झारखण्ड विधानसभा में सरयू राय ने टाटा लीज नवीकरण का मुद्दा उठाया, समिति बनाकर समस्या के समाधान की मांग, सरकार ने सरयू राय की मांग को मानने में असमर्थता जताई
झारखण्ड विधानसभा में ध्यानाकर्षण सूचना के अंतर्गत निर्दलीय विधायक सरयू राय ने टाटा लीज नवीकरण का मुद्दा उठाया। हालांकि सरकार ने अपने उत्तर से उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश की, लेकिन वे संतुष्ट नहीं दिखे। उन्होंने कई बार सरकार को अपने सवालों से घेरने की कोशिश की, पर सरकार अपने उत्तर से टस से मस नहीं हुई।
सरयू राय का कहना था कि टाटा लीज नवीकरण समझौता 2005 के तहत जमशेदपुर की करीब 100 ऐसी बस्तियों को लीज से अलग कर दिया गया, जो टाटा लीज भूखंड पर बसी हुई थी। राजस्व विभाग की अधिसूचना संख्या 150/सर्वे दिनांक 15.06.2006 के आलोक में उपायुक्त सह बंदोबस्त पदाधिकारी, पूर्वी सिंहभूम के पत्रांक 208/एस दिनांक 18.08.2009 द्वारा ऐसे भूखंडो का सर्वेक्षण किया गया और विभागीय अधिसूचना 150/सर्वे दिनांक 15.06.2006 के द्वारा जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के कुल 16 वार्डों में ऐसे भूखंडों पर बसी बस्तियों का खतियान तैयार करने की अधिसूचना निर्गत की गई।
लेकिन इसी बीच ऐसी बस्तियों का खतियान नहीं तैयार करने की सूचना निर्गत की गई। ऐसी बस्तियों का खतियान नहीं तैयार कर विभागीय संकल्प संख्या 817/रा. दिनांक 22.02.2018 एवं विभागीय पत्रांक 4064/रा. दिनांक 25.10.2019 द्वारा उक्त भूखंडों के साथ अधिकतम दस डिसमिल तक आवासीय भूमि की लीज बंदोबस्ती करने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया।
सरयू राय का कहना था कि राज्य सरकार 2018 की अधिसूचना रद्द करें। सदन की एक समिति बनाएं या अधिकारियों की ही एक समिति बनाकर समस्या का समाधान करें। इधर सरयू राय के प्रश्नों का उत्तर दे रहे वित्त मंत्री डा. रामेश्वर उरांव ने कहा कि ये तो तभी होगा, जब सरकार नियमतिकरण करेगी। सरकार नियमतिकरण नहीं कर रही, बल्कि सेटलमेंट कर रही है। इसलिए ऐसी कोई समिति बनाने की सरकार आवश्यकता नहीं समझती।
दूसरी ओर सदन में यह मुद्दा उठाने के बाद प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से सरयू राय ने संवाददाताओं के बीच अपनी बातें भी रखी। उन्होंने कहा कि सोमवार को विधानसभा में उन्होंने ध्यानाकर्षण के माध्यम से जमशेदपुर की बस्तियों को मालिकाना हक देने का मामला उठाया। प्रभारी मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने उनके ध्यानाकर्षण का उत्तर दिया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि टाटा लीज नवीकरण समझौता के शिड्यूल-5 में अवैध 86 बस्तियों को लीज भूमि से अलग किया है।
तदनुसार 86 बस्तियों का सर्वेक्षण हुआ। सर्वेक्षण में आया कि 14,167 प्लॉटों में निहित लगभग 1800 एकड़ भूमि लीज बाहर की गई है। इसमें 17,986 मकान बने हुए हैं, जिसका क्षेत्रफल करीब 1100 एकड़ है। उन्होंने कहा कि रघुवर दास की सरकार ने एक निर्णय लिया कि 10 डिसमिल तक भूमि की बंदोबस्ती लीज पर की जायेगी, जो पूरे झारखण्ड के लिए है और जमशेदपुर में भी लागू है।
उन्होंने पूरक प्रश्न में कहा कि सरकार उनके ध्यानाकर्षण का सही उत्तर नहीं दे रही हैं। एक तो सरकार यह नहीं बता रही है कि क्षितिज चन्द्र बोस बनाम आयुक्त, रांची के मुकदमा में रांची नगर निगम की भूमि पर सर्वोच्च न्यायालय ने उनके प्रतिकूल कब्जा को मान्यता दिया है, क्योंकि यह प्रतिकूल कब्जा साबित हो गया है।
उसी तरह जब 2005 में टाटा लीज नवीकरण समझौता के समय सर्वे हुआ और साबित हो गया कि करीब 1100 एकड़ भूमि पर 17986 मकान बसे हुए हैं यानी अपने मकानों पर आवासितों का प्रतिकूल कब्जा साबित हो गया तो सर्वोच्च न्यायालय के उपर्युक्त निर्णय के अनुसार इस भूमि पर आवासितों को मालिकाना उन्हें दे देना चाहिए।
उन्होंने मंत्री जी पूछा कि यदि किसी आवासित का मकान 15 डिसमिल, 20 डिसमिल पर बना हुआ है और उसे पूर्ववर्ती सरकार के निर्णयानुसार केवल 10 डिसमिल जमीन को ही लीज पर देगी तो क्या बाकी जमीन पर बना हुआ उसका घर का ढांचा टूटेगा? इस पर प्रभारी मंत्री ने कहा कि जो मकान जितनी जमीन पर बना हुआ है उसका कोई भी अंश टूटेगा नहीं। सरयू राय ने उस पर फिर कहा कि ऐसा तभी होगा जब यह सरकार पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार की 10 डिसमिल तक लीज देने की नीति से कोई अलग निर्णय करे।
उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति गठित करें, जिसमें जमशेदपुर के पूर्ववर्ती उपायुक्तों को भी रखे और यह समिति निर्णय करे कि किस प्रकार से मालिकाना हक दिया जा सकता है। इस पर मंत्री ने कहा कि फिलहाल यह संभव नहीं है। पिछली सरकार का जो निर्णय है, वे उससे अलग निर्णय लेने की स्थिति में अभी नहीं है। केवल यह परिवर्तन करने का आश्वासन उन्होंने दिया कि जो मकान जितने क्षेत्र में बना हुआ है, उतने क्षेत्र को मकान के आवासितों के पास रहने दिया जायेगा।
इस बीच सदन का समय समाप्त हो गया। वे फिर आगे यह विषय को उठायेंगे। सरयू राय ने कहा कि उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि मंत्री ने 10 डिसमिल के लीज के बंधन से आवासितों को अलग किया, जिसका मकान जितनी भूमि पर है, उतनी भूमि पर उसका अधिकार रहेगा, परंतु उसे वे लीज देंगे, मालिकाना हक नहीं देंगे, क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार के मंत्रिपरिषद का एक निर्णय हो गया है। इसलिए सम्यक दृष्टिकोण से इस पर विचार करने के बाद इस निर्णय को बदला जायेगा।
सरयू राय ने मंत्री से स्पष्ट कहा कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा मालिकाना हक देने के बदले में केवल 10 डिसमिल जमीन पर लीज का अधिकार देने का निर्णय ही मालिकाना हक के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, तो उन्होंने इससे इन्कार नहीं किया। अब चूंकि एक बार झारखण्ड सरकार 10 डिसमिल के लीज के बाहर देने के लिए तैयार हो गयी है और यह माना गया कि जिसका जितनी भूमि पर मकान बना हुआ है, उसका पूरे पर कब्जा रहेगा। तो अब मालिकाना की बात बहुत दूर नहीं रह गया है। मंत्री जी के आश्वासन की यह डोर पकड़कर वे भविष्य में सरकार पर इन बस्तियों को मालिकाना हक दिलाने के लिए दबाव बनाते रहेंगे।