अगर आप योगदा के बताये गये वैज्ञानिक प्रविधियों व सूत्रों को अपनायेंगे तो निश्चय ही ईश्वर की निकटता को महसूस करेंगे – स्वामी स्मरणानन्द गिरि
योगदा सत्संग द्वारा बताई गई वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाइये और अपने जीवन को ईश्वरीय आनन्द से जोड़ लीजिये। यह आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, क्योंकि आप उसी परमानन्द से आये हैं और आपको उसी में विलीन हो जाना है, इसलिये देर करना बुद्धिमानी नहीं। इसके साथ परमानन्द को पाने के लिए जो प्रमुख सूत्र हैं, उन सूत्रों पर भी ध्यान दीजिये, फिर देखिये ये सूत्र और हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा बताई गई वैज्ञानिक तकनीकें मिलकर कैसे आपके जीवन में परमानन्द की अनुभूतियों का बीजारोपण करती हैं। यह बातें आज रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए आश्रम के वरीय संन्यासी स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने कही।
उन्होंने तैतरीयोपनिषद् और श्रीमद्भगवद्गगीता के कई दृष्टांतों तथा परमहंस योगानन्द जी द्वारा बताये गये कई मार्गों का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि परमानन्द को प्राप्त करने के लिए कई मार्ग हैं, लेकिन जो योगदा सत्संग द्वारा बताया गया मार्ग हैं, वो मार्ग आपको जल्द ही परमानन्द की अनुभूति करा देता हैं। उन्होंने कहा कि योगदा में बताये गये हं-सः और ओम् टेक्नीक को अपनाकर कइयों ने स्वयं में सुधार कर अपनी आध्यात्मिक चेतना को सुदृढ़ किया।
चूंकि आज का विषय ही था – आर्ट एंड साइंस ऑफ हैप्पीनेस। इस पर चर्चा करते हुए स्वामी स्मरणानन्द गिरि न कहा कि हमेशा याद रखिये कि कला व्यक्तिपरक है, जबकि विज्ञान वस्तुनिष्ठ है। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषियों ने उस परमानन्द को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक प्रविधियों पर जोर दिया जो कालांतराल में वो प्रविधियां प्रवाहित होते हुए आज भी किसी न किसी रुप में विद्यमान है। जो उन प्रविधियों को अपना रहे हैं, वे उस परमानन्द, जिसे सच्चिदानन्द भी कहते हैं। उनको प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने योगदा भक्तों को कहा कि याद रखिये जब तक शरीर और मन स्वस्थ नहीं होगा, आप ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सामान्य जीवन जीने से ईश्वर के आनन्द को प्राप्त नहीं किया जा सकता। सामान्य जीवन घड़ी के पेंडूलम की तरह होता, जबकि योगियों का जीवन परमानन्द में बीतता है। उन्होंने कहा कि बिना शांति के आप परमानन्द को नहीं प्राप्त कर सकते और यह शांति सिर्फ और सिर्फ ध्यान से ही प्राप्त हो सकता है। वो भी सामान्य ध्यान से नहीं। उस ध्यान में निरन्तरता, निमग्नता तथा उसमे गहराई से डूबने पर ही उसे प्राप्त किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि प्राणायाम श्वास को नियंत्रित करता है। अपने यहां हं-सः और ओम् तकनीक हैं, वो पूर्णतः वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित है। उन्होंने कहा कि यह ऐसा तकनीक है, जो आपको बाहरी बेकार की बातों से आपकी ज्ञानेन्द्रियों को नियंत्रित कर देता हैं। जैसे आप सोने के समय आपको यह नहीं पता चल पाता कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है, ठीक उसी प्रकार यह आपको जागृत अवस्था में बाह्य जगत से आपको दूर करता हैं। लेकिन सोने के समय में यह होता है कि आपका मस्तिष्क भी सो जाता है, लेकिन यहां जागृत अवस्था में मस्तिष्क सोता नहीं, बल्कि ईश्वरीय चेतना से सम्पर्क करने में लग जाता है। उन्होंने कहा कि योगदा भक्तों को दिया जानेवाला क्रिया योग तो आपको शीघ्रता से वहां तक ले जाता है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने इसके साथ ही परमानन्द को प्राप्त करने के लिए कुछ सूत्र भी बताएं और सभी को उस सूत्र को अपनाकर चलने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि पहली बात तो हमेशा खुश रहना सीखिये। विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को खुश रखिये, तभी आप जीवन के आनन्द को महसूस कर सकेंगे। दूसरा, हमेशा मुस्कुराते रहिये, क्योंकि आपके मस्तिष्क को यह हमेशा उत्प्रेरित करता है, आपको बेहतर बनाये रखने में। तीसरा, उनका कहना था कि हमेशा व्यायाम करें। इसे कभी छोड़े नहीं। इसको प्रत्येक दिन करते रहे।
उन्होंने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि स्कूलों व कॉलेजों में व्यायाम और खेल को खत्म कर दिया गया, जिसका दुष्परिणाम अब सबके सामने हैं। चौथा, हमेशा कृतज्ञ बने रहिये। किसी ने भी आपको कोई भी छोटा या बड़ा मदद किया है। उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते रहिये। जैसे ईश्वर को कभी मत भूलिये, क्योंकि यह जीवन उसी की देन है। इसलिए उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते रहिये। पांचवा – चौबीस घंटे में समय पर सोना भी सीखिये, अच्छे स्वास्थ्य के लिए सात से आठ घंटे सोना भी चाहिए।
छठा, मन में हमेशा दयालुता को बनाये रखिये। सातवां, व्यावहारिक बनिये। आठवां – दूसरे को उसके कार्यों के लिए धन्यवाद या बधाई देना भी सीखिये। नौवां – खुद को दूसरे से तुलना मत करिये, क्योंकि आप स्वयं में ईश्वर की बनाई गई एक अनूठी कृति हैं। दसवां – हमेशा सत्संग में रहिये। ग्यारहवां – मन में सहृदयता के भाव को कभी भी मिटने मत दीजिये। बारहवां – मानवीय मूल्यों से स्वयं को हमेशा ओत-प्रोत रखिये। अगर आपका जीवन इन सूत्रों से भरा हैं तथा आप जीवन को योगदा सत्संग के बताये मार्गों व वैज्ञानिक तकनीकों को अपना रहे हैं तो निश्चय ही आप जीवन में ईश्वर की निकटता को महसूस करेंगे।