रांचीवासियों की नजर में पाकिस्तान, पाकिस्तानी और कटासराज महादेव की यात्रा, पाकिस्तान से लौटे तीर्थयात्रियों ने बताया कि नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान में भी लोकप्रिय
पाकिस्तान के चकवाल स्थित कटासराज महादेव का दर्शन कर लौटे रांची के 18 तीर्थयात्रियों का दल अति प्रसन्न हैं। प्रसन्नता का मूल कारण उनकी वर्षों की साधना और भगवान भोलेनाथ के प्रति उनका समर्पण है। विद्रोही24 से मिलने पहुंचे तीर्थयात्रियों के दल ने अपनी यात्रा के संस्मरण सुनाएं और कहा कि भारत हो या पाकिस्तान, दोनों तरफ के नागरिकों में एक सबसे बड़ी समानता यह हैं कि दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं और एक-दूसरे का सम्मान करते हैं।
कटासराज गये तीर्थयात्रियों दल के नेतृत्वकर्ता कैलाशी अरविन्द सिंह कौशल ने विद्रोही24 को बताया कि रांची के 25 तीर्थयात्रियों ने कटासराज जाने के लिये आवेदन दिया था। जिसमें 18 तीर्थयात्रियों के दल को ही यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिसमें दस पुरुष और आठ महिलाएं थी। इन्होंने बताया कि सभी तीर्थयात्री 16 दिसम्बर को सम्बलपुर जम्मूतवी एक्सप्रेस से निकले थे जो 18 दिसम्बर की सुबह अमृतसर पहुंचे।
18 दिसम्बर को अमृतसर के दुर्ग्यानी मंदिर में सभी ठहरें और 19 दिसम्बर को वहां से अटारी बार्डर के लिए निकले और फिर 19 दिसम्बर को ही दो बजे पाकिस्तान के बाघा बार्डर में प्रवेश किये। जहां श्राइन ब्रांच के इटीपीबी (Evacufe Trust Property Board) के राणा शाहीद सलीम व उनके लोगों ने फूल+मालाओं से उनका स्वागत किया और वे फिर वहां से उन्हें लाहौर के डेरा साहेब गुरुद्वारा में पहुंचा दिया।
जहां हम सब ने वहां उस दिन विश्राम किया और फिर वहां से 20 दिसम्बर को सुबह आठ बजे चकवाल के लिए निकल पड़ें। करीब तीन बजे वे चकवाल पहुंचे, जहां के इंजीनियरिंग कॉलेज में सभी को ठहराया गया। 21 दिसम्बर को सुबह हम सभी ने कटासराज स्थित झील में स्नान किया। उसके बाद सभी ने कटासराज महादेव का दर्शन और पूजा अर्चना किया।
तीर्थयात्री के रुप में गये विक्की सिंह ने बताया कि पाकिस्तान पहुंचते ही प्रत्येक तीर्थयात्रियों को प्रति तीर्थयात्री 60 डॉलर (अर्थात् 5100 भारतीय रुपये) देने पड़े, जिसमें बस भाड़ा, ठहरने व खाने-पीने तथा अन्य सुविधाएं शामिल थी। विक्की सिंह का कहना था कि हमलोग जहां भी प्रमुख रुप से ठहरें, वहां सिक्खों का लंगर चल रहा था।
विक्की सिंह ने बताया कि कटासराज मंदिर में पूजा करने के लिए पूजा के बर्तन और पूजन की सामग्रियां हमलोग रांची से ही लेकर चले थे। इसकी व्यवस्था रांची के सांसद संजय सेठ और विधायक सीपी सिंह ने करवा दी थी। तीर्थयात्रियों ने बताया कि चूंकि पाकिस्तान के चकवाल जाने के लिए दो ही बार वीजा उपलब्ध होते हैं। जिसमें एक महाशिवरात्रि का समय होता हैं और दूसरा यह समय।
इन्होंने बताया कि हिन्दू तीर्थयात्रियों को आने को देखते हुए मंदिर को भव्य तरीके से सजाया गया था। कैलाशी ने बताया कि ऐसे कटासराज मंदिर में सारे के सारे प्रमुख मंदिरें बंद ही रहती है। लेकिन इस बार हनुमान मंदिर और गणेशा मंदिर को खोलकर रखा गया था। स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार आनेवाले समय में राम मंदिर भी खोल दिया जायेगा। इन यात्रियों ने बताया कि इस पाकिस्तान यात्रा में उनलोगों ने तीन दिन और दो रातें पाकिस्तान में बिताई।
कई तीर्थयात्रियों ने बताया कि वहां के स्थानीय नागरिकों से बात करने से यह महसूस हुआ कि वहां के लोग भारत की जनता और यहां के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बहुत ही खुश हैं। उनका मानना है कि काश उनके देश में भी ऐसा ही प्रधानमंत्री होता तो उनका भी देश खुशहाल और तरक्की कर रहा होता। विक्की ने कुछ हैरानी वाली बात भी बताई उनका कहना था कि लाहौर में चूंकि मुस्लिम ही मुस्लिम हैं, पर वे यहां की तरह दाढ़ी बढ़ाकर या मुस्लिम खुद को दिखाने के लिए कुछ नहीं करते, बल्कि हम जैसे ही दिखते हैं।
दूसरा की वहां की सड़कों पर आज भी पुरानी हीरो होंडा, उसमें भी 70 सीसी वाली बाइक रेंगती हुई दिखाई देती है। स्कूटी तो कही दिखी ही नहीं। लाहौर में कोई फ्लैट नहीं दिखा। महिला पुलिस कही नहीं दिखी। दिखी भी तो केवल एक दो, वो भी चकवाल में। वहां के बाजारों में भारतीय रुपये भी आराम से चलते हैं। भारत का सौ रुपया वहां के तीन सौ रुपये से भी ज्यादा के बराबर है। मतलब भारतीय रुपये का सम्मान वहां खुब है।
तीर्थयात्रियों ने बताया कि जब वे पाकिस्तान के एक बाजार में पहुंचे तो वहां के दुकानदारों का व्यवहार बहुत ही सुंदर और प्रशंसनीय था। वे अपने सामान कुछ छुट कर भी देने को तैयार थे। तीर्थयात्रियों ने बताया कि चकवाल में स्थानीय प्रशासन की ओर से स्वागत समारोह की तैयारी भी की गई थी। जिसमें स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद थे। सभी ने तीर्थयात्रियों का स्वागत किया और अपनी बातें रखी।
बाद में सभी ने आस-पास के मंदिरों और किलाओं का दर्शन किया। जिसमें महाराजा रणजीत सिंह का किला, लव-कुश की समाधि भी शामिल था। इन तीर्थयात्रियों ने बताया कि पाकिस्तान की यात्रा के दौरान उन लोगों को विशेष सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी। उन्हें वहीं-वहीं भेजा गया, जहां-जहां का कागजात में जिक्र था। मतलब हमलोग लाहौर से सीधे चकवाल पहुंचे और चकवाल से सीधे लाहौर और फिर भारत में प्रवेश कर गये।