसकी संभावना दिख नहीं रही। इनकी पार्टी में ही कई गुट बन चुके हैं और कार्यकर्ता भी कई गुटों में बंट कर पार्टी का सत्यानाश करने पर तूले हैं। भाजपा के प्रदेशस्तर के नेताओं में आपस में ही इतनी संवादहीनता है कि लोग एक दूसरे से बात नहीं करते। हाल ही में एक जुलाई को हुई प्रमंडलीय बैठकों में कई जगहों पर वर्तमान सांसद व विधायकों को नहीं पाया जाना, इसका सुंदर उदाहरण है। जबकि झामुमो लोबिन हेम्ब्रम को छोड़कर कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जो हेमन्त सोरेन के खिलाफ हो।
भाजपा के नेता तो पत्रकारों से भी भिड़ रहे हैं। ऐसी-ऐसी हरकतें करते हैं कि सुनकर हंसी आ जायेगी। जो पत्रकार इनकी हरकतों को इनकी सामने रखता हैं, उसे अपने व्हाट्सएप ग्रुप से निकाल देते हैं, जैसे लगता है कि उसके अपने ग्रुप से निकाल देने से वो पत्रकार उनकी हरकतों के बारे में जनता के समक्ष रखना बंद कर देगा। यह तो भाजपा की स्थिति है, मतलब खुद मूर्खता का सारा रिकार्ड तोड़ने में लगे हैं, और दूसरों को मूर्खता का खिताब दे रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों का तो ये भी कहना है कि भाजपा का आईटी सेल तो कभी हेमन्त सोरेन पर रामायण धारावाहिक का गीत फिट कर, हेमन्त सोरेन को दशानन यानी रावण तक बना दिया था। देखिये इस वीडियो को साफ-साफ बता रहा है कि कैसे भाजपा के आईटी सेल ने विभिन्न चैनलों पर चले समाचारों को लेकर एक वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था।
इस वीडियो से तो लग रहा था कि जिस दिन ये वीडियो चला है, बस उसके दूसरे दिन ही हेमन्त सोरेन की विदाई तय है। कभी चुनाव आयोग, तो कभी राजभवन के पैतरें, कभी भाजपाइयों के बेवजह के आंदोलन, तो कभी प्रतिदिन के प्रेस कांफ्रेस में हेमन्त सरकार पर हमले, कभी खनन घोटाला तो कभी चुनाव आयोग का डंडा, तो कभी विधायक प्रतिनिधि के नाम पर हेमन्त सोरेन को घेरने का काम, पता नहीं कौन-कौन से आरोप लगाकर हेमन्त सोरेन के नाक में दम कर दिया गया, फिर भी हेमन्त सोरेन को सत्ता से उखाड़ फेंकने में ये नाकाम रहे।
जिस दिन प्रवर्तन निदेशालय ने सीएम हेमन्त सोरेन को अपने कार्यालय में बुलाया था, उस दिन तो लगा था कि हेमन्त सोरेन गये। चुनाव आयोग की चिट्ठी और राजभवन का उस चिट्ठी को लेकर चुप्पी, ऐटम बम तक की बात साफ बता रहा था कि राज्य में हेमन्त सरकार को अस्थिर करने के लिए भाजपाइयों द्वारा क्या-क्या किया जा रहा था/है।
लेकिन उसके बावजूद भी ये भाजपाई हेमन्त को जड़-मूल से क्या उखाड़ेंगे ये हिला भी नहीं सकें, जबकि इसके विपरीत हेमन्त सोरेन ने ऐसे-ऐसे निर्णय जनहित में ले लिये कि ये झामुमो के लिए मील के पत्थर बन गये। स्थिति ऐसी है कि झारखण्ड के राजनीतिक मैदान में हेमन्त सोरेन ने अंगद की तरह इस प्रकार पांव जमा लिये है कि भाजपा का कोई नेता उन्हें हिलाने की जुर्रत नहीं कर सकता, हां गाली देकर अपनी खीझ निकाल लें, ये अलग बात है।