शरीर के अंदर विद्यमान चक्रों को खोलने की एकमात्र कुंजी है ध्यान, नियमित रुप से ध्यान करें और ईश्वर की अनुभूतियों का आनन्द लेः स्वामी स्मरणानन्द
हमारे शरीर के अंदर जितने भी चक्र हैं। उन चक्रों को खोलने की एकमात्र कुंजी है -ध्यान। अगर आप नियमित रुप से ध्यान करते हैं तो आप शरीर के अंदर व्याप्त चक्रों को खोलकर सच्चिदानन्द को प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि जो सच्चिदानन्द हैं, वो शरीर के बाहर नहीं, बल्कि अंदर ही स्थापित हैं। जरुरत हैं, उसे जानने की, उन तक पहुंचने की। जो जान गये, वे वहां तक पहुंच गये और जो नहीं जान पाये।
उनका सामान्य जीवन घड़ी के पेंडूलम की तरह हो जाता है, जबकि योगियों का जीवन परमानन्द में बीतता है। ये बातें आज चार दिवसीय साधना संगम के समापन के अवसर पर नोएडा स्थित योगदा आश्रम से योगदा भक्तों को ऑनलाइन संदेश के माध्यम से वरीय संन्यासी स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने कही।
स्वामी स्मरणानन्द गिरि ने साधना संगम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे प्राचीन ऋषियों ने सर्वाधिक जोर उक्त परमानन्द को प्राप्त करने में लगाया और उसके लिए कुछ सिद्धान्त प्रतिपादित किये, जो सामान्य लोगों के लिए भी अनुकरणीय थे, परंतु समय के चक्र ने हमारे प्राचीन ऋषियों के उक्त महान परम्पराओं से हमें वंचित कर दिया, जिसके कारण हम परमानन्द को समझ ही नहीं सकें और न ही उस ओर जाने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि ध्यान के बिना न तो बेहतर जीवन और न ही परमानन्द की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि ध्यान एक ऐसी फैक्ट्री है, जो हमें परमानन्द के सम्पर्क में रहना सिखाती है। उन्होंने कहा कि क्रिया योग द्वारा, इसकी लगातार प्रैक्टिस से आप उस परमानन्द तक आसानी से पहुंच सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रैक्टिस में गुरु केवल हमें अपनी स्टेटमेंट ही हम तक नही पहुंचाते, बल्कि वे हमें वो तकनीक भी बताते हैं, जिसके द्वारा हम आसानी से उस सच्चिदानन्द तक पहुंच जाते हैं।
स्मरणानन्द गिरि ने सच्चिदानन्द तक पहुंचने के लिए ध्यान के दौरान आनेवाली विभिन्न प्रकार की बाधाओं पर भी योगदा भक्तों का ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने बड़े ही सरल माध्यमों से बताया कि ध्यान के दौरान ध्यान में बाधक कौन होता है और उन बाधक तत्वों से कैसे निबटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जितनी प्रकार की बाधाएं हैं। उन बाधाओं से निबटना बहुत ही जरुरी है और हं-सः तथा ओम् तकनीक द्वारा अपने ध्यान की प्रविधियों को और मजबूत बनाते हुए गहराई में ले जाना है। उन्होंने कहा कि याद रखिये हम सभी का लक्ष्य एक ही होना चाहिए -वो है ईश्वर की प्राप्ति।
उन्होंने आनन्द को प्राप्त करने के लिए कुछ सिद्धांतों को भी अपने योगदा भक्तों से अपनाने को कहा। वे सिद्धांत इस प्रकार थे। 1. आनन्द को चुनना – उनका कहना था कि हर हाल में हमें आनन्द को चुनना चाहिए, क्योंकि आप जिस चीज को चुनेंगे, वहीं प्राप्त करेंगे, वहीं आपके खाते में आयेगा। इसलिए आप जीवन में क्या चुन रहे हैं। वो काफी मायने रखता है। 2. मुस्कुराहट – हर हाल में मुस्कुराते रहिये, क्योंकि मुस्कुराहट आपके मस्तिष्क को हमेशा बेहतर स्थिति में रहने को उत्प्रेरित करता है।
3. व्यायाम – हमेशा व्यायाम करते रहिये, क्योंकि यही आपके शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है। बिना शरीर को स्वस्थ रखे, आपके शरीर में रहनेवाला मन व आत्मा बेहतर स्थिति का अनुभव नहीं कर सकता। 4. ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करना – ईश्वर ने आपको जिस भी हाल में रखा है, उसके लिए उसे हमेशा धन्यवाद ज्ञापित करिये। हमेशा याद रखिये कि आपको जो भी ईश्वर ने दिया है, दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जिसे उतना भी प्राप्त नहीं हुआ है।
5. शयन – हमेशा एक निश्चित समय तक शयन करिये। अच्छे स्वास्थ्य के लिये सही समय पर शयन करना और उठना भी जरुरी है। 6. दयालुता – हमेशा सभी के प्रति दयालुता की भावना रखनी चाहिए। 7. मदद करने की भावना – हमेशा दूसरों की मदद करने का प्रयास करते रहना चाहिए। यह हमें परोपकार की भावना भरता है, जिससे हम बेहतर स्थिति में होते हैं।
8. व्यवहारिक बनिये – लकीर के फकीर मत बनिये, हमेशा व्यवहारिक बनिये। 9. दूसरे की तारीफ – हमेशा दूसरे की तारीफ करना सीखिये, अगर किसी ने आपसे या किसी भी प्रकार से बेहतर काम किया है, तो उसकी तारीफ भी करना सीखिये। 10. तुलनात्मक विश्लेषण नहीं – कभी भी अपनी तुलना किसी व्यक्ति विशेष से मत करिये, क्योंकि आप भी ईश्वर की बनाई एक अनमोल कृति है। 11. करुणा – अपने हृदय में करुणा भाव रखिये।
12. सत्संग – हमेशा अच्छे लोगों के सम्पर्क में रहिये, सत्संग में रहिये, अच्छी बातों को अपनाइये। 13. नजरिया – हमेशा सकारात्मक नजरिये को अपनाइये, स्वार्थपरक नीतियों को मत अपनाइये। 14. ध्यान – प्रतिदिन ध्यान के प्रति संवेदनशील बने रहिये, क्योंकि अंत में यही आपको ईश्वर के निकट ले जाने में महती भूमिका निभायेगा। ध्यान ही कुंजी है, आपके अंतर्मन को खोलने की, उसमें सुंदर भाव स्थापित करने की, आपको हर प्रकार से बचाने की, इसलिए इसमें कभी भी आलस्य को न आने दें।