प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कुरुक्षेत्र की लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है, लेकिन इस लड़ाई को जीतता वही है, जिसके पास श्रीकृष्ण जैसा गुरु हो – स्वामी चैतन्यानन्द
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कुरुक्षेत्र की लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है। लेकिन इस कुरुक्षेत्र की लड़ाई में जीतता वही है, जिसके पास श्रीकृष्ण जैसा गुरु हो, क्योंकि श्रीकृष्ण जैसा सर्वोच्च दृष्टि रखनेवाला गुरु ही अर्जुन जैसे शिष्य को उन्नति के शिखर पर लाकर खड़ा कर सकता है। यही सर्वोच्च दृष्टि आपके अंदर रखने की शक्ति अपने गुरु परमहंस योगानन्दजी के पास है, तभी तो वे कहते हैं कि मैं आपके आध्यात्मिक उत्थान के लिए, वो हर कार्य करुंगा, मार्ग प्रशस्त करुंगा, जो हमारे लिए जरुरी है।
उक्त बातें आज रांची स्थित योगदा सत्संग मठ में आयोजित साधना संगम के समापन अवसर पर स्वामी चैतन्यानन्द जी ने योगदा भक्तों से कही। इस दौरान दूसरे केन्द्रों से भी योगदा भक्त ऑनलाइन उनके प्रवचन को सुन लाभान्वित हो रहे थे। स्वामी चैतन्यानन्द जी ने कहा कि हमेशा याद रखिये, जहां कृष्ण है, वहां धर्म है और जहां धर्म है वही जीत सुनिश्चित है। उन्होंने धर्म की सुन्दर व्याख्या करते हुए कहा कि जो गुण हमें ईश्वर की ओर ले जाये, वो धर्म है और जो हमें ईश्वर से विमुख कर दें, वो अधर्म है।
उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण धर्म की स्थापना के लिए ही आये थे, उनमें किन्तु-परन्तु लगाना उचित नहीं। उन्होंने कहा कि अगर आप श्रीकृष्ण को दिव्यता के रुप में देखेंगे तो आपको वे धर्मस्वरुप ही दिखेंगे। उन्होंने कहा कि कभी-कभी कुछ ऐसी भी घटनाएं घटती या बताई जाती हैं, जो संदेह को जन्म देती हैं। लेकिन जब आप उसमे संदर्भ को देखेंगे तो स्पष्टता झलकने लगती है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण कृपा हैं तो अर्जुन प्रयास है।
उन्होंने कहा कि अगर आप आत्मबोध चाहते हैं तो आपको हर हाल में बुरी आदतों को छोड़ना ही होगा, क्योंकि बुरी आदतें अधर्म की प्रतीक हैं। याद रखिये शांति-अशांति, प्रेम-द्वेष कभी भी एक साथ नहीं रह सकते। हमें ईश्वर चाहिए तो हमें जीवन में आनेवाली बुराइयां जो हमें ईश्वर से दूर करती हैं, उनके साथ संघर्ष करना ही होगा और जब आप ईश्वर को पाने के लिए बुरी आदतों से स्वयं को छुड़ाने के लिए प्रयास कर रहे होंगे तो निश्चय ही गुरु आपको आत्मसाक्षात्कार द्वारा ईश्वर को प्राप्त कराने के लिए आपके साथ खड़ें होंगे। उन्होंने कहा कि आप अपनी दृढ़-इच्छाशक्ति को और मजबूत बनाते हुए ईश्वरप्राप्ति में लग जायें। हमेशा याद रखें कि जितना बड़ा लक्ष्य होगा, युद्ध या संघर्ष उतना ही बड़ा होगा।
स्वामी चैतन्यानन्दजी ने कहा कि ईश्वर को कैसे प्राप्त करना है। इन सारी बातों की जानकारी परमहंस योगानन्दजी ने अपनी पाठमालाओं में बता चुके हैं। बस आप उनके द्वारा लिखित पाठमालाओं के शब्दों के आधार पर उनका अनुसरण करना प्रारम्भ करें। उन्होंने दावे के साथ कहा कि अगर आप परमहंस योगानन्द जी के द्वारा बताये गये मार्गों पर चलते हैं तो इसी जन्म में आप ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। ये पूर्णतः सत्य है।
उन्होंने कहा कि गुरुजी ने कभी नहीं कहा कि आप अपने काम छोड़कर ईश्वर को प्राप्त करने में लग जाये। आप अपनी ड्यूटी पूरा करते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। यह संभव भी है। उन्होंने कहा कि परमहंस योगानन्द जी द्वारा पाठमालाओं में बताई गई बातें केवल शिक्षण का ही काम नहीं करती, बल्कि वो गुरुजी के आशीर्वाद का भी काम करती है। उन्होंने कहा कि कोई भी प्रयास जो ईश्वर के लिए किया गया है, वो कभी व्यर्थ नहीं जाता। वो सिंचित होता रहता है और आपको समय-समय पर प्राप्त होता जाता है।
उन्होंने कहा कि कभी भी अपने मन में इन बातों को पनपने मत दीजिये कि मैं नहीं करुंगा, मुझसे नहीं होगा। दरअसल ये दो वाक्यें गुरुजी सुनना पसन्द नहीं करते। गुरुजी हमेशा कहते है कि स्वाध्याय खुद के लिये हैं। इसलिए गुरुजी की टीचिंग जो पाठमाला के रुप में हैं, उसे बार-बार पढ़ने का प्रयास कीजिये, क्योंकि आप जितना पढ़ेंगे, उतना ही आपको उसमें आनन्द प्राप्त होता जायेगा, जो ईश्वर प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगा।
उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे हम पढ़ते जाते हैं। वैसे-वैसे हमारे अंदर आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती जाती है। उन्होंने कहा कि यम-नियम, आसन-प्राणायाम ये सभी मुक्ति के दिव्य विधान है। बिना कठिन तपस्या के कभी भी कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका और न ही ईश्वर को प्राप्त कर सका है। उन्होंने कहा कि खुद को कभी भी दूसरे से तुलनात्मक विश्लेषण नहीं करें, क्योंकि सभी के अंदर अलग-अलग प्रकार की विशिष्टता होती है, जो ईश्वरीय प्रदत्त हैं। हर व्यक्ति ईश्वर की नजरों में खास है। बस, आप सिर्फ प्रयास करते रहिये। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की क्षमता भी भिन्न-भिन्न होती है। ऐसा नहीं कि कोई व्यक्ति ईश्वरीय अनुभवों को जैसा महसूस कर रहा हैं, दूसरा भी वैसा ही महसूस कर रहा होगा।
उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखिये कि हमें चाहिए क्या? अगर ये बार-बार याद रखेंगे तो कभी आप अपने लक्ष्य से च्युत नहीं होंगे। लक्ष्य सिर्फ ईश्वर की प्राप्ति ही होनी चाहिए न कि दूसरा। उन्होंने कहा कि परमहंस योगानन्द जी कहा करते थे कि जब मैं किसी से प्रेम करता हूं तो उसके उपर आये सारे कष्टों जो उसके कर्मों की ही उपज है, उसे अपने उपर ले लेता हूं, ताकि वो कष्ट उसकी आध्यात्मिक पथ की उन्नति में बाधा न बनें। उन्होंने योगदा भक्तों से कहा कि गुरुजी वो सारे काम आपके हित में गुप्त रुप से करते रहते हैं, जो आपको पता भी नहीं होता।
उन्होंने कहा कि मन को हमेशा नियंत्रण में रखिये। कोई भी काम करिये तो मन को हमेशा इस प्रकार बनाये रखिये कि आपको हर काम के बीच भी ईश्वर को नहीं भूलना है। मतलब ड्यूटी भी करेंगे और ईश्वर को भी याद रखेंगे। दोनों, साथ-साथ चलाइये। अंत में, उन्होंने सभी से कहा कि गुरुजी कभी भी आपके द्वारा किये जा रहे ईश्वरीय प्राप्ति के प्रयास के दौरान हुई गलतियों को बुरा नहीं मानते, वे तो बस यही चाहते है कि जो इस दौरान गलतियां हुई, उन गलतियों को सुधारने का प्रयास कर आगे बढ़ें, न कि उन्हीं गलतियों को बार-बार दुहराते हुए अपने लक्ष्य से विमुख हो जाये।