धर्म

जीवन में सामंजस्यता लाने के लिए ध्यान जरुरी, नये वर्ष पर संकल्प करें कि हम अपने जीवन में प्रेम के साथ सामंजस्यता को लाकर एक दूसरे के प्रति खुशियां बिखेरेंगेः पवित्रानन्द

योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग में योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी पवित्रानन्द ने कहा कि सामंजस्यपूर्ण जीवन ही रिश्तों को प्रगाढ़ बनाते हैं। हमारे जीवन में आनन्द लाते हैं। सकारात्मक ऊर्जा से हमें ओत-प्रोत करते हैं और यह सामंजस्यपूर्ण जीवन बिना ध्यान और बिना ईश्वरीय कृपा या गुरुकृपा के संभव नहीं हैं।

उन्होंने योगदा भक्तों से कहा कि वर्ष का अंतिम दिन और वर्ष का पहला दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्ष के अंतिम दिन व्यक्ति क्या खोया और क्या पाया? इसका विश्लेषण करता है और वर्ष के प्रथम दिन क्या करना है, इसका संकल्प लेकर आगे बढ़ता है। इसलिए आप सभी के लिए आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि अपने संकल्प को मजबूत करिये और सामंजस्य पूर्ण जीवन जीने की ओर कदम बढाएं। उन्होंने इस दौरान कई कहानियां कही और उन कहानियों के द्वारा जीवन में सामंजस्य कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसका बहुत ही सुंदर ढंग से विश्लेषण किया और समस्त योगदा भक्तों को नये वर्ष की बधाई भी दी।

उन्होंने प्रारम्भ में ही एक दम्पति की कहानी सुनाई। जहां एक महिला किसी खास कंपनी की सामग्री लेने को ज्यादा जोर देती थी। वो हर सामान चाहे वो कंपनी बनाये अथवा न बनाये अथवा उसमें उस कंपनी की दक्षता हो या न हो। लेकिन अपने पति से उसी कंपनी के वस्तु का डिमांड करती। पति बेचारा, पत्नी की इस डिमांड से बहुत ही कभी-कभी नाराज हो जाया करता।

परन्तु क्या करें, पत्नी को नाराज नहीं कर सकता था, अंततः उसकी बात मान लेता। एक दिन उसने पता लगाने की कोशिश की कि आखिर क्या कारण है कि उसकी पत्नी एक ही कंपनी का नाम लेकर, सिर्फ उसी कंपनी का सामान लाने की बात क्यों करती है। पति को पता चला कि कभी उसकी पत्नी के जीवन में कठिनाइयों का दौर आया था। उस कठिनाई के दौर में उस कंपनी ने उसकी और उसके परिवार की मदद की थी।

जिसको लेकर उस कंपनी के प्रति उसकी पत्नी को गहरा अनुराग हो गया था। इसलिये वो बार-बार उसी कंपनी की सामान का डिमांड करती। शायद, उसे लगता था कि उक्त कंपनी के लोग अच्छे व मददगार हैं। जरुरतमंदों को समय आने पर मदद करते हैं। कंपनी की उस अच्छाई के प्रति उक्त महिला श्रद्धा के तौर पर उसके सामान को प्रश्रय देती थी। पति को यह बात पता चलने पर पत्नी के प्रति उसका अनुराग और बढ़ गया।

स्वामी पवित्रानन्द ने कहा कि गुरुजी हमेशा आपके पास है। वो हमेशा आपकी मदद करने को तैयार है। यह आप पर निर्भर करता है कि गुरुजी से मदद लेने है या नहीं। उन्होंने कहा कि आप अपनी जिंदगी में किसी को भी हस्तक्षेप नहीं करने दें। अपनी जिंदगी खुद जिये पर सामंजस्यता के साथ और यह तभी संभव है, जब आप सामंजस्यता क्या है? इसको समझने की कोशिश करें।

उन्होंने बहुत ही एक सुंदर तर्क दिया। उन्होंने कहा कि जब जीसस क्राइस्ट को लोग सूली पर चढ़ा रहे थे। उन्हें तरह-तरह के त्रास दे रहे थे। तब भी उस दुखद अवस्था में भी, वे जो उन पर अत्याचार कर रहे थे। उनके खिलाफ ईश्वर से कभी बद्दुआएं नहीं मांगी। बल्कि वे ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं?

उन्होंने कहा कि जीवन में सामंजस्यता के लिए आपका व्यवहार कैसा है? काफी मायने रखता है। अगर आपका व्यवहार सुंदर है तो फिर सामंजस्यता बनाने में दिक्कते नहीं आती। आपका जीवन सुखमय हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब भी आपके जीवन में दुख आये, कष्ट आये तो उसका सामना तीन प्रकार से करें। पहला तो ये कि आप उस कष्ट/दुख का सामना करें।

यह समझ कर कि गुरु जी आपके साथ है। ईश्वर आपके साथ हैं। आप इस कष्ट या दुख पर विजय प्राप्त करेंगे। आप दृढ़-निश्चयी है। ईश्वर पर आपका गहरा विश्वास है तो आप उस दुख या कष्ट पर विजय अवश्य प्राप्त करेंगे। दूसरा- अगर आपको इसके बावजूद भी सफलता नहीं मिल रही है। तो आप अपने दुख या कष्ट का ईश्वर के समक्ष समर्पण कर दें। भगवान या गुरु को कहें कि आप इस कष्ट या दुख को देख लीजिये।

सफलता अवश्य मिलेगी और तीसरा यह की कर्मफल का सिद्धांत को समझने की कोशिश कीजिये। जो आपके साथ हो रहा है। वो आपका ही किया है। आपने जो किया है। वो आपको ही भुगतना है। दुसरा कोई भुगतेगा नहीं। अतः अपने कर्मफल को शिरोधार्य कर बिना किन्तु-परन्तु के जो भी चीजें आपके समक्ष आ रही हैं। उसका आनन्द लीजिये।

स्वामी पवित्रानन्द ने सामंजस्यपूर्ण जीवन में प्रेम को अतिमहत्वपूर्ण माना है। उनका कहना था कि अगर आपके जीवन में प्रेम नहीं हैं तो समझ लीजिये, आपके पास आनन्द व खुशियां भी नहीं रहेगी। जितना आप प्रेम बांटेंगे। उतना ही आनन्द व खुशियां आपको प्राप्त होगी। हमेशा प्रेम की खेती करिये। याद रखिये, इस प्रेम की खेती में सिर्फ फायदे होते हैं। नुकसान का तो इसमें सवाल ही नहीं उठता।

उन्होंने कहा कि यह प्रेम ही हैं जो हमारे अंदर दायित्व का बोध कराता है। आप जिससे प्रेम करते हैं। उसके मन में भी दायित्व का बोध करा देते हैं। ऐसा कभी नहीं हुआ कि आपने प्रेम किसी को दी हो और वो आपको उसके बदले नफरत दे दें। उन्होने इसी प्रकरण पर एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किये। जो सभी के दिलों को छू गई।

स्वामी पवित्रानन्द ने कहा कि किसी गांव में एक परिवार था। जिसमें सास-बहू भी थी। सास को बहू पसन्द नहीं थी और बहू को सास पसन्द नहीं थी। सास कोई न कोई ऐसा प्रकरण लाकर खड़ा कर देती, जिससे बहू को खरी-खोटी सुननी पड़ती। ऐसा बार-बार होता देखकर बहू बहुत परेशान हो गई। बहू ने सास को सदा के लिये रास्ते से हटाने का उपाय ढूंढना शुरु किया। बहू ने इसके लिए अपने पिता से मदद मांगी कि वे ऐसा जहर दे, जिससे सास भी मर जाये और उस पर कोई आरोप भी न लगे।

बहू के पिता ने अपनी बेटी के इस मदद को लेकर कहा कि उसके पास एक उपाय है, पर उसे भी थोड़ी मेहनत करनी होगी। इस उपाय में करीब छह महीने लगेंगे। बेटी ने पिता से कहा कि उसे सब मंजूर है। पिता ने बेटी से कहा कि ये जहर की पुड़िया है। प्रति दिन सुबह पानी में मिलाकर अपनी सास को देते जाना। छह महीने पूरते ही सास मर जायेगी।

लेकिन याद रहे, सास को शक न हो कि उसे जहर दिया जा रहा है। उसके लिए तुम्हें सास से इस दौरान कुछ ज्यादा ही दिखावे का प्यार लूटाने की एक्टिंग करनी होगी। बेटी ने पिता से कहा कि उसे मंजूर है। इधर बेटी ने प्रतिदिन जहर की एक पुड़िया देनी शुरु की और सास पर प्यार लूटाना शुरु किया। इधर बहू का बदला व्यवहार सास के व्यवहार में भी बदलाव लाना शुरु किया। वो भी अपनी बहू पर खुब प्यार लूटाने लगी। देखते ही देखते दोनों में इतनी अंतरंगता आ गई कि दोनों एक दूसरे के प्रेम में बंध गये।

अब स्थिति ऐसी हो गई कि बहू अपनी सास को खोना नहीं चाहती थी। वो अपने पिता के पास गई कि पिताजी मैं अपनी सास को खोना नहीं चाहती। आपने जो वो जहर की पुड़िया दी थी। उससे तो अब तक उसकी सास के हालत खराब होने शुरु हो गये होंगे। आप ऐसा करें कि कुछ ऐसी दवा दें, जिससे उसकी सास को दी गई वो जहर की पुड़िया का असर खत्म हो जाये। पिता ने बेटी से कहा कि इसकी कोई जरुरत नहीं।

बेटी ने कहा कि- ऐसा क्यों, ऐसे में तो उसकी सास मर जायेगी। पिता ने कहा कि वो नहीं मरेंगी, क्योंकि जो पुड़िया तुम जहर समझकर दे रही थी, वो जहर नहीं थी, जहर दरअसल तुम्हारे दिमाग में थी। जो अब निकल चुका है। उसकी जगह पर अब प्रेम ने स्थान बना लिया है। स्वामी पवित्रानन्द ने इस कहानी के माध्यम से प्रेम की सार्थकता और उसके गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठा दिया था।

स्वामी पवित्रानन्द ने इसी प्रकार एक और कहानी सुनाई और उस कहानी के माध्यम से लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि सभी को अपने रिश्तों की मजबूती के लिए वर्तमान में पुल बनने की जरुरत हैं। मतलब उनका इशारा जैसे पुल एक दूसरे को जोड़ता है। उसी प्रकार सभी को एक दूसरे से जुड़ने या जोड़ने का काम करना है, न कि रिश्तों में एक दूसरे के प्रति दीवार खड़ी कर देनी है।

उन्होंने योगदा भक्तों से कहा कि आप अपने जीवन में कभी निराशा को हावी नहीं होने दें। हमेशा सब की मदद करने की भावना को अपने जीवन में स्थान दें। दायित्व का बोध रखें और ये तभी संभव होगा जब आपके हृदय में प्रेम होगा और ये सही प्रेम तभी आपके जीवन में आयेगा। जब आप स्वयं को ध्यान में लगायेंगे।

स्वामी पवित्रानन्द ने कहा कि याद रखें। ध्यान ही आपके अंदर सकारात्मकता को भरता है। यहीं आपके अंदर से दुर्गुणों को हटाकर सद्गुणों को भरता है। आपको ईश्वर के निकट ले जाता है। आपके मन-मस्तिष्क को ठीक रखता है। उसें उर्जावान बनाता है। उन्होंने यह भी कहा कि योगदा सत्संग आश्रम में एक पुस्तक मिलती है। उसका नाम है – जहां है प्रकाश। उसे पढ़िये। आपको अंधकार से मुक्ति मिलेगा। आपका जीवन अवश्य सफल होगा। कइयों ने उसे पढ़ा हैं और उन्होंने पाया कि उनके जीवन में काफी बदलाव आया है।