अपनी बात

राष्ट्रीय नेताओं ने दीपक को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया, बाबूलाल को दी जिम्मेवारी, पार्टी में व्याप्त असंतोष, संवादहीनता व कार्यकर्ताओं का खोया सम्मान बना बड़ा मुद्दा

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भाजपा झारखण्ड की सुध ली है। झारखण्ड में पार्टी के गिरते स्तर को कैसे उठाया जाय, जनता के बीच पार्टी को फिर से कैसे मजबूत बनाया जाय, किस नेता को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाय, जो पार्टी को पुनः शीर्ष पर ले जाये, सभी को एकता के सूत्र में बांधे, पार्टी में जो संवादहीनता जड़ जमा ली है, कार्यकर्ताओं में जो असंतोष हैं, उसे कैसे खत्म किया जाये, इसको लेकर गहन चिन्तन मंथन करने के बाद इसकी जिम्मेवारी प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को सौंप दी। दीपक प्रकाश को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर, बाबूलाल मरांडी को यह पद आज ही सौंप दिया गया।

सच्चाई यही है कि विद्रोही24 ने लगातार इस बात को अपने समाचार में उद्धृत किया था कि राज्य में पार्टी की स्थिति ठीक नहीं हैं। भाजपा लगातार पिछड़ रही है। भाजपा के शीर्ष नेता अपने कार्यकर्ताओं को कुछ समझ ही नहीं रहे हैं। कोई उन्हें चिरकुट तो कोई उन्हें दो लाख के ठेके पर बिककर किसी भी नेता के पक्ष में नारेवाला बता दे रहा है, ऐसे में पार्टी की स्थिति क्या होगी?

यही नहीं हाल ही में प्रमंडलीय बैठक की गई। उस प्रमंडलीय बैठक में सांसद और विधायक की उपस्थिति अनिवार्य बता दी गई थी और हजारीबाग के बैठक में धनबाद के सांसद और कई विधायक अनुपस्थित थे। इसका मतलब क्या है, इसका मतलब है कि पार्टी में संवादहीनता उच्चस्तर पर है। संथाल परगना के कई कार्यकर्ताओं ने विद्रोही24 को बताया कि जिस नेता को यहां का प्रभारी बनाया गया है, वो नेता को कितना भी उसके मोबाइल पर फोन कीजिये, वो फोन ही नहीं उठाता। मतलब संथाल परगना का प्रभारी तो सिर्फ भाजपा के संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह की गणेश परिक्रमा को ही सब कुछ जानता है, ऐसे में पार्टी की स्थिति रसातल में जानी ही थी।

अभी हाल ही में एक महीने का हेमन्त सरकार के खिलाफ आंदोलन इनलोगों ने चलाया। नतीजा क्या निकला। हेमन्त सरकार पर इनके आंदोलन का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा, क्योंकि हेमन्त सरकार इनकी सारी गतिविधियों पर नजर रखकर, इनकी हवा निकाल रही थी। हद तो तब हो गई कि जो पत्रकार इनके इस कुकृत्य का पर्दाफाश कर रहा था, ये लोग उसी से उलझ पड़े, चूंकि ताकत तो कुछ थी नहीं, तो ले-देकर उक्त पत्रकार को अपने व्हाट्सएप ग्रुप से ही हटवा दिया। अब ऐसी हरकत भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी करें तो इसका मतलब है कि भाजपा किस ओर जा रही हैं, वो समझ लीजिये। जबकि आमतौर पर यही देखा जाता है कि पत्रकार जैसा भी हो, जो सही नेता हैं, वो उलझता नहीं हैं, बल्कि मीरा की रचना दधि मथि घृत काढ़ि लियो … पर विश्वास करता है।

यही नहीं जितने भी बिल्डर, जमीन दलाल, निष्क्रिय व अविश्वसनीय लोग थे, उन्हें भाजपा में आश्रय दिया जाने लगा, नहीं विश्वास हो तो दीपक प्रकाश के कार्यकाल की रांची से प्रकाशित होनेवाले अखबारों की कटिंग ही देख लीजिये। तो ऐसे में आप सत्ता को क्या उखाड़ फेकेंगे, सत्ता ही आपको उखाड़ फेक देगी। हुआ भी यही। 11 अप्रैल को हेमन्त सरकार के खिलाफ इनका किया गया आंदोलन टायं टायं फिस्स हो गया।

अब हुआ जो हुआ। अब नई जिम्मेवारी बाबूलाल मरांडी को मिली है। अब वे पार्टी को कैसे मजबूत करते हैं। अपने कार्यकर्ताओं को कितना सम्मान दिलाते हैं। भाजपा का विकास उसी पर निर्भर करेगा। पूर्व में जो गलतियां हुई। उसे दुहरायेंगे तो दिक्कत में पड़ेंगे, क्योंकि कार्यकर्ता सम्मान का भूखा होता है, पैसों का नहीं, ये समझना पड़ेगा। अगर कोई नाराज है, तो उसकी नाराजगी के कारण को ढूंढ, उस नाराजगी पर अंकुश लगाना होगा। ये नहीं की दीपक प्रकाश की तरह अंह में डूबकर वो करना होगा, जो उनकी तिकड़ी किया करती थी।

एक बात अच्छा लगा कि बाबूलाल मरांडी को जैसे ही अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी मिली। उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्मान देते हुए टिव्ट किया। अपने ट्विट में पार्टी के कार्यकर्ताओं को पार्टी की रीढ़ करार दिया। सबसे पहले बाबूलाल मरांडी का आज का टिव्ट देखिये – “विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा द्वारा आज मुझे भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रुप में जो अहम जिम्मेवारी दी गई है। उस जिम्मेवारी के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, संगठन मंत्री बी एल संतोष, प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी समेत पार्टी के सभी वरीय नेताओं का कोटि-कोटि आभार।

मां भारती की सेवा और झारखण्ड का संपूर्ण विकास मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। आगे के राजनीतिक सफर में भाजपा झारखण्ड के सभी सम्मानित नेता गण, जन प्रतिनिधि और विशेषकर पार्टी की रीढ़ कार्यकर्ताओं के साथ कदम से कदम मिलाकर आनेवाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के हाथों को और मजबूत करने का संकल्प है। भारत माता की जय, वंदे मातरम्, जय हिन्द, जय झारखण्ड।”

अति संघरषण जौं कर कोई। अनल प्रगट चंदन ते होई।।

अति संघरषण जौं कर कोई। अनल प्रगट चंदन ते होई।। यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड से ली गई है। जिसका अर्थ है – यदि कोई चन्दन की लकड़ी को बहुत अधिक रगड़े, तो उससे भी अग्नि प्रकट हो जायेगी। बाबूलाल मरांडी को प्रदेश भाजपा ने अपने विधायक दल का नेता चुना। बाबूलाल मरांडी को विरोधी दल का नेता बना देना चाहिए था। पर साढ़े तीन साल हो गये। अभी भी उन्हें विरोधी दल का नेता नहीं बनाया गया।

इसके कारण कई प्रमुख आयोग के अध्यक्ष व सदस्य नहीं बनाये गये, क्योंकि इसमें नेता विरोधी दल की भी प्रमुख भूमिका होती है। हमारे विचार से होना तो यह चाहिये था कि इस मामले को इतना अधिक नहीं लटकाना चाहिए था और इसे जल्द सुलझा लेना चाहिए था, पर पता नहीं किस सलाहकार ने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को ऐसी सलाह दी कि ये मामला अनसुलझा ही रहा।

जैसे-जैसे समय बीतता गया। यह मामला पेचीदा हो गया। जो लड़ाई राजनीतिक थी, वो देखते-देखते व्यक्तिगत हो गई। जो होना नहीं चाहिए। राजनीति में कौन कब ताकतवर बन जायेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। क्रिकेट और राजनीति की यही खासियत है। इसे सभी को समझना होगा। आज बाबूलाल मरांडी नेता विरोधी दल होते तो आज पार्टी उन्हें प्रदेश का कमान तो नहीं ही सौंपती।

आज बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष का भार दे दिया गया। निश्चित है कि बाबूलाल मरांडी की ताकत भाजपा में बढ़ी और इस ताकत को बढ़ाने में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के सलाहकारों की भी प्रमुख भूमिका रही। इसे ना भी नहीं कहा जा सकता। बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं। भाजपा के पुराने नेता रहे हैं।

ये अलग बात है कि बीच में उन्होंने झारखण्ड विकास मोर्चा जैसी पार्टी का गठन किया और उस पार्टी ने भी अपनी ताकत थोड़ा ही मगर दिखाई। पिछले लोकसभा चुनाव में तो महागठबंधन की ओर से इस पार्टी को दो सीटें भी चुनाव लड़ने के लिए दी गई थी। ये अलग बात है कि 2019 विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी और हेमन्त सोरेन के रास्ते अलग-अलग हो गये। जिसका खामियाजा बाबूलाल मरांडी को यह भुगतना पड़ा कि वे नेता विरोधी दल बनते-बनते रह गये। हेमन्त सोरेन का कोपभाजन उन्हें बनना पड़ा। जिसका जिक्र हमनें पूर्व में भी किया है।

2024 में आदिवासियों का बड़ा नेता कौन?

अब चूंकि सत्ता में हेमन्त सोरेन हैं और विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और उसके प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी। दोनों आदिवासी। अब इन दो आदिवासियों में आदिवासियों का बड़ा नेता कौन होगा? इसकी परीक्षा जल्द ही लोकसभा चुनाव के दौरान हो जायेगी। जिसकी झोली में सर्वाधिक लोकसभा की सीटें होंगी। वो आदिवासियों का सबसे बड़ा नेता होगा। अब चूंकि भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर, एक बहुत बड़ी चुनौती झामुमो के सामने पेश कर दी है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इस चुनौती को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन कैसे लेते हैं, फिलहाल सभी का ध्यान उसी ओर हैं।

सूत्र ये भी बता रहे है कि बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर केन्द्र ने एक नया गेम खेला है। उधर भ्रष्टाचार मामले पर केन्द्र की भृकुटि वर्तमान हेमन्त सरकार पर तनी हुई है। केन्द्र की भाजपा महाराष्ट्र मॉडल भी अपना सकती है। इधर बाबूलाल मरांडी पिछले कई दिनों से हेमन्त सरकार पर विभिन्न सोशल साइटों के माध्यम से हमलावर रहे हैं। अब निश्चित है कि इनका हमला और तेज होगा। भाजपा कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का नया संचार होगा।

ऐसे में वर्तमान राजनीतिक गतिविधियों से निबटने के लिए हेमन्त सोरेन अपने तरकस में कौन-कौन से तीर रखे हैं और उसका कब उपयोग करते हैं। सभी देखना चाहेंगे। वैसे दोनों राज्य के पुराने आदिवासी धुरंधरों का झारखण्ड की नई राजनीति में स्वागत। आशा ही नहीं, विश्वास की दोनों झारखण्ड की बेहतरी के लिए अच्छा ही करेंगे।