स्वर्णरेखा उत्थान समिति का प्रयास रंग लाया, अब इक्कीसो महादेव के दर्शनार्थ-पूजनार्थ जुटने लगी हैं स्वर्णरेखा तट पर श्रद्धालुओं की भीड़
आज शुद्ध श्रावण मास शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि है। विद्रोही24 की टीम आज पहुंची स्वर्णरेखा नदी के तट पर जहां विराजते हैं इक्कीसो महादेव। वहां विद्रोही24 की टीम ने देखा कि बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ इक्कीसो महादेव के दर्शनार्थ व पूजनार्थ जुट रही हैं। कोई सपत्नीक भगवान महादेव की आराधना कर रहा है, तो कोई मंडली में आकर भगवान भोलेनाथ को भक्तिगीतों से रिझाने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि स्वर्णरेखा नदी में जब से हरमू नदी में बहनेवाली गंदगी को बहाया जाने लगा है, तभी से यह स्वर्णरेखा का सुदर चेहरा पूरी तरह बिगड़ चुका है। गंदे नाले का रुप ले चुकी स्वर्णरेखा को अब पहचानना मुश्किल सा हो गया है। ज्ञातव्य है कि कभी इसी स्वर्णरेखा नदी में लोग स्नान-ध्यान कर इसी जल से भगवान को जलाभिषेक भी किया करते थे। पर आज गंदगी से बजबजाती स्वर्णरेखा के जल से इक्कीसो महादेव का जलाभिषेक तो दूर, इसके पास आप ज्यादा देर तक ठहर नहीं सकते।
स्वर्णरेखा उत्थान समिति से जुड़े सुधीर शर्मा नियमित रुप से यहां आकर सपत्नीक इक्कीसो महादेव को जलाभिषेक करना नहीं भूलते। वे स्वर्णरेखा नदी व इक्कीसो महादेव को बचाने के लिए निरन्तर प्रयास भी कर रहे हैं। जिसमें उनकी पत्नी भी विशेष रुप से रुचि ले रही हैं। खुशी की बात यह है कि सुधीर शर्मा के इस प्रयास में अब आस-पास के लोग भी रुचि रखने लगे हैं। जिससे यहां कुछ सुधार देखने को मिल रहा है।
अगर आप रांची आते हैं, अगर आपको पर्यटन में रुचि हैं अथवा धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तो आपको इस स्थान पर आना ही चाहिए, क्योंकि यह रांची का अति प्राचीन धरोहर है। जहां पत्थरों को काटकर शिवलिंग बनाये गये हैं, जिसकी संख्या 21 हैं, इसी कारण इस स्थान का नाम इक्कीसो महादेव पड़ गया है। रांची नगर निगम व हेमन्त सरकार को चाहिए कि इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए प्रयास करें, पर देखते हैं कि ये कब संभव हो पाता है?
कालांतराल व देखरेख नहीं होने के कारण इनमें से कई अब दिखाई नहीं पड़ते, पर कुछ तो आज भी विद्यमान हैं। जिनकी इनमें आस्था हैं, वे आज भी इन महादेवों को उपर जलाभिषेक-दुग्धाभिषेक करना नहीं भूलते। बताया जाता है कि नागवंशी राजाओं ने इन इक्कीसो महादेव का निर्माण किया था, जो आज भी दर्शनीय है। लोग बताते है कि जो पुराने लोग हैं, वे आज भी यहां आते हैं, अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं।