अपनी बात

कार्यकर्ताओं में राष्ट्रीय नेताओं के खिलाफ भीतर ही भीतर सुलग रहा गहरा आक्रोश, स्थिति नहीं संभाली गई तो लेने के देने पड़ सकते हैं लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भाजपा को

भाजपा कार्यकर्ताओं में दिन-प्रतिदिन अपने केन्द्र व राज्यस्तरीय नेताओं के खिलाफ भीतर ही भीतर गहरा आक्रोश अब स्पष्ट रुप से दिखने लगा है। सच्चाई यह है कि भाजपा के केन्द्र व राज्यस्तरीय नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं के अंदर उपज रहे इस गहरे आक्रोश को शांत करने के उपाय नहीं किये, तो आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भाजपा को लेने के देने पड़ सकते हैं।

राजनीतिक पंडित बता रहे है कि अभी भाजपा की स्थिति अभी ठीक 2019 के नवम्बर व दिसम्बर वाली हो गई हैं, जब भाजपा के केन्द्रीय व राज्यस्तरीय नेताओं का समूह भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर उपजी उस वक्त के आक्रोश को सामान्य रुप में लिया था और इसका खामियाजा यह उठाना पड़ा कि भाजपा से झारखण्ड की सत्ता छीन गई।

मतलब एक लोकोक्ति है न, पंडित जी अपने तो गये ही, जजमान को भी साथ लेते चले गये, ठीक 2019 के नवम्बर-दिसम्बर विधानसभा चुनाव में में भाजपा शासनकाल के दौरान यही लोकोक्ति चरितार्थ हो गई, जब रघुवर दास खुद तो हारे ही, उनके कई चहेते भी विधानसभा चुनाव हारे और सत्ता उनके हाथ से निकल गई।

याद करिये, जिस सरयू राय को भाजपा का टिकट नहीं दिलाने के लिए रघुवर दास ने एड़ी-चोटी एक कर दिया था, वही सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्व से रघुवर दास को ही धूल चटा दिया था। कहनेवाले तो ये भी कहते हैं कि अगर रघुवर दास ने सरयू राय के प्रति वैमनस्यता नहीं दिखाई होती तो हो सकता था कि सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव हार जाते और रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी से सम्मानपूर्वक जीत हासिल हो जाती, लेकिन रघुवर दास की जिद्द ने उनके (रघुवर दास के) गले में हार का माला पहना दिया और सरयू राय जमशेदपुर पूर्व की सीट जीतकर कद्दावर नेता बनकर उभर गये।

अगर आप विद्रोही24 के नियमित पाठक हैं तो आपको यह भी पता होगा कि विद्रोही24 ने उसी दिन ये बात डिक्लियर कर दिया था कि सरयू राय जमशेदपुर पूर्व से जीतेंगे, रघुवर दास की हार होगी। जब जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा ने एक नये प्रत्याशी की घोषणा कर, सरयू राय की उम्मीदवारी पर सदा के लिए ताला लगा दिया था।

ठीक आज भी स्थिति वही है। केन्द्र को लग रहा है कि रघुवर दास झारखण्ड में काफी लोकप्रिय हैं, इसलिए उन्हें फिर से केन्द्रीय नेतृत्व ने उपाध्यक्ष बना दिया। उनसे झारखण्ड को लेकर रायशुमारी भी की जा रही है। विधानसभा में विरोधी दल के नेता जयप्रकाश पटेल को बनाया जा रहा हैं। इसके लिए रांची से दिल्ली तक भाजपा को डूबानेवाले लोग सक्रिय भी है और आश्चर्य यह भी है कि रांची से दिल्ली तक के लोग भाजपा को डूबानेवाले लोगों के चक्कर में आ भी जा रहे हैं। जबकि ये वे लोग हैं जिनकी पकड़ भाजपा कार्यकर्ताओं में न के बराबर हैं।

कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने विद्रोही24 को बताया कि केन्द्र व राज्य के नेताओं को चाहिए कि सदन में भाजपा विरोधी दल का नेता उसे बनाये। जो अनुभवी हो, जो भाजपा के प्रति हमेशा से समर्पित रहा हो, जिसकी भाजपा व भाजपा के दिवंगत कालजयी नेताओं के प्रति निष्ठा रही हो। जिनका ज्यादातर समय कार्यकर्ताओं के बीच बीतता हो। जिनकी निष्ठा शुरु से लेकर अंत तक संघ के प्रति रही हो। जिनके परिवार का एक भी सदस्य किसी अन्य दल से संबंधित न हो। लेकिन यहां ठीक उलट हो रहा है। ऐसे व्यक्ति को दारोमदारी दी जा रही हैं, जिसके पास न तो अनुभव है, न भाजपा के प्रति उसकी निष्ठा ही रही है, उसे भाजपा में आये भी मात्र साढ़े तीन साल हुए हैं।

भाजपा कार्यकर्ताओं का ये भी कहना है कि भाजपा में भी अब जातीयता ने अपना घर तैयार कर लिया है। हर काम अब जातीयता के आधार पर तय हो रहे हैं। ऐसे में तो फिर भाजपा अन्य दलों की तरह हो गई, तो फिर अन्य दलों और भाजपा में अंतर क्या है। अगर कोई समर्पित कार्यकर्ता जो एक उपयुक्त पद के लिए सारी योग्यता रखता है, उसे सिर्फ इसलिए वो पद नहीं दिया जायेगा कि चूंकि वो जातीयता की गोटी में फिट नहीं बैठ रहा तो फिर ये संदेश तो गलत ही जायेगा, जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल भाजपा को ही भुगतना है।

क्रुद्ध भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि अभी सारे कार्यकर्ताओं का ध्यान इस पर हैं कि केन्द्र क्या निर्णय लेता हैं? अगर भाजपा को डूबोनेवाले नेताओं की बात मानी गई तो भाजपा कार्यकर्ता बंधुआ मजदूर नहीं हैं, वे भी अपने मनमुताबिक काम करने को स्वतंत्र है, ऐसे में पार्टी के बड़े नेता समझ लें कि भाजपा कार्यकर्ता भी यह कहने को आगे स्वतंत्र हैं कि – ये ले अपनी लकुटि कमरिया बहुत ही नाच नचायो, अरी भाजपा के नेताओं अब तेरे लिये काम न आगे करयो।