राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने पर सख्त सजा होने के बावजूद रांची में लोग राष्ट्रीय ध्वज का खूलेआम अपमान कर रहे, पर प्रशासन ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं करती
राजधानी रांची में आज भी कई घरों व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में फटे पुराने राष्ट्रीय ध्वज देखे जा रहे हैं, पर आश्चर्य है कि जिन पर राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा का दारोमदार हैं, वे भी इसकी जिम्मेवारी नहीं उठा रहे हैं और न ही उन्हें कानून का भय दिखा रहे हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करनेवालों का मनोबल बढ़ता जा रहा हैं। वे आज भी अपने घरों-व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर फटे-पुराने राष्ट्रीय ध्वज फहराकर राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने में कोई कसर नहीं उठा रखे हैं।
आश्चर्य है कि अपने देश में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने पर सख्त सजा का प्रावधान है। लेकिन इन राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करनेवाले लोगों पर इसका कोई असर नहीं दिखता। आश्चर्य तो विद्रोही24 को इस बात को लेकर हो रहा हैं कि जिनके घरों व प्रतिष्ठानों में ऐसे फटे-पुराने राष्ट्रीय ध्वज फहरते हुए दिख रहे हैं, उनलोगों से या उनके आस-पास पड़ोस के लोगों से ऐसा न करने का अनुरोध विद्रोही24 ने किया तो लोगों ने विद्रोही24 को ही अपना काम करने का धौंस दिखा दिया।
आश्चर्य इस बात की भी हैं कि विद्रोही24 प्रतिदिन उन इलाकों से पुलिस की पेट्रोलिंग जीप को आते-जाते दिख जाता है। लेकिन इन पेट्रोलिंग जीप में बैठनेवाले पुलिसकर्मियों को उन घरों व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में इन फटे-पुराने राष्ट्रीय ध्वजों पर नजर नहीं पड़ती और नजर पड़ती भी हैं तो चूंकि इससे उन्हें कोई फायदा होता नहीं दिखता, इसलिए वे उस पर कुछ भी करने या उन्हें रोकने की भी जहमत नहीं उठाते।
आश्चर्य इस बात की भी है कि जो कानून के जानकार हैं या जो कानून का पालन करानेवाले लोग हैं। उन्हें भी यह पता है कि भारतीय ध्वज आचार संहिता 2002 व राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 के तहत कार्रवाई करने का प्रावधान है। जिसमें तीन वर्ष की सजा व जुर्माने का प्रावधान है या फिर दोनों ही हो सकते हैं। उसके बावजूद रांची में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान बेरोक-टोक जारी है, कोई इसे रोकनेवाला नहीं हैं और न कोई बोलनेवाला।
आश्चर्य इस बात की भी है कि जब भी कभी विद्रोही 24 ने ऐसा करनेवालों से ऐसा न करने की अपील की। उलटे इनमें से कुछ लोगों ने यह कहा कि हम ऐसा करेंगे, तुम्हारा क्या जाता है। झंडा पुराना हो या फटा, कम से कम लगा तो हैं। अब जहां ऐसी सोच लोगों में जन्म ले चुकी हो, उस सोच पर क्या कहा जाये। अब देखना है कि ऐसे लोगों के साथ स्थानीय पुलिस प्रशासन या जिला प्रशासन क्या कार्रवाई करता है।