अपनी बात

अगर आप अखबारों को पढ़कर छठव्रत संपन्न करते हैं तो ऐसे में आपका व्रत कभी सफल नहीं होगा, इस बार ‘हिन्दुस्तान’ और ‘दैनिक भास्कर’ ने छठव्रतियों को भरमाया

जो भी छठव्रती या उनके परिवार रांची के अखबारों को पढ़कर या अनुसरण कर, छठव्रत करेगा या भगवान भास्कर को अर्घ्य देगा, उसका व्रत कभी सफल नहीं होगा, यह ब्रह्मवाक्य है, इसे गिरह बांध लीजिये। रांची के अखबार हमेशा से छठव्रत को लेकर भ्रांतियां फैलाते रहे हैं और उस पर हमेशा से विद्रोही24 अंगूलियां उठाता रहा हैं, पर ये अखबारवाले ऐसे है कि सुधरने का नाम नहीं लेते, इन्होंने लगता है कि एक तरह से प्रण कर रखा है कि वे छठव्रतियों और उनके परिवारों का धर्म के नाम पर उनके व्रत को असफल करने के लिए अपना दिमाग लगाते रहेंगे या प्रतिबद्ध रहेंगे।

मैं तो साफ कहता हूं कि जब धर्म, रीति-रिवाज, सभ्यता व संस्कृति का ज्ञान न हो, तो ऐसे में रांची के अखबारों के संपादकों को इस मुद्दे पर महामंडलेश्वर बनने की क्या जरुरत? जरा देखिये न दैनिक भास्कर ने क्या किया है? दैनिक भास्कर ने अपने प्रथम पृष्ठ पर आज के दिन यानी रविवार को अर्घ्य का समय शाम पांच बजकर तीन मिनट दिया है। यही हाल हिन्दुस्तान अखबार का भी है। उसने भी अपने अखबार में अर्घ्य का मुहूर्त पांच बजकर तीन मिनट दिया है। जबकि सच्चाई यह है कि यह समय सूर्य के अस्त होने का है।

जब सूर्य पूर्णतः अस्त हो जायेंगे तो छठव्रती या उनके परिवार किसे अर्घ्य देंगे? यह मेरा पहला सवाल है। क्या इसका जवाब दैनिक भास्कर या हिन्दुस्तान के संपादक दे पायेंगे और जब इनके अखबारों को पढ़कर कोई छठव्रती उसी समय अर्घ्य देना प्रारंभ करेंगे तो इसके पाप का भागी कौन बनेगा? छठव्रती या उनके परिवार या वे अखबार जो गलत समाचार प्रकाशित कर, छठव्रतियों और उनके परिवार के मन-मस्तिष्क को भ्रमित कर, उनके धार्मिक विश्वास का मजाक उड़ा दिया।

अब दूसरी बात, रांची के सभी अखबार छठ व्रत का खरना जैसे ही समाप्त होता है। लिखते है कि खरना समाप्त और 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरु। इस झूठी खबर को फैलाने में रांची के सारे अखबार शामिल हैं। क्या छठव्रती या उनके परिवार घंटा-मिनट जोड़ के व्रत को सम्पन्न करते हैं। अगर कोई छठव्रती रात के नौ बजे खरना संपन्न किया और अखबार वाले खुद ही लिख रहे हैं कि जिस दिन भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य दिया जायेगा उसका समय छः बजकर छः मिनट है तो अखबारवाले खुद ही समय को जोड़-घटाव कर बताये कि क्या जोड़ने पर छत्तीस घंटे होते हैं और अगर नहीं होते तो फिर ये बार-बार छत्तीस घंटे का निर्जला उपवास शुरु होने का बावेला क्यों?

छठव्रत में तो खरना और उसके बाद षष्ठी तिथि को पहला अर्घ्य और उसके दूसरे दिन दूसरा अर्घ्य की बात होती है, घंटा-मिनट से तो उसका कोई लेना-देना ही नहीं। इधर दूसरे दिन भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य पड़ा, छठव्रती पारण करती है और प्रसाद बंटना घाट पर ही शुरु हो जाता है। ऐसे में छत्तीस घंटे का ढोंग क्यों? क्या कोई छठव्रती या कोई विद्वान इनसे कहने गया है क्या कि छठव्रती छत्तीस घंटे का उपवास रखते हैं।

और अंत मे दैनिक भास्कर की बुद्धि पर हमें तरस आता है। जब संस्कृत आपको नहीं आती तो क्या जरुरत है, संस्कृत में अपना पागलपन दिखाने की। आपने क्या लिख दिया- विजयी भवः। जबकि सच्चाई है कि संस्कृत में किसी को भी विजयी होने का आशीर्वाद देना है तो वहां बोला जाता है – विजयी भव। पर संस्कृत का विद्वान बनने के चक्कर में ये अखबार वाले हर जगह विसर्ग का प्रयोग कर देते हैं, चाहे वहां विसर्ग का प्रयोग होते हो या नहीं होते हो।

आखिर ये अखबारवाले कब सुधरेंगे, ये कब हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में अपना बौद्धिक हस्तक्षेप करना बंद करेंगे। इसलिए सभी से मेरा विनम्र अनुरोध है कि इन अखबारों के चक्कर में महापर्व छठ को प्रभावित न होने दें। अखबारों के सम्पादकों और आपके पास इनके लोग मिले तो साफ कहें कि वे आप पर तरस खायें और छठपर्व पर अल-बल लिखना और सभी को भरमाना बंद करें।