राजनीति

थेथरोलॉजी में पीएचडी करने के लिए रघुवर टीम करें ज्वाइन

थेथरोलॉजी इन पीएचडी की पढ़ाई करा-करा कर कांग्रेस आज देश में सिमट गई हैं, हमने भी थेथरोलॉजी की पढ़ाई शुरु कर दी है, भगवान बचाएं – ये स्टेटमेंट हैं, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रेम कटारुका का, जिसका समर्थन वरिष्ठ पत्रकार रजत कुमार गुप्ता ने यह कहकर किया कि आपने ईमानदारी से स्वीकार किया, इसके लिए बधाई। वरिष्ठ प्राध्यापक सह स्वतंत्र पत्रकार प्रकाश सहाय ने सहमति प्रदान करते हुए लिखा कि ऐसी ईमानदारी और सच्चाई सलामत रहे। वरिष्ठ समाजसेवी प्रणय दत्ता और ओम प्रकाश पाठक ने भी सहमति प्रदान करते हुए चिंता व्यक्त की और कहा कि समय बदलेगा। प्रेम कटारुका ने रघुवर सरकार पर तंज कसते हुए यह भी पोस्ट किया है कि मिट्टी का मटका और परिवार की कीमत सिर्फ बनानेवालों को ही पता होता है, तोड़नेवालों की नहीं।

सरयू राय ने कसा तंज, बोलते तो कोयल और कौवे भी हैं

इधर सीएम रघुवर दास के क्रियाकलापों से क्षुब्ध संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने फेसबुक पर लिखा है कि तथ्य जितना महत्वपूर्ण हैं, उतना ही या उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि तथ्य को कौन कह रहा है? बोलते तो कोयल और कौआ दोनों ही हैं, पर एक की बोली को कूक और दूसरे को कांव-कांव कहा जाता है, इसी तरह तथ्य कथन भरोसेमंद का हो तो जंचता, रुचता है, वर्ना लफ्फजी गिना जाने लगता है। उन्होंने फेसबुक पर साफ लिखा है कि जिस विषय की जानकारी न हो, उस पर मुंह खोलना फजीहत/जगहंसाई को आमंत्रण देना होता है। उन्होंने एक बयान भी दिया कि जिस रास्ते मधु कोड़ा चले, उस रास्ते में खनन विभाग नहीं चले, हम आपको बता दें कि ये खनन विभाग मुख्यमंत्री रघुवर दास के ही पास है। जिस पर भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोप है।

नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन का बयान – पूरे राज्य को मजाक बना दिया सीएम रघुवर दास ने

इधर देखिये, कल की ही बात है, देखिये सीएम रघुवर दास का कमाल, सरकार उनकी, सरकार के मुखिया वे, विपक्ष तो विरोध के लिए ही जाना जाता है, पर ये क्या हुआ?  इस बार तो उनके सत्ता पक्ष के लोग ही उनके साथ नहीं थे, इतनी शर्मनाक स्थिति, आज तक किसी मुख्यमंत्री की झारखण्ड विधानसभा में नहीं हुई थी, यानी पहली बार, सीएम और शिक्षा मंत्री को छोड़कर सभी विधायक स्कूल फीसवाले बिल पर विपक्ष के साथ हो लिये, पर मुख्यमंत्री रघुवर दास को शर्म ही नहीं। शर्म आयेगी भी कहां से। दरअसल विपक्ष चाहता था, स्कूल कमेटी में विधायक शामिल हो, फीस अधिकतम 300 रुपये ही बढ़े, और इस प्रकार स्कूल बिल विधानसभा से पास होने के बदले प्रवर समिति को भेज दिया गया। जरा देखिये सीएम रघुवर दास की हठधर्मिता। स्पीकर दिनेश उरांव ने सत्ता पक्ष को चार मौके दिये, पर सीएम रघुवर दास और शिक्षा मंत्री नीरा यादव को छोड़कर सभी विधायक विपक्ष के साथ हो गये। ये पहला मौका था, कि सत्ता पक्ष का मुख्यमंत्री, अपने ही विधायकों का समर्थन जुटाने में असहाय था। सूत्र बताते है कि अगर मनी बिल होता तो सरकार खतरे में आ जाती।

इधर मुख्यमंत्री रघुवर दास, जिन्हें बात करने की तमीज नहीं, उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि उसने सदन को मजाक बना दिया हैं, तभी नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने सीएम रघुवर दास को उन्हीं के शब्दों में जवाब दिया कि सीएम रघुवर दास ने तो पूरे राज्य को ही मजाक बना दिया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सरयू राय का यह कहना की बोलते तो कौवा और कोयल भी हैं, एक की बोल को कूक और दूसरे को कांव-कांव कहते हैं, सटीक हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास को अपनी बोली में मिठास लानी चाहिये, व्यवहारिकता लानी चाहिए, जिस प्रकार के बोल उनके सत्ता में आने के बाद जनता और सदन में आ रहे हैं, ये उन्हीं के लिए एक बहुत बड़ा संकट खड़ा कर रहा हैं। कोई संतुष्ट नहीं हैं?  अच्छे और सच्चे राजनीतिज्ञों और पत्रकारों का समूह उनसे किनारा कर चुका हैं, भाजपा कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों का समूह और अब तो मंत्री से लेकर विधायक तक, जैसा कि विधानसभा में कल दीखा, नाराजगी का प्रकटीकरण, अगर सीएम तेज होंगे तो समझेंगे, नहीं तो भुगतेंगे।

सीएम रघुवर ने विधानसभा को भी गढ़वा का मैदान समझ लिया

सदन को शानदार और बेहतर ढंग से चलाने की जिम्मेदारी सबकी होती हैं, पर उसमें मुख्य भूमिका मुख्यमंत्री की होती है। विधानसभा गढव़ा का मैदान नहीं है, जहां आपने ब्राह्मणों के खिलाफ अनाप-शनाप बक दिया और फिर बैठ गये। ये विधानसभा हैं, इसकी अपनी गरिमा है, अगर इसकी गरिमा नहीं संभाल पायें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भी नहीं बचा पायेंगे। संघ के लोगों को इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि भाजपा, संघ का ही राजनीतिक संगठन हैं, जो पूरे राज्य में रघुवर दास को लेकर मैसेज जा रहा हैं, वह संघ को भी आनेवाले समय में कटघरे में रख सकता हैं, कि आपने उस वक्त ऐसे वक्त पर एक्शन क्यों नहीं लिया।