आध्यात्मिक उन्नति के लिए योगदा से जुड़े गुरुओं के बताये मार्ग पर चलना व ध्यान करने का निरन्तर प्रयास ही आपको शिखर पर ले जा सकता है – ब्रह्मचारी प्रह्लादानन्द
योगदा सत्संग मठ में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए ब्रह्मचारी प्रह्लादानन्द ने कहा कि आध्यात्मिक पथ पर निरन्तर आगे बढ़ने व शिखर पर पहुंचने के लिए कुछ ऐसे रास्ते हैं, जिन पर चलकर आप आध्यात्मिकता के आनन्द से खुद को सराबोर कर सकते हैं, पर उसके लिए आपको स्वयं प्रयास करने होंगे, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई रास्ते बताये गये हैं, जिस पर आपको दृढ़ता के साथ कदम बढ़ाना होगा।
उन्होंने कहा कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपको निरन्तर प्रयास करने होंगे। उसमें एकरुपता लानी होगी। वो प्रयास कभी भी रुकने नहीं चाहिए। प्रतिदिन का ध्यान जिसमें हर दिन एक दूसरे दिन की अपेक्षा बेहतरी का अनुभव हो, मतलब प्रत्येक दिन एक दूसरे दिन की अपेक्षा निरन्तर गहराई का अभ्यास जीवन में चलते रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब आप ध्यान की निरन्तर गहराई में जाते हैं, तो इसका मतलब ये कभी नहीं होता कि आप समस्याओं से मुक्त हो जायेंगे या आपके जीवन में कभी समस्याएं आयेंगी ही नहीं। समस्याओं के जीवन में आने या न आने का संबंध ध्यान से नहीं हैं, पर इतना जरुर है कि जब आप निरन्तर ध्यान करते हैं, तो आप उन समस्याओं पर आसानी से विजय प्राप्त कर लेते हैं।
प्रह्लादानन्द ने साधना में अध्ययन के महत्व को भी बताया। उन्होंने कहा कि जब आप योगदा से जुड़े हैं। तब आपको योगदा से जुड़े महान गुरुओं द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन करते रहना चाहिए। ये आपके ध्यान, साधना व आध्यात्मिक पथ को और उज्जवल बनाने में सहायक सिद्ध होता है। उन्होंने कहा कि गुरुजी की लिखी पुस्तकों का अध्ययन हमारे मन-मस्तिष्क पर जादुई असर डालती है। उन्होंने कहा कि अच्छा रहेगा कि आप कम से कम 15-30 मिनट का समय हरदम गुरुजी की पुस्तकों को पढ़ने में लगाएं।
उन्होंने कहा कि आपके जीवन में किसी के भी प्रति सुंदर व्यवहार का होना भी आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए जरुरी है। उन्होंने कहा कि माया हमें अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से हटाने के लिए नाना प्रकार के तिकड़म लगाती है, पर उन तिकड़मों पर विराम लगाना आपके हाथों में हैं। आप अपने लक्ष्य पर ध्यान दें, प्रयास करना कभी न छोड़े, सुंदर व्यवहार और आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन निरन्तर जारी रखें, निरन्तर ध्यान करते रहे, फिर देखें कि आप कहां पहुंच रहे हैं?