मोदी की चाय झारखण्ड में न बनें इसके लिए भाजपा के प्रदेशस्तर के नेताओं ने ही चलाया विशेष अभियान, समर्पित कार्यकर्ताओं को दिखाया ठेंगा, परिक्रमा करनेवालों को थमाया पद
दिल्ली में लाख झलकुट्टन कर लें भाजपा। लेकिन झारखण्ड में गुल खिला पायेगी, इसकी संभावना कम दिख रही है। इनके प्रदेशस्तर के नेताओं ने पार्टी की केतली में इतना छेद कर दिया हैं कि मोदी की चाय झारखण्ड में बन पायेगी, इस पर राजनीतिक पंडितों ने संदेह व्यक्त करना अभी से शुरु कर दिया है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पहली बार इतने बड़े स्तर पर नीचे से लेकर उपर तक पार्टी में आक्रोश दिख रहा है।
हालांकि आक्रोश दबाने का काम दिखावे तौर पर इनके नेताओं द्वारा किया जा रहा है, पर ये आक्रोश धीरे-धीरे एक बड़े तूफान का रुप लेता चला जा रहा है। जिसकी दवा या टीका फिलहाल भाजपा के पास नहीं है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ऐसे भी कांग्रेस, राजद और झामुमो के गठजोड़ के बाद भाजपा के पास कुछ करने को बनता नहीं है, क्योंकि यह गठबंधन फिलहाल झारखण्ड में भाजपा की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है।
इधर ऐसे भी भाजपा के संगठन मंत्री की कार्यशैली ने पार्टी का यहां सत्यानाश कर डाला है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले प्रदेश के सभी जिलाध्यक्षों का भाजपा के वर्तमान 12 सांसदों की अनुमति या परामर्श के बिना अचानक बदल दिया जाना, कई स्थानों पर वर्तमान सांसदों के कट्टर विरोधियों का जिलाध्यक्ष बना दिया जाना भाजपा में आक्रोश की ज्वाला को और धधका दिया है।
कई जिलों में अभी तक वहां के कार्यकर्ता नये जिलाध्यक्षों को आत्मसात् नहीं कर पाये हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस की तरह उपर से थोपे गये इन जिलाध्यक्षों को वे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। जिस दिन मतदान का दिन आयेगा, एक आम मतदाता की तरह वोट दे आयेंगे। लेकिन जो समर्पण के साथ कल तक काम कर रहे थे, वो अब शायद ही हो पायेगा।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि टाटा में रामबाबू तिवारी को उचित स्थान नहीं देना। रांची में ही युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष पद संभाल चुके तेजतर्रार नेता विनय जायसवाल को भाव नहीं देना, प्रदीप सिन्हा जैसे गंभीर व्यक्ति को प्रदेश प्रवक्ता पद से साइड कर देना, रांची के ही रमेश पुष्कर जैसे कट्टर भाजपाइयों को सम्मान नहीं देना सब कुछ कह दे रहा है।
दूसरी ओर बोकारो के पूर्व जिलाध्यक्ष विनोद महतो को इस बार भी पार्टी में जगह नहीं दिया जाना, धनबाद का प्रमुख चेहरा और पार्टी के लिए हरदम समर्पित राज कुमार अग्रवाल को सदा के लिए भूल जाना, निश्चय ही पार्टी के लिए खतरनाक साबित होगा। यही नहीं रीतलाल वर्मा के बेटे प्रणव वर्मा को मुख्यधारा से डिलीट कर देना भी समझ से परे हैं।
भाजपा के ही कई प्रबुद्ध नेताओं ने विद्रोही24 को बताया कि पाकुड़ के अनुगृहित साह, हिसाबी राय, कमल भगत, देवघर के संजीव जज्वारे, लोहरदगा के ओम प्रकाश सिंह, मधुपुर के अधीर भैया, पलामू के प्रेम सिंह, दुमका के अमरेन्द्र सिंह मुन्ना, गिरिडीह के परमेश्वर मोदी को भूला देना पार्टी के लिए निश्चित रुप से ही महंगा साबित होगा।
भाजपा के वर्तमान संगठन मंत्री से क्षुब्ध एक समर्पित भाजपा कार्यकर्ता ने बताया कि जो भी व्यक्ति कर्मवीर सिंह की परिक्रमा कर रहा है, उसके लिए पार्टी के संविधान को भी ताखे पर यह व्यक्ति रख दे रहा है। जरा देखिये हजारीबाग के अमरदीप यादव को ओबीसी मोर्चा का अध्यक्ष लगातार तीसरी बार बना दिया गया। जबकि भाजपा का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता।
यहीं नहीं एक भाजपा कार्यकर्ता ने विद्रोही24 से कहा कि बोकारो में रहनेवाले संघ के मूल परम्परा से आते हैं विनय सिंह। वे बोकारो जिले में 11 सालों तक जिला कार्यवाह भी रह चुके हैं, साथ ही दस सालों तक विभाग संगठन मंत्री भी रह चुके हैं। इनकी राजनीतिक शक्ति, सांगठनिक और बौद्धिक क्षमता से पूरा प्रदेश अवगत है, फिर भी ऐसे व्यक्ति को कोई प्रमुख पद नहीं दिया गया, हालांकि विनय सिंह किसी पद के भूखे भी नहीं हैं। बोकारो जिले से ही कई बार जिलाध्यक्ष रहे तथा बेरमो से 1995 में चुनाव लड़े सौम्य व्यक्तित्व के धनी डा. प्रह्लाद बर्णवाल जैसे लोगों का पार्टी स्वहित में सेवा लेती तो निश्चय ही पार्टी को फायदा होता।
लेकिन अब तो यहां नई संस्कृति जन्म ली है। यह संस्कृति प्रदेश महामंत्री प्रदीप वर्मा से शुरु होती है और रमेश सिंह पर आकर खत्म हो जाती है। दूसरे दलों से आये लोगों को प्रवक्ता और प्रमुख पद दिये जा रहे हैं। जिन्होंने जिंदगी भर भाजपा को गरियाने का काम किया है। आज सिर्फ वे परिक्रमा करने के कारण पद प्राप्त कर रहे हैं और समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं को धकियाने का काम किया जा रहा है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि नरेन्द्र मोदी की इस बार झारखण्ड में कही भी चुनावी सभा होगी तो इसका प्रभाव उनकी सभा पर भी दिखेगा। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ या ‘मोदी की गारंटी’ यहां नहीं चल पायेगी। इसे केन्द्रीय स्तर के नेता जितना जल्दी समझ लें, उतना अच्छा रहेगा, क्योंकि इनके प्रदेश के पदाधिकारियों ने पार्टी को रसातल में पहुंचा दिया है।