अद्वितीय तत्वज्ञानी जगदगुरु आदि शंकराचार्य और सुप्रसिद्ध मध्ययुगीन संत कबीर को योग की शिक्षा महावतार बाबा जी ने ही दी थी – स्वामी सदानन्द
संन्यास आश्रम के पुनः संगठक एवं अद्वितीय तत्वज्ञानी जगदगुरु आदि शंकराचार्य और सुप्रसिद्ध मध्ययुगीन संत कबीर को योग की शिक्षा महावतार बाबा जी ने ही दी थी। इस बात की जानकारी आज योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग में सम्मिलित योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी सदानन्द ने कही। चूंकि प्रत्येक वर्ष 25 जुलाई को संपूर्ण विश्व में योगदा संन्यासियों और योगदा भक्तों का समूह श्री श्री महावतार बाबाजी स्मृति दिवस मनाता है, इसलिए आज का सत्संग महावतार बाबाजी पर ही केन्द्रित था।
स्वामी सदानन्द ने महावतार बाबाजी के बारे में एक से एक बात सुनाई, जिसे सुनकर योगदा भक्तों का समूह आनन्द के भक्ति सागर में डूबकी लगाकर स्वयं को धन्य-धन्य करता रहा। स्वामी सदानन्द ने कहा कि महावतार बाबाजी को प्रेमावतार कहा जाता है। उन्हें मृत्युंजय भी कहा जाता है, क्योंकि वे सहस्राब्दियों से हमारे बीच में भौतिक अवस्था में मौजूद है। उन्हें आज भी कई लोग महामुनि बाबाजी महाराज, महायोगी, त्रयम्बक बाबा या शिवबाबा के नाम से पुकारते हैं।
स्वामी सदानन्द ने कहा कि दरअसल महावतार बाबाजी ने अपना शरीर प्रत्येक मनुष्य को आध्यात्मिक विकास के पथ पर ले जाने के लिए ही धारण किया है। महावतार बाबाजी सहस्राब्दियों से हमारे बीच मौजूद है, पर उन्हें देखकर उनकी आयु का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। जिन्होंने भी उन्हें देखा, वे युवा ही दीखे, उनकी उम्र 25 के लगभग ही दिखी। ये आज भी लाहिड़ी महाशय की तरह दीखते हैं। ऐसे भी जो अलौकिक पुरुष होते हैं, उनके शरीर पर आयु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
उन्होंने कहा कि महावतार बाबाजी को कोई देख नहीं सकता। उन्हें वही देख सकता है, जिनको वे दर्शन देना चाहते हैं। जब बाबाजी की ईच्छा होती हैं, वे ऐसे लोगों को दर्शन दे ही देते हैं, जिनका ईश्वरीय प्रेम बहुत ही गहरा होता है। स्वामी सदानन्द जी ने बताया कि वे अपने ज्ञान के आधार पर यही कह सकते हैं कि महावतार बाबाजी से लाहिड़ी महाशय, स्वामी युक्तेश्वर गिरि, परमहंस योगानन्द जी के बाद हाल ही में 60 वर्ष पहले दयामाता जी जब भारत आई तो वो 1963-64 की यात्रा में महावतार बाबाजी से मिली।
उन्होंने योगदा भक्तों को कहा कि हमेशा याद रखें कि अलौकिक पुरुष किसी महान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही शरीर धारण करते हैं और जब तक वो महान उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता, वो शरीर धारण किये रहते हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से महावतार बाबाजी अपने शिष्य लाहिड़ी महाशय को प्रेम किया करते थे। ठीक उसी प्रकार अपने परमहंस योगानन्दजी भी अपने शिष्यों के प्रेम किया करते हैं और अपने शिष्यों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए निरन्तर प्रयास करते हैं।
स्वामी सदानन्द ने कहा कि महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को कहा था कि उन्हें संसारिक रहकर ही आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करनी हैं और लोगों को बताना है कि संसारिक रहकर भी आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मुक्ति का मार्ग आंतरिक वैराग्य है न कि बाहरी वैराग्य। इसलिए मैं तुम्हें भगवान कृष्ण के क्रिया योग को प्रदान कर रहा हूं। इसके द्वारा तुम अपनी आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करो।
स्वामी सदानन्द ने इसी बीच महावतार बाबाजी और लाहिड़ी महाशय के बीच घटी एक रोचक घटना को योगदा भक्तों के बीच रखा। जब लाहिड़ी महाशय दानापुर में मिलिटरी इंजिनियरिंग विभाग में अपनी सेवा दे रखे थे और अचानक उन्हें रानीखेत ट्रांसफर कर दिया गया था। लाहिड़ी महाशय को लगा था कि रानीखेत उनका ट्रांसफर सरकारी कामों के लिए हुआ है, पर जब वे एक दिन रानीखेत के पहाड़ों पर टहल रहे थे तो अचानक उन्हें एक आवाज सुनाई दी।
उन्हें लगा कि कोई पुकार रहा है। वे आ रही उस आवाज की ओर चल पड़े। पहाड़ पर अंधेरा छा रहा था। अचानक एक युवा लाहिड़ी महाशय को दिखाई पड़ा जो दोनों बांहे फैलाये उनका स्वागत करने के लिए खड़ा था। दरअसल वह युवा और कोई नहीं बल्कि महावतार बाबाजी ही थे। जो उनके पूर्वजन्म में गुरु थे। महावतार बाबाजी को सब याद था, पर पुनर्जन्म ले लेने के कारण लाहिड़ी महाशय को पूर्वजन्म से संबंधित सारी यादें विस्मृत हो चुकी थी।
परंतु महावतार बाबाजी के दिव्य प्रभाव से उन्हें पूर्व जन्म की सारी बातें याद आने लगी। लाहिड़ी महाशय को यह बात पता चलते देर नहीं लगी कि महावतार बाबाजी उनके पूर्व जन्म के गुरु थे। जब कई दिन लाहिड़ी महाशय के महावतार बाबाजी के साथ रहते हुए बीत गये तो लाहिड़ी महाशय को अपने ड्यूटी पर लौटने का बोध हुआ। उन्होंने अपने गुरुदेव महावतार बाबाजी से लौटने की अनुमति चाही। महावतार बाबाजी ने स्वयं लाहिड़ी महाशय को बता दिया कि तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हें यहां ड्यूटी के लिए बुलाया गया है। वो तो मैं तुम्हें यहां बुलाया हूं।
इस बात का ऐहसास लाहिड़ी महाशय को तब हुआ, जब वे ड्यूटी पर लौटे तो उनके एक अधिकारी ने कहा कि वे दानापुर पुनः लौट जाये, क्योंकि उनका स्थानान्तरण रानीखेत गलती से हो गया। यह सुनते ही लाहिड़ी महाशय को पता चल गया कि महावतार बाबाजी ने जो कहा था, वो सही है, ऐसे भी महावतार बाबाजी की कही हुई बात गलत कैसे हो सकती हैं? वे त्रिकालदर्शी जो हैं।
इसी प्रकार स्वामी सदानन्द ने महावतार बाबाजी के साथ युक्तेश्वर गिरि जी के साथ घटी घटना, युक्तेश्वर जी का महावतार बाबाजी से नाराज होना, महावतार बाबाजी का युक्तेश्वर जी को ज्ञान देना, स्वामी केवलानन्द जी द्वारा परमहंस योगानन्द जी को बताई दिव्य घटनाएं व परमहंस योगानन्द जी तथा महावतार बाबाजी के प्रसंगों की भी उन्होंने योगदा भक्तों के बीच रखा।
स्वामी सदानन्द जी ने यह भी बताया कि कैसे दयामाता, जब भारत दौरे पर आई थी, तब महावतार बाबाजी से मिलने के लिए वो रानीखेत जाने को लालायित थी, पर जैसे ही उन्हें यह पता चला कि सरकार ने वहां विदेशियों को जाने पर रोक लगा दी हैं, तो वे व्याकुल और व्यथित हो गई थी। बाद में जब उन्होंने अपने ध्यान द्वारा ईश्वर को साधा तो कैसे उनकी यात्रा सफल होती चली गई। स्वयं उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी यात्रा को अनुमति ही नहीं दी, बल्कि उन्हें भोज पर भी आमंत्रित किया। सरकारी अतिथि बनी और फिर बाद में द्रोणगिरि जाकर महावतार बाबाजी से भी मिली।
स्वामी सदानन्द जी ने यह भी कहा कि कल्पना करिये, आज का रानीखेत और द्रोणगिरि पर्वत और 60 साल पहले के समय का वो इलाका, कितना खतरनाक था, फिर भी दयामाता जी वहां जाने में सफल हुई और महावतारलबाबाजी से सम्पर्क साध ही लिया। स्वामी सदानन्द जी ने कहा कि प्रत्येक योगदा भक्तों को अपने गुरु पर विश्वास करना सीखना चाहिए। गुरु की आज्ञा का हर हाल में पालन करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर तक ले जाने में, आपकी आध्यात्मिक उन्नति में एकमात्र विकल्प गुरु ही हैं।