गिरिडीह में भाजपा की लाभार्थी कार्यशाला ने भाजपा की मौजूदा शक्ति का पोल खोलकर रख दिया, न पूर्व सांसद दिखे और न ही एकमात्र वर्तमान विधायक
भाजपा की हालत पूरे झारखण्ड में कितना पस्त है। उसकी बानगी आप गिरिडीह में देख सकते हैं। जबकि यही गिरिडीह लोकसभा हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है। यहां से पांच बार भाजपा नेता रवीन्द्र पांडेय सांसद रह चुके हैं। लेकिन आज यहां हो क्या रहा है? भाजपा यहां लाभार्थी संपर्क अभियान -लोकसभा कार्यशाला आयोजित करती है।
इस कार्यशाला में भाग लेने के लिए प्रदेश के संगठन मंत्री मतलब रांची भाजपा पीठाधीश्वर कर्मवीर सिंह भाग लेते हैं, लेकिन इस कार्यशाला से भी भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं का समूह व एकमात्र भाजपा का बाघमारा विधायक ढुलू महतो तथा पूर्व सांसद रवीन्द्र पांडेय नदारद रहते हैं।
मंच पर वैसे लोग मौजूद हैं, जिनकी गिरिडीह पर कभी पकड़ थी, पर आज वे गिरिडीह पर अपनी पकड़ गवां चुके हैं। धनबाद के विधायक राज सिन्हा जो गिरिडीह लोकसभा के प्रभारी बनाये गये हैं, मौजूद है। लेकिन यहां सुरेश साहू जो धनबाद लोकसभा के प्रभारी है, वे भी मौजूद है। अब सवाल उठता है कि सुरेश साहू जो धनबाद के लोकसभा प्रभारी है, कल धनबाद में हुए कार्यशाला में मौजूद थे, आज उनकी गिरिडीह में मौजूदगी क्यों? और ये जनाब गिरिडीह में उपस्थित होकर मंचासीन क्यों हैं? इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं।
सच्चाई यह है कि गिरिडीह लोकसभा में भाजपा ने अपनी रही-सही पकड़ गवां दी हैं। यहां झामुमो कुछ ज्यादा ही मजबूत है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं द्वारा दूरियां बना लेना, पूर्व सांसद रवीन्द्र पांडेय का निष्क्रिय हो जाना तथा ढुलू महतो द्वारा भाजपा के कार्यक्रमों से दूरियां बनाकर अपनी टाइगर सेना तथा अन्य संगठनों पर ध्यान दे देने से भाजपा यहां समाप्ति के कगार पर हैं, जबकि झामुमो यहां पूर्व की अपेक्षा यानी मात्र पांच सालों में स्वयं को ज्यादा मजबूत कर ली है।
अगर झामुमो इसी तरह अपना मजबूती कायम रखी तो इस लोकसभा सीट पर भाजपा-आजसू कहीं दिखाई नहीं देगी। राजनीतिक पंडितों की मानें तो ऐसे भी वर्तमान एनडीए सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी से यहां की जनता खफा है। अगर भाजपा-आजसू में समझौता होने पर फिर से आजसू को यहां टिकट मिला, जैसा की तय है।
ऐसे में सुदेश महतो अपने दूर के रिश्तेदार चंद्रप्रकाश चौधरी को ही टिकट देंगे, जिसकी संभावना ज्यादा दिख रही है तो ऐसे में यह लोकसभा सीट इंडिया गठबंधन की झोली में जाने से कोई रोक भी नहीं सकता। ऐसे भी सामरिक दृष्टि से देखें तो गिरिडीह लोकसभा में छह विधानसभा सीटें हैं – जिसमें गिरिडीह, डुमरी और टुंडी विधानसभा सीटों पर झामुमो का कब्जा है।
जबकि बेरमो सीट पर कांग्रेस, गोमिया पर आजसू तथा एकमात्र सीट बाघमारा पर भाजपा का कब्जा है। कुल मिलाकर, भाजपा यहां कुछ भी कर लें, इसके हाथ में यहां से कुछ भी प्राप्त नहीं होनेवाला। ऐसे भी, राजनीतिक पंडितों की मानें तो, गिरिडीह लोकसभा में इस बार झामुमो को यहां की जनता निराश नहीं करेगी, चाहे झामुमो यहां से किसी को भी खड़ा कर दे।
इधर गिरिडीह से ही एक पुराने समर्पित भाजपा कार्यकर्ता विद्रोही24 को बताते हैं कि गिरिडीह से भाजपा छः बार जीती है – पांच बार रवीन्द्र पांडेय और इससे पूर्व एक बार गिरिडीह जिले में भाजपा के संस्थापक सदस्य, बेरमो के प्रख्यात मजदूर नेता स्व.रामदास सिंहजी (१९८९)।
सच तो यह है कि भाजपा का वर्तमान नेतृत्व संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह के स्तरहीन क्रिया-कलापों के चलते अपनी विश्वसनीयता खो चुका है। संगठन मंत्री की गरिमा तभी तक है जब वह प्रचार और प्रलोभनों और नेतागिरी से ऊपर उठकर संगठन के नींव के मजबूत पत्थर सा आचरण करता है। लेकिन यहां तो उल्टी धारा ही बह रही है; झारखंड में भाजपा की धारा कर्मवीर और उनके खैरख्वाहों – रमेश सिंह-प्रदीप वर्मा आदि के क्रिया कलापों से बुरी तरह प्रदूषित हो गई है।
भाजपा की इस स्थिति पर दुखी भाजपा कार्यकर्ता विद्रोही24 को ये भी कहते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों को देख कवि दुष्यंत का यह शेर उन्हें बरबस याद आता है – “कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं/गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं/अब तो इस तालाब का पानी बदल दो/ये कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं!” – आज प्रदेश में भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं के आत्मा की यही आवाज है।